मंगलवार, 18 मार्च 2014

"गुर्दे की पथरी की चिकित्सा" (Homeopathic treatment of kidney stones)


आजकल पथरी का रोग लोगों में आम समस्या बनती जा रही है| जो अक्सर गलत खान पान की वजह से होता है।गुर्दे की पथरी (वृक्कीय कैल्कली, नेफरोलिथियासिस) (अंग्रेजी:Kidney stones) मूत्रतंत्र की एक ऐसी स्थिति है जिसमें, वृक्क (गुर्दे) के अन्दर छोटे-छोटे पत्थर सदृश कठोर वस्तुओं का निर्माण होता है। गुर्दें में एक समय में एक या अधिक पथरी हो सकती है। सामान्यत: ये पथरियाँ बिना किसी तकलीफ मूत्रमार्ग से शरीर से बाहर निकाल दी जाती हैं , किन्तु यदि ये पर्याप्त रूप से बड़ी हो जाएं ( २-३ मिमी आकार के) तो ये मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न कर सकती हैं। इस स्थिति में मूत्रांगो के आसपास असहनीय पीड़ा होती है।
यह स्थिति आमतौर से 30 से 60 वर्ष के आयु के व्यक्तियों में पाई जाती है और स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों में चार गुना अधिक पाई जाती है। बच्चों और वृद्धों में मूत्राशय की पथरी ज्यादा बनती है, जबकि वयस्को में अधिकतर गुर्दो और मूत्रवाहक नली में पथरी बन जाती है। जिन मरीजों को मधुमेह की बीमारी है उन्हें गुर्दे की बीमारी होने की काफी संभावनाएं रहती हैं। अगर किसी मरीज को रक्तचाप की बीमारी है तो उसे नियमित दवा से रक्तचाप को नियंत्रण करने पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि अगर रक्तचाप बढ़ता है, तो भी गुर्दे खराब हो सकते हैं।

गुर्दे की पथरी के कारण
Cause of kidney stones:
किसी पदार्थ के कारण जब मूत्र सान्द्र (गाढ़ा) हो जाता है तो पथरी निर्मित होने लगती है। इस पदार्थ में छोटे छोटे दाने बनते हैं जो बाद में पथरी में तब्दील हो जाते है। इसके लक्षण जब तक दिखाई नहीं देते तब तक ये मूत्रमार्ग में बढ़ने लगते है और दर्द होने लगता है। इसमें काफी तेज दर्द होता है जो बाजू से शुरु होकर उरू मूल तक बढ़ता है।

तथा रोजाना भोजन करते समय उनमें जो कैल्शियम फॉस्फेट आदि तत्व रह जाते हैं, पाचन क्रिया की विकृति से इन तत्वों का पाचन नहीं हो पाता है। वे गुर्दे में एकत्र होते रहते हैं। कैल्शियम, फॉस्फेट के सूक्ष्म कण तो मूत्र द्वारा निकलते रहते हैं, जो कण नहीं निकल पाते वे एक दूसरे से मिलकर पथरी का निर्माण करने लगते हैं। पथरी बड़ी होकर मूत्र नली में पहुंचकर मूत्र अवरोध करने लगती है। तब तीव्र पीड़ा होती है। रोगी तड़पने लगता है। इलाज में देर होने से मूत्र के साथ रक्त भी आने लगता है जिससे काफी पीड़ा होती है। तथा लंबे समय तक पाचन शक्ति ठीक न रहने और मूत्र विकार भी बना रहे तो गुर्दों में कुछ तत्व इकट्ठे होकर पथरी का रूप धारण कर लेते हैं।

A family history of kidney stones is also a risk factor for developing kidney stones

किसी प्रकार से पेशाब के साथ निकलने वाले क्षारीय तत्व किसी एक स्थान पर रुक जाते है,चाहे वह मूत्राशय हो,गुर्दा हो या मूत्रनालिका हो,इसके कई रूप होते है,कभी कभी यह बडा रूप लेकर बहुत परेशानी का कारक बन जाती है,पथरी की शंका होने पर किसी प्रकार से इसको जरूर चैक करवा लेना चाहिये.

गुर्दे की पथरी के लक्षण
Symptoms of kidney stones
पीठ के निचले हिस्से में अथवा पेट के निचले भाग में अचानक तेज दर्द, जो पेट व जांघ के संधि क्षेत्र तक जाता है। दर्द फैल सकता है या बाजू, श्रोणि, उरू मूल, गुप्तांगो तक बढ़ सकता है, यह दर्द कुछ मिनटो या घंटो तक बना रहता है तथा बीच-बीच में आराम मिलता है। दर्दो के साथ जी मिचलाने तथा उल्टी होने की शिकायत भीहो सकती है। यदि मूत्र संबंधी प्रणाली के किसी भाग में संक्रमण है तो इसके लक्षणों में बुखार, कंपकंपी, पसीना आना, पेशाब आने के साथ-साथ दर्द होना आदि भी शामिल हो सकते हैं ; बार बार और एकदम से पेशाब आना, रुक रुक कर पेशाब आना, रात में अधिक पेशाब आना, मूत्र में रक्त भी आ सकता है। अंडकोशों में दर्द, पेशाब का रंग असामान्य होना। गुर्दे की पथरी के ज्यादातर रोगी पीठ से पेट की तरफ आते भयंकर दर्द की शिकायत करते हैं। यह दर्द रह-रह कर उठता है और कुछ मिनटो से कई घंटो तक बना रहता है इसे ”रीलन क्रोनिन” कहते हैं। यह रोग का प्रमुख लक्षण है, इसमें मूत्रवाहक नली की पथरी में दर्दो पीठ के निचले हिस्से से उठकर जांघों की ओर जाता है।

गुर्दे की पथरी के प्रकार
Types of Kidney Stones
सबसे आम पथरी कैल्शियम पथरी है। पुरुषों में, महिलाओं की तुलना में दो से तीन गुणा ज्यादा होती है। सामान्यतः 20 से 30 आयु वर्ग के पुरुष इससे प्रभावित होते है। कैल्शियम अन्य पदार्थों जैसे आक्सलेट(सबसे सामान्य पदार्थ) फास्फेट या कार्बोनेट से मिलकर पथरी का निर्माण करते है। आक्सलेट कुछ खाद्य पदार्थों में विद्यमान रहता है।
पुरुषों में यूरिक एसिड पथरी भी सामान्यतः पाई जाती है। किस्टिनूरिया वाले व्यक्तियों में किस्टाइन पथरी निर्मित होती है। महिला और पुरुष दोनों में यह वंशानुगत हो सकता है।
मूत्रमार्ग में होने वाले संक्रमण की वजह से स्ट्रवाइट पथरी होती है जो आमतौर पर महिलाओं में पायी जाती है। स्ट्रवाइट पथरी बढ़कर गुर्दे, मूत्रवाहिनी या मूत्राशय को अवरुद्ध कर सकती है।

गुर्दे की पथरी से बचाव के कुछ उपाय:
Some measure of protection from kidney stones:
1. पर्याप्त जल पीयें ताकि 2 से 2.5 लीटर मूत्र रोज बने।पथरी के मरीज को दिन में कम से कम 5-6 लीटर पानी पीना चाहिये। अधिक मात्रा में मुत्र बनने पर छोटी पथरी मुत्र के साथ निकल जाती है।

2. आहार में प्रोटीन, नाइट्रोजन तथा सोडियम की मात्रा कम हो।

3. ऐसे पदार्थ न लिये जांय जिनमें आक्जेलेट्‌ की मात्रा अधिक हो; जैसे चाकलेट, सोयाबीन, मूंगफली, पालक आदि

4. कोका कोला एवं इसी तरह के अन्य पेय से बचें।

5. विटामिन - सी की भारी मात्रा न ली जाय।

6. नारंगी आदि का रस (ज्यूस) लेने से पथरी का खतरा कम होता है।

पथरी में ये खाएं: 
कुल्थी के अलावा खीरा, तरबूज के बीज, खरबूजे के बीज, चौलाई का साग, मूली, आंवला, अनन्नास, बथुआ, जौ, मूंग की दाल, गोखरु आदि खाएं। कुल्थी के सेवन के साथ दिन में 6 से 8 गिलास सादा पानी पीना, खासकर गुर्दे की बीमारियों में बहुत हितकारी सिद्ध होता है।

ये न खाएं:
पालक, टमाटर, बैंगन, चावल, उड़द, लेसदार पदार्थ, सूखे मेवे, चॉकलेट, चाय, मद्यपान, मांसाहार आदि। मूत्र को रोकना नहीं चाहिए। लगातार एक घंटे से अधिक एक आसन पर न बैठें। जिसको भी शरीर मे पथरी है वो चुना कभी ना खाएं !काले अंगूरों के सेवन से परहेज करें।तिल, काजू अथवा खीरे, आँवला अथवा चीकू (सपोटा) में भी आक्सेलेट अधिक मात्रा में होता है।बैगन,फूलगोभी में यूरिक एसिड व प्यूरीन अधिक मात्रा में पाई जाती है।

पथरी का घरेलू इलाज-

1. जिस व्यक्ति को पथरी की समस्या हो उसे खूब केला खाना चाहिए क्योंकि केला विटामिन बी-6 का प्रमुख स्रोत है, जो ऑक्जेलेट क्रिस्टल को बनने से रोकता है व ऑक्जेलिक अम्ल को विखंडित कर देता है। इसके आलावा नारियल पानी का सेवन करें क्योंकि यह प्राकृतिक पोटेशियम युक्त होता है, जो पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकता है और इसमें पथरी घुलती है।

2. कहने को करेला बहुत कड़वा होता है पर पथरी में यह भी रामबाण साबित होता है| करेले में पथरी न बनने वाले तत्व मैग्नीशियम तथा फॉस्फोरस होते हैं और वह गठिया तथा मधुमेह रोगनाशक है। जो खाए चना वह बने बना। पुरानी कहावत है। चना पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकता है।

3. गाजर में पायरोफॉस्फेट और पादप अम्ल पाए जाते हैं जो पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकते हैं। गाजर में पाया जाने वाला केरोटिन पदार्थ मूत्र संस्थान की आंतरिक दीवारों को टूटने-फूटने से बचाता है।

4. इसके अलावा नींबू का रस एवं जैतून का तेल मिलकर तैयार किया गया मिश्रण गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत हीं कारगर साबित होता है। 60 मिली लीटर नींबू के रस में उतनी हीं मात्रा में जैतून का तेल मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। इनके मिश्रण का सेवन करने के बाद भरपूर मात्रा में पानी पीते रहें।
इस प्राकृतिक उपचार से बहुत जल्द हीं आपको गुर्दे की पथरी से निजात मिल जायेगी साथ हीं पथरी से होने वाली पीड़ा से भी आपको मुक्ति मिल जाएगी।

5. पथरी को गलाने के लिये अध उबला चौलाई का साग दिन में थोडी थोडी मात्रा में खाना हितकर होता है, इसके साथ आधा किलो बथुए का साग तीन गिलास पानी में उबाल कर कपडे से छान लें, और बथुये को उसी पानी में अच्छी तरह से निचोड कर जरा सी काली मिर्च जीरा और हल्का सा सेंधा नमक मिलाकर इसे दिन में चार बार पीना चाहिये, इस प्रकार से गुर्दे के किसी भी प्रकार के दोष और पथरी दोनो के लिए साग बहुत उत्तम माने गये है।

6. जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है। इसके अलावा तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।

7. एक मूली को खोखला करने के बाद उसमे बीस बीस ग्राम गाजर शलगम के बीज भर दें, फ़िर मूली को गर्म करके भुर्ते की तरह भून लें, उसके बाद मूली से बीज निकाल कर सिल पर पीस लें,सुबह पांच या छ: ग्राम पानी के साथ एक माह तक पीते रहे, पथरी में लाभ होगा|

8. प्याज में पथरी नाशक तत्व होते हैं। करीब 70 ग्राम प्याज को अच्छी तरह पीसकर या मिक्सर में चलाकर पेस्ट बनालें। इसे कपडे से निचोडकर रस निकालें। सुबह खाली पेट पीते रहने से पथरी छोटे-छोटे टुकडे होकर निकल जाती है।

9. पहाडी कुल्थी और शिलाजीत दोनो एक एक ग्राम को दूध के साथ सेवन करने पथरी निकल जाती है

10. एक मूली को खोखला करने के बाद उसमे बीस बीस ग्राम गाजर शलगम के बीज भर दें,फ़िर मूली को गर्म करके भुर्ते की तरह भून लें,उसके बाद मूली से बीज निकाल कर सिल पर पीस लें,सुबह पांच या छ: ग्राम पानी के साथ एक माह तक पीते रहे,पथरी और पेशाब वाली बीमारियों में फ़ायदा मिलेगा।

11. सूखे आंवले को नमक की तरह से पीस लें,उसे मूली पर लगाकर चबा चबा कर खायें,सात दिन के अन्दर पथरी पेशाब के रास्ते निकल जायेगी,सुबह खाली पेट सेवन करने से और भी फ़ायदा होता है।

12. तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।

13. पखानबेद नाम का एक पौधा होता है! उसे पथरचट भी कुछ लोग बोलते है! उसके पत्तों को पानी मे उबाल कर काढ़ा बना ले! मात्र 7 से 15 दिन मे पूरी पथरी खत्म!! और कई बार तो इससे भी जल्दी खत्म हो जाती

14. बथुआ को पानी में उबालकर इसके रस में नींबू, नमक व जीरा मिलाकर नियमित पीने से पेशाब में जलन, पेशाब के समय दर्द तथा पथरी दूर होती है।

16. पथरी से बचाव के लिये रातभर मक्के के बाल (सिल्क) को पानी में भिगाकर सुबह सिल्क हटाकर पानी पीने से लाभ होता है। पथरी के उपचार में सिल्क को पानी में उबालकर बनाये गये काढे का प्रयोग होता है।

17. आम के ताजा पत्ते छाया में सुखाकर, बारीक पीस कर आठ ग्राम मात्रा पानी मे मिलाकर प्रात: काल प्रतिदिन लेने से पथरी समाप्त हो सकती है।

18. दो अन्जीर एक गिलास पानी मे उबालकर सुबह के वक्त पीयें। एक माह तक लेना जरूरी है।



19. कुलथी की दाल का सूप पीने से पथरी निकलने के प्रमाण मिले है। २० ग्राम कुलथी दो कप पानी में उबालकर काढा बनालें। सुबह के वक्त और रात को सोने से पहिले पीयें।एक-दो सप्ताह में गुर्दे तथा मूत्राशय की पथरी गल कर बिना ऑपरेशन के बाहर आ जाती है, लगातार सेवन करते रहना राहत देता है।
कुल्थी का पानी विधिवत लेने से गुर्दे और मूत्रशय की पथरी निकल जाती है और नयी पथरी बनना भी रुक जाता है। किसी साफ सूखे, मुलायम कपड़े से कुल्थी के दानों को साफ कर लें। किसी पॉलीथिन की थैली में डाल कर किसी टिन में या कांच के मर्तबान में सुरक्षित रख लें।


           कुल्थी का पानी बनाने की विधि: किसी कांच के गिलास में 250 ग्राम पानी में 20 ग्राम कुल्थी डाल कर ढक कर रात भर भीगने दें। प्रात: इस पानी को अच्छी तरह मिला कर खाली पेट पी लें। फिर उतना ही नया पानी उसी कुल्थी के गिलास में और डाल दें, जिसे दोपहर में पी लें। दोपहर में कुल्थी का पानी पीने के बाद पुन: उतना ही नया पानी शाम को पीने के लिए डाल दें।इस प्रकार रात में भिगोई गई कुल्थी का पानी अगले दिन तीन बार सुबह, दोपहर, शाम पीने के बाद उन कुल्थी के दानों को फेंक दें और अगले दिन यही प्रक्रिया अपनाएं। महीने भर इस तरह पानी पीने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी धीरे-धीरे गल कर निकल जाती है।

20. स्टूल पर चढकर १५-२० बार फ़र्श पर कूदें। पथरी नीचे खिसकेगी और पेशाब के रास्ते निकल जाएगी। निर्बल व्यक्ति यह प्रयोग न करें।

21. दूध व बादाम का नियमित सेवन से पथरी की संभावना कम होती है।

22. गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं ।

23. गिलास अनन्नास का रस, १ चम्मच मिश्री डालकर भोजन से पूर्व लेने से पिशाब खुलकर आता है और पिशाब सम्बन्धी अन्य समस्याए दूर होती है

24. पथरी होने पर नारियल का पानी पीना चाहिए।इसमें जैविक परमाणु होते हैं जो खनिज पदार्थो को उत्पन्न होने से रोकते हैं .

25. 15 दाने बडी इलायची के एक चम्मच, खरबूजे के बीज की गिरी और दो चम्मच मिश्री, एक कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम दो बार पीने से पथरी निकल जाती है।

26. पका हुआ जामुन पथरी से निजात दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पथरी होने पर पका हुआ जामुन खाना चाहिए।
27. सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे की पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है।

28. मिश्री, सौंफ, सूखा धनिया लेकर 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर डेढ लीटर पानी में रात को भिगोकर रख दीजिए। अगली शाम को इनको पानी से छानकर पीस लीजिए और पानी में मिलाकर एक घोल बना लीजिए, इस घोल को पी‍जिए। पथरी निकल जाएगी।

29.तीन हल्की कच्ची भिंड़ी को पतली-पतली लम्बी-लम्बी काट लें। कांच के बर्तन में दो लीटर पानी में कटी हुई भिंड़ी ड़ाल कर रात भर के लिए रख दें। सुबह भिंड़ी को उसी पानी में निचोड़ कर भिंड़ी को निकाल लें। ये सारा पानी दो घंटों के अन्दर-अन्दर पी लें। इससे किड़नी की पथरी से छुटकारा मिलता है।

30. महर्षि सुश्रुत के अनुसार सात दिन तक गौदुग्ध के साथ गोक्षुर पंचांग का सेवन कराने में पथरी टूट-टूट कर शरीर से बाहर चली जाती है । मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी होतो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं ।

31. पतंजलि का दिव्य वृक्कदोष हर क्वाथ १० ग्राम ले कर डेढ़ ग्लास पानी में उबाले .चौथाई शेष रह जाने पर सुबह खाली पेट और दोपहर के भोजन के ५-६ घंटे बाद ले .इसके साथ अश्मरिहर रस के सेवन से लाभ होगा . जिन्हें बार बार पथरी बनाने की प्रवृत्ति है उन्हें यह कुछ समय तक लेना चाहिए

लिथोट्रिप्सी तकनीक 
Lithotripsy technology
पहले पथरी हो जाने पर बड़ा ऑपरेशन ही उसका अंतिम उपाय होता था, लेकिन अब नई तकनीक लिथोट्रिप्सी आ गई है। इससे पथरी का इलाज आसानी से किया जा सकता है । लिथोट्रिप्सी तकनीक के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं , रायपुर स्टोन क्लीनिक के सर्जन डॉ. कमलेश अग्रवाल ।

क्या है लिथोट्रिप्सी तकनीक ?
लिथोट्रिप्सी चिकित्सा जगत की आधुनिक तकनीकों में से एक है गुर्दे की पथरी के इलाज में इसका उपयोग किय जाता है । लिथोट्रिप्सी दो शब्दों से मिलकर बना है । लिथो का अर्थ है स्टोन या पथरी और ट्रिप्सी का अर्थ है तोड़ना । लिथोट्रिप्सी बिना शल्य क्रिया के पथरी को तोड़कर छोटे-छोटे टुकड़ो के रुप में शरीर से बाहर निकालने की आसान व सुरक्षित विधि है ।


प्रकिया 
लिथोट्रिप्सी तकनीक द्वारा गुर्दे, मूत्राशय एवं मूत्रनली में स्थित किसी भी आकार की पथरी को चूरा करके बहुत आसानी से कम समय में निकाला जाता है । लिथोट्रिप्सर नामक मशीन द्वारा ध्वनि तरंगें उत्पन्न करके उस स्थान पर प्रेषित की जाती है , जहाँ पर पथरी होती हैं । ये ध्वनि तरंगें अल्ट्रा साउंड में प्रयुक्त ध्वनि तरंगों की तरह होती है । इन तरंगों द्वारा पथरी को तोड़कर रेत के समान बारीक कणों में बदल दिया जाता है । ये कण पेशाब के साथ आसानी से शरीर से बाहर निकल जाते हैं ।

इलाज के पूर्व परीक्षण 
लिथोट्रिप्सी के इलाज से पूर्व सामान्य परीक्षण किये जाते हैं। यह एक आउटडोर प्रक्रिया है। इसमें मरीज को भर्ती होने की जरुरत नहीं होती। पूरी प्रक्रिया में करीब 30 से 40 मिनट तक का औसत समय लगता है। 

तकनीक के फ़ायदे
लिथोट्रिप्सी द्वारा किसी भी आयु के मरीज का उपचार पूर्णतया सुरक्षित ढंग से किया जा सकता है ।
इसमें किसी तरह की शारीरिक-मानसिक परेशानी नहीं होती।
हृदयरोग, तपेदिक, उच्च रक्तचाप,मधुमेह,अस्थमा अथवा किसी क्रानिक बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए ये विधि उपयुक्त मानी जाती है , क्योंकि ऎसे मरीजों में शल्यक्रिया तुरंत करना संभव नहीं होता है ।
इस तकनीक में मरीज को रक्त की जरुरत नहीं होती,इसलिए किसी अन्य रोग के संक्रमण का खतरा नहीं रहता ।
शरीर में कहीं चीर-फाड़ नहीं की जाती, इस कारण कटनें का निशान नहीं पड़ता ।
लिथोट्रिप्सी मशीन से पित्तनली एवं पेनक्रियाण ग्रंथी का उपचार भी संभव है।

यह उपचार काफी सामान्य है और पूरी प्रक्रिया में कोई दवा अथवा दर्द निवारक इंजेक्शन का प्रयोग नहीं किया जाता ।

सहायक उपचार- हिमालय ड्रग कंपनी की सिस्टोन की दो गोलियां दिन में 2-3 बार प्रतिदिन लेने से शीघ्र लाभ होता है। कुछ समय तक नियमित सेवन करने से पथरी टूट-टूट कर बाहर निकल जाती है। यह मूत्रमार्ग में पथरी, मूत्र में क्रिस्टल आना, मूत्र में जलन आदि में दी जाती है।स्टोनिल कैप्सूल( हकीम हाशमी )एक 100% हर्बल जड़ी बूटी युक्त उपाय अपने को पूरी मूत्र प्रणाली के लिए एक टॉनिक के रूप में दोनों स्वस्थ और रोगग्रस्त गुर्दे के कामकाज और कार्य में सुधार करने की क्षमता के लिए जाना जाता है. यह हर्बल कैप्सूल गुर्दे में पत्थर गठन के एक आम स्वास्थ्य विकार, जो दुनिया में लोगों की काफी संख्या को प्रभावित करता है. उसका उपचार में सहायता करता है यह मुख्य रूप से कैल्शियम का संचय, फॉस्फेट, और गुर्दे में oxalate जो क्रिस्टल या पत्थर को निश्चित रूप से निकल बहार करता है .

आपको गुर्दे की पथरी जिन्हें बार-बार हो रही है उन्हें खान-पान में परहेज बरतना चाहिए, ताकि समस्या से बचा जा सकता है। साथ ही एक स्वस्थ व्यक्ति को तो प्रतिदिन 3-5 लीटर पानी पीना चाहिए| यदि किसी को एक बार पथरी की समस्या हुई, तो उन्हें यह समस्या बार-बार हो सकती है। अतः खानपान पर ध्यान रखकर पथरी की समस्या से निजात पाई जा सकती है।

होमियोपैथिक चिकित्सा : 
Homeopathic treatment of kidney stones
BERBERIS VULGARIS: इस होमियोपैथिक दवा  का मदर टिंचर  पेशाब के  पथरी में  बहुत उपयोगी  हैं।  इस दवा की 10-15 बूंदों को एक चौथाई (1/ 4) कप गुण गुने पानी मे मिलाकर दिन मे चार बार (सुबह,दोपहर,शाम और रात) लेना है। चार बार अधिक से अधिक और कमसे कम तीन बार|इसको लगातार एक से डेढ़ महीने तक लेना है कभी कभी दो महीने भी लग जाते है। 
CHINA 1000: दुबारा पथरी न हो इसके लिए चाइना १००० कि शक्ति में केवल एक दिन तीन समय में खायें और पथरी से हमेशा के लिए छुटकारा पाएं। 
CANTHARIS 6 : यदि पेशाब की  पेशाब में जल जाने जैसा जलन,वेग, कुथन इत्यादि रहे तो कैन्थेरिस से लाभ होगा। यह मूत्र पथरी की बहुमूल्य दवा  है। 
SARSAPARILLA: इसमें पेशाब जल्दी जल्दी लगता है  और थोडा थोडा होता है। पेशाब के साथ छोटी छोटी पथरी निकलती हैं, गुर्दे में दर्द रहता है।पेशाब के अन्त में असह्य कष्ट होना, गर्म चीजों के सेवन से कष्ट बढ़ना, बैठ कर पेशाब करने में तकलीफ के साथ बूंद-बूंद करके पेशाब उतरना और खड़े होकर पेशाब करने पर आसानी से पेशाब उतरना यह सारसापेरिला के लक्षण हैं। 
HEDEOMA: पेशाब में लाल रंग के बालू के कण कि तरह का पदार्थ निकलता है,यूरेटर में दर्द रहता है। 

ARTICA URENCE: अर्टिका यूरेंस : यूरिक एसिड बनने की प्रवृति रोकने के लिए एवं यूरिक एसिड निर्मित पथरी के लिए, उक्त दवा के मूल अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए।

LAYCOPODIUMलाइकोपोडियम :पेसाब में रेत के लाल कण दिखाई देना, दाई तरफ गुर्दे में दर्द होता है, पेशाब धीरे-धीरे होना एवं कमर में दर्द रहना, रोगी अकेला रहना पसंद नहीं करता, रात में बार-बार पेशाब होना आदि लक्षण मिलने पर पहले 30 शक्ति में एवं बाद में 200 शक्ति में दवा प्रयोग करनी चाहिए। इसमें प्रोस्टेट ग्रंथि भी बढ़ जाती है।

इन औषधियों के आलावा लक्षणानुसार हाइड्रेज़िया, डायस्कोरिया, ओसीमम कैनम, कैल्केरिया कार्ब आदि  होमियोपैथिक औषधियाँ लाभकारी हैं। 


नोट:-कोई भी नुस्खा ड़ाक्टर की सलाह से अपनाना चाहिए।

बुधवार, 12 मार्च 2014

क्या आपका शिशु सोते हुए बिस्तर पर पेशाब करता है?

शिशुओं का कहीं भी पेशाब कर देना आम बात होती है, खास करके रात में सोते समय नींद में पेशाब करना। यदि ३-४ वर्ष की आयु होने पर भी बच्चा बिस्तर पर पेशाब करे तो यह एक बीमारी मानी जायेगी। यदि इसकी उचित चिकित्सा न की जाए तो बच्चा पाँच वर्ष से ज्यादा उम्र होने पर भी बिस्तर में पेशाब कर  दिया करते हैं। बच्चे को इस बीमारी से बचने के लिए शैशवकाल से हिन् कुछ सावधानियां रखना जरूरी होता है। उसे सोने से पहले शू-शू कि आवाज करते हुए पेशाब करा देनी चाहिए। उन्हें शाम को ८ बजे के बाद ज्यादा पानी नही पिलानी चाहिए।रात 1-2 बजे के लगभग उसे धीरे से जगाइए और शौचालय में ले जाइए, जहाँ उसे पेशाब करने के लिए फुसलाइए या प्रेरित कीजिए। यदि बच्चा नहीं जागता है, तो उसे धीरे से उठाकर शौचालय में ले जाइए और पेशाब कराइए।जिस कमरे में बच्चा सोता है, उस कमरे में रात्रि में मंद लाइट जलाकर रखें, जिससे बच्चा रात्रि में खुद अकेले जाकर बाथरूम में मूत्र का त्याग कर सकें  अगली सुबह जब बच्चा उठे और बिस्तर सूखा मिले तो बिस्तर गीला नहीं करने के लिए उसकी तारीफ करें।  किसी योग्य चिकित्सक से भी सलाह लेने में संकोच न करें। कुछ बच्चों में बिस्तर में पेशाब करने कि आदत सी हो जाती है। इस आदत को दूर करने के लिए बच्चे के साथ अत्यंत स्नेहपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। उसे डांटना,फटकारना, धिक्कारना या शर्मिंदा करना कदापि उचित नहीं है। उसके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करना चाहिए और धर्यपूर्वक प्यार से समझना चाहिए। यदि बच्चा दस वर्ष की उम्र के बाद भी बिस्तर पर पेशाब करता है, तो फिर किसी बीमारी का पता लगाने के लिए विशेषज्ञ की सेवा लेना जरूरी होता है। इसे उचित चिकित्सा से ठीक क्या जा सकता है। आइये हम कुछ लाभप्रद उपायों पर विचार करते हैं .......

घरलू चिकित्सा : 
१. अगर शिशु बिस्तर में पेशाब करता हो तो एक कप ठण्डे फीके दूध में एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम चालिस दिनों तक पिलाइए और तिल-गुड़ का एक लड्डू रोज खाने को दीजिए। अपने शिशु को लड्डू चबा-चबाकर खाने के लिए कहिए और फिर शहद वाला एक कप दूध पीने के लिए दें। बच्चे को खाने के लिए लड्डू सुबह के समय दें। इस लड्डू के सेवन से कोई नुकसान नहीं होता। अत: आप जब तक चाहें इसका सेवन करा सकते हैं।

२. सोने से पूर्व 1 ग्राम अजवाइन का चूर्ण कुछ दिनों तक नियमित रूप से खिलाएं या अजवाइन को पानी में काढ़ा बनाकर भी सेवन कराया जा सकता है। 

३. जायफल को पानी में घिस कर पाव चम्म्च मात्रा में लेकर एक कप कुनकुने दूध में मिला कर  सुबह शाम पिलाने से भी यह बीमारी दूर हो जाती है। 

४. गूलर के पेड़ की भीतरी छाल ५० ग्राम + पीपल की छाल ५० ग्राम + अर्जुन की छाल ५० ग्राम + सोंठ ५० ग्राम + राई(मोहरी या काली सरसों) २५ ग्राम + काले तिल १०० ग्राम ; इन सबको मिला कर भली प्रकार से महीन कर लें। यदि संभव हो तो इसमें शिलाजीत ५० ग्राम मिला कर दो-दो रत्ती की गोलियां बना लें। इससे बच्चे को दवा लेने में आसानी होगी साथ ही आपका बच्चा एकदम स्वस्थ और पुष्ट बना रहेगा।

आयुर्वेदिक चिकित्सा : 
नवजीवन रस की १-१ गोली सुबह और शाम को दूध के साथ देने से यह व्याधि दूर हो जाती है। 

होमियोपैथिक चिकित्सा : 
इस बीमारी में होमियोपैथी में दो  मुख्य औषधियाँ व्यवहार में लायी जाती है-कैलिफास और  क्रियोजोटम। इनमें से किसी भी दवा को लक्षणानुसार चुन कर  २-३ गोली ३० शक्ति की, दिन में तीन बार बच्चे के मुहँ  में डालकर चूसने के लिए कहें। लाभ होने पर दवा बंद कर  दें।  

"याद रखें आज का बालक ही कल का पालक है"


शनिवार, 8 मार्च 2014

"बीमारी और परहेज"

संतुलित भोजन  का सीधा कनेक्शन हमारी सेहत के साथ है। संतुलित भोजन से न सिर्फ बीमारियों से बचा जा सकता है ,बल्कि बीमार होने के बाद रिकवरी भी जल्दी हो सकती है। क्रॉनिक और लाइफस्टाइल बीमारियों में अच्छी डायट की भूमिका और बढ़ जाती है। एक्सपर्ट्स की सलाह से हम बता रहे हैं , कुछ आम बीमारियों में डायट क्या हो।खाद्य पदाथों को नजरंदाज करके और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करके आप ज्यादा जल्दी ठीक हो सकते हैं और बीमारी के लक्षणों को काफी हद तक कम कर सकते हैं। आइये जानते हैं कि वे कौन से आहार हैं जिन्‍हें बीमार पड़ने पर कभी नहीं खाने चाहिये, नहीं तो तबियत और भी ज्‍यादा खराब हो जाती है।

जो खान पान हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है या जो रोग बढ़ाने में सहायक है या वह रहन सहन जो रोग को बढ़ाने में मदद करते है उनको अपनाने का नाम ही परहेज है।  हमारे शरीर में जो रोग होते है वे मुख्यतः वात, पित्त, कफ की श्रेणियों में आते है। जैसे खांसी, जुकाम, फोड़े-फुंसी, कफ के दायरे में आते है। ऐसे में कफ को बढ़ाने वाली वस्तुओ जैसे – चावल, दही, केला आदि से परहेज जरूरी है इसके बाद पित्त आता है। अरीर्ण, जलन, अधिक प्यास, घवराहट, खुश्की पित्त के लक्षण होते है अत: तेज धुप, गर्मी, अधिक मेहनत, शोर शराबा, गर्म व खुश्क तासीर की चीजों से बचना इसका परहेज है। आइये अब कुछ बिमारियों में पथ्य और अपथ्य भोजन पर चर्चा करते हैं। 
डायबीटीज़ :
शुगर के मरीजों के लिए जरूरी है कि वे बैलेंस्ड डायट लें। ज्यादा न खाएं , लेकिन तीनों वक्त खाना खाएं और बीच में दो बार स्नैक्स भी लें। उन्हें प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का अच्छा कॉम्बिनेशन लेना चाहिए। मसलन , नाश्ते में दूधवाला दलिया लें या फिर ब्रेड के साथ अंडा लें। इसी तरह खाने में सब्जी के साथ दाल भी लें। इससे शुगर का लेवल सही रहता है। असल में , कार्बोहाइड्रेट से शुगर जल्दी बनती है , जबकि प्रोटीन से धीरे-धीरे शुगर रिलीज़ होती है , जिससे ज्यादा देर तक पेट भरा हुआ लगता है और ज्यादा खाने से बच जाते हैं। कुल खाने की 55-60 फीसदी कैलरी कार्बोहाइड्रेट से , 15-20 फीसदी प्रोटीन से और 15-20 फीसदी फैट से मिलनी चाहिए। ज्यादा तला-भुना न खाएं। 

- लो ग्लाइसिमिक इंडेक्स वाली चीजें यानी जो शरीर में जाकर धीरे-धीरे ग्लूकोज़ में बदलती हैं , खानी चाहिए। इनमें हरी सब्जियां , सोया , मूंग दाल , काला चना , राजमा , ब्राउन राइस , अंडे का सफेद हिस्सा आदि शामिल हैं। 

- खाने में करीब 20 फीसदी फाइबर जरूर होना चाहिए। गेहूं से चोकर न निकालें। लोबिया , राजमा , स्प्राउट्स आदि खाएं क्योंकि इनसे प्रोटीन और फाइबर दोनों मिलते हैं। स्प्राउट्स में ऐंटि-ऑक्सिडेंट भी काफी होते हैं। 

- दिन भर में 4-5 बार फल और सब्जियां खाएं लेकिन एक ही बार में सब कुछ खाने की बजाय बार-बार थोड़ा-थोड़ा करके खाएं। फलों में चेरी , स्ट्रॉबेरी , सेब , संतरा , अनार , पपीता , मौसमी आदि और सब्जियों में करेला, घीया , तोरी , सीताफल , खीरा , टमाटर आदि खाएं। 

- रोजाना एक मुट्ठी ड्राइ-फ्रूट्स खाएं यानी 10-12 बादाम या 5-7 बादाम और 3-4 अखरोट खा सकते हैं। 

- घीया , करेला , खीरा , टमाटर , अलोवेरा और आंवला का जूस खास फायदेमंद है। 

- लो फैट दही और स्किम्ड/डबल टोंड दूध लेना चाहिए। ग्रीन टी पीना अच्छा है। चाय के साथ हाई फाइबर बिस्किट या फीके बिस्किट ले सकते हैं। बीपी नहीं है तो नमकीन बिस्किट भी खा सकते हैं। 

- जौ (बारले) , काला चना , मूंग दाल और जामुन खासतौर पर फायदेमंद हैं। इनका ग्लाइसिमिक इंडेक्स भी कम है और ये पित्त के इंबैलेंस को कम करने के साथ-साथ अगर अंदर सूजन हो गई है तो उसे भी कम करते हैं। 

- काला नमक डालकर छाछ पिएं। नारियल पानी पिएं। घर में बने सूप पिएं। 

- नीम-करेला पाउडर ले सकते हैं। हालांकि इसका कोई फौरी फायदा नहीं होता कि कोई उलटा-सीधा खाने के बाद सोचे कि दो चम्मच नीम-करेला पाउडर खा लेंगे तो ठीक हो जाएगा। यह गलत है। लेकिन लंबे वक्त में यह जरूर फायदा पहुंचाता है। 

परहेज करें 
- चीनी , शक्कर , गुड़ , गन्ना , शहद , चॉकलेट , पेस्ट्री , केक , आइसक्रीम आदि मीठी चीजें न खाएं। 

- हाई ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाली चीजों से बचें क्योंकि ये जल्दी ग्लूकोज में बदल जाती हैं। इससे शरीर में शुगर एकदम से बढ़ जाता है। ऐसे में इंसुलिन को शुगर कंट्रोल करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। इनमें प्रमुख हैं मैदा , सूजी , सफेद चावल , वाइट ब्रेड , नूडल्स , पिज़्ज़ा , बिस्किट , तरबूज , अंगूर , सिंघाड़ा , चीकू , केला, आम , लीची आदि। 

- पूरी , पराठें , पकौड़े आदि न खाएं। इनसे वजन के साथ-साथ कॉलेस्ट्रॉल भी बढ़ता है। 

- जूस से बचना चाहिए क्योंकि इनमें शुगर की मात्रा ज्यादा होती है। पैक्ड जूस बिल्कुल न लें। सीधे फल खाना ज्यादा फायदेमंद है। 

- सब्जियों में आलू , अरबी , कटहल , जिमिकंद , शकरकंद , चुकंदर न खाएं। इनमें स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट काफी ज्यादा होता है , जो शुगर बढ़ा सकते हैं। वैसे , इन्हें उबाल कर कभी-कभी खाया जा सकता है लेकिन फ्राई करके कभी न खाएं। 

- फलों में आम , चीकू , अंगूर , केला , पाइन ऐपल , शरीफा आदि से परहेज करें क्योंकि इनमें शुगर काफी ज्यादा होती है। 

- मैदा और मक्के का आटा न खाएं। इनका ग्लाइसिमिक इंडेक्स ज्यादा होता है और ये रिफाइन भी होते हैं। 

- वाइट राइस की बजाय ब्राउन राइस खाएं। चावलों का मांड निकालकर खाना सही नहीं है क्योंकि इससे सारे विटामिन और मिनरल निकल जाते हैं। 

- ऐनिमल फैट (मक्खन , पनीर , मीट आदि) कम कर देना चाहिए। 

- शराब डॉक्टर की सलाह पर ही पीएं। खाली पेट बिल्कुल न पीएं। इससे हाइपोग्लाइसीमिया (शुगर लेवल का एकदम नीचे गिर जाना) हो सकता है। ज्यादा शराब पीने से यूरिक एसिड और ट्राइग्लाइसराइड बढ़ता है और शुगर को कंट्रोल करना मुश्किल होता है। 

नोट : शुगर के इलाज में डायट का रोल 60 फीसदी है। बाकी 40 फीसदी एक्सर्साइज और स्ट्रेस मैनेजमेंट पर निर्भर करता है। 

कॉलेस्ट्रॉल 
कॉलेस्ट्रॉल के मरीजों को हेल्थी और बैलेंस्ड डायट लेनी चाहिए। वजन कंट्रोल में रखने के लिए उन्हें कम कैलरी खानी चाहिए। ध्यान देनेवाली बात यह है कि कॉलेस्ट्रॉल के कई मरीज फैट पूरी तरह बंद कर देते हैं। यह सही नहीं है क्योंकि शरीर के लिए फैट्स भी जरूरी हैं , बस क्वॉलिटी और क्वॉन्टिटी का ध्यान रखें। 

- तेलों का सही बैलेंस जरूरी है। एक दिन में कुल तीन चम्मच तेल काफी है। तेल बदल-बदल कर और कॉम्बिनेशन में खाएं , मसलन एक महीने सरसों और मूंगफली का तेल यूज करें तो दूसरे महीने रिफाइंड और कनोला का। ये सिर्फ उदाहरण हैं। आप अपनी पसंद से कॉम्बिनेशन बना सकते हैं। कॉम्बिनेशन और बदल-बदल कर तेल खाने से शरीर को सभी जरूरी फैट्स मिल जाते हैं। ऑलिव ऑइल यूज करें। इससे कॉलेस्ट्रॉल कम होता है , लेकिन इसे ज्यादा गरम न करें। इसे सलाद आदि पर डालकर खा सकते हैं। 

- ऐसी चीजें खाएं , जिनमें फाइबर खूब हो , जैसे कि गेहूं , ज्वार , बाजरा , जई आदि। दलिया , स्प्राउट्स ,ओट्स और दालों के फाइबर से कॉलेस्ट्रॉल कम होता है। आटे में चोकर मिलाकर इस्तेमाल करें। 

- हरी सब्जियां , साग , शलजम , बीन्स , मटर , ओट्स , सनफ्लावर सीड्स , अलसी आदि खाएं। इनसे फॉलिक एसिड होता है , जो कॉलेस्ट्रॉल लेवल को मेंटेन करने में मदद करता है। 

- अलसी , बादाम , बीन्स , फिश और सरसों तेल में काफी ओमेगा-थ्री होता है , जो दिल के लिए अच्छा है। 

- मेथी , लहसुन , प्याज , हल्दी , बादाम , सोयाबीन आदि खाएं। इनसे कॉलेस्ट्रॉल कम होता है। एक चम्मच मेथी के दानों को पानी में भिगो लें। सुबह उस पानी को पी लें। मेथी के बीजों को स्प्राउट्स में मिला लें , उसमें फाइबर होता है। 

- एचडीएल यानी गुड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाने के लिए रोजाना पांच-छह बादाम खाएं। इसके अलावा ओमेगा थ्री वाली चीजें अखरोट , फिश लीवर ऑयल , सामन मछली , फ्लैक्स सीड्स (अलसी के बीज) खाने चाहिए। 

- कॉलेस्ट्रॉल लिवर के डिस्ऑर्डर से बढ़ता है। लिवर को डिटॉक्सिफाइ करने के लिए अलोवेरा जूस , आंवला जूस और वेजिटेबल जूस लें। इन तीनों को मिलाकर रोजाना एक गिलास जूस लें। कॉलेस्ट्रॉल ज्यादा है तो दिन में दो गिलास भी पी सकते हैं। 

- नारियल पानी पीएं। शहद ले सकते हैं क्योंकि इससे इम्युनिटी बढ़ती है। 

परहेज करें 
- तला-भुना खाना न खाएं। भाप में पकाकर खाना खाएं। देसी घी , डालडा , मियोनिज , बटर न लें। बिस्किट ,कुकीज , मट्ठी आदि में काफी ट्रांसफैट होता है , जो सीधा लिवर पर असर करता है। उससे बचें। 

- प्रोसेस्ड और जंक फूड से बचें। पेस्ट्री , केक , आइसक्रीम , मीट , पोर्क , भुजिया आदि से भी परहेज करें। 

- फुल क्रीम दूध और उससे बना पनीर या खोया न खाएं। 

- नारियल और नारियल के दूध से परहेज करें। इसमें तेल होता है। 

- उड़द दाल , नमक , और चावल ज्यादा न खाएं। कॉफी भी ज्यादा न पिएं। 

नोट : खूब एक्सर्साइज करें क्योंकि सिर्फ खाने से बहुत फायदा नहीं होता। दवाओं खासकर पेनकिलर दवाओं और स्टेरॉइड क्रीम/इंजेक्शन का इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह पर ही करें , क्योंकि इनका लिवर पर सीधा बुरा असर हो सकता है और शरीर में पानी भी रुक सकता है। स्टेरॉइड हॉर्मोंस होते हैं और इनका इस्तेमाल इनफर्टिलिटी ,सर्जरी , साइनस आदि में परेशानी बढ़ने पर होता है। शराब या सिगरेट पीने से बचें। लिवर और कॉलेस्ट्रॉल के बीच सीधा संबंध है। लिवर को ठीक रखना जरूरी है क्योंकि लिवर ठीक है तो कॉलेस्ट्रॉल बढ़ेगा ही नहीं। दूसरी ओर , कॉलेस्ट्रॉल ज्यादा है तो फैटी लिवर हो सकता है। 

हाई ब्लड प्रेशर 
हाई बीपी दिल की बीमारी का इशारा हो सकता है। डायट में सैचुरेटिड फैट जैसे कि मक्खन , घी , मलाई आदि कम करें क्योंकि इससे दिल की नलियों के संकरा होने का खतरा बढ़ जाता है। जितना हो सके , लो फैट डायट लें।

- कैल्शियम , मैग्नीशियम और पोटैशियम आदि प्रचुर मात्रा में खाएं। ये तत्व दूध , हरी सब्जियां , दालें , संतरा ,स्ट्रॉबेरी , खुबानी , बादाम , केला और सीताफल आदि में खूब मिलते हैं। 

- सूप , सलाद , खट्टे फल , नीबू पानी , नारियल पानी , काला चना , लोबिया , अलसी , आडू , सोया आदि खाना फायदेमंद है। 

- गाजर , पत्ता गोभी , ब्रोकली , पालक , कटहल , टमाटर , लहसुन , प्याज और पत्तेदार सब्जियां खाएं। मौसमी फल खूब खाएं। 

- पानी खूब पीएं। दिन भर में करीब 10 गिलास पानी पिएं। 

- ओमेगा थ्री वाली चीजें , जैसे कि अखरोट , बादाम , फिश ऑयल , अलसी आदि खाएं। रोजाना पांच-सात बादाम और 3-4 अखरोट जरूर खाएं। 

- बीपी के लिए इन दिनों DASH डायट यानी डायट्री अप्रोचिस टु स्टॉप हाइपरटेंशन खूब चलन में है। इसमें क्या न खाएं से ज्यादा जोर इस बात पर होता है कि क्या खाएं। इसे अमेरिकन हार्ट असोसिएशन के साथ-साथ इंडियन नैशनल कैंसर इंस्टिट्यूट ने भी रेकमेंड किया है। इसमें दिन भर में एक किलो तक फल-सब्जियां और कार्बोहाइड्रेट व लो फैट मिल्क प्रॉडक्ट्स पर खूब जोर होता है। 

परहेज करें 
- नमक कम खाएं। दिन में करीब आधा चम्मच नमक काफी है। टेबल सॉल्ट यूज न करें। दिन भर में आधा चम्मच के करीब नमक खाएं। यह हमें खाने से आसानी से मिल जाता है। वैसे , अनाज , फल , सब्जियों आदि से भी हमें नैचरल तरीके से नमक मिल जाता है। हफ्ते में एक बार बिना नमक के खाने की आदत डालें। 

- सॉस , अचार , चटनी , अजीनोमोटो , बेकिंग पाउडर आदि से परहेज करें। पापड़ भी बिना नमक वाला खाएं। 

- पैक्ड या फ्रोजन आइटम न खाएं। इनमें प्रिजरवेटिव होते हैं और नमक भी ज्यादा होता है। इसी तरह बेकरी आइटम्स में सैचुरेटिड फैट ज्यादा होता है। चिप्स , बिस्कुट , भुजिया , कुकीज , फ्रोजन मटर , केक , पेस्ट्री आदि से बचें। 

- खाने में ऊपर से नमक न मिलाएं। सलाद , रायते आदि में भी नमक न डालें। 

- नियमित रूप से नॉन वेज खासकर हेवी नॉन वेज (रेड मीट आदि) खाने से बीपी की आशंका बढ़ जाती है। 

नोट : बीपी कंट्रोल करने में डायट का रोल 50 फीसदी है। स्ट्रेस मैनेजमेंट और एक्सर्साइज से बाकी फायदा मिलता है। योगासन , प्राणायाम और मेडिटेशन करें। भ्रामरी प्राणायाम खासतौर से फायदेमंद है। 

लो ब्लडप्रेशर 
लो बीपी में खाने का कोई खास परहेज नहीं होता। उन्हें हेल्थी चीजें खानी चाहिए और तीनों वक्त खाना और दो बार स्नैक्स लेने चाहिए। इन्हें ध्यान रखना होगा कि खाने की क्वॉलिटी के साथ क्वॉन्टिटी भी अच्छी हो , यानी भरपूर खाएं। कम खाने से बीपी और लो हो सकता है। 

- अगर बीपी एकदम लो हो गया है तो कॉफी या चाय पी लें। इससे फौरी राहत मिलती है और चाय-कॉफी में मौजूद टेनिन व निकोटिन बीपी को बढ़ा देता है। लेकिन लंबे समय में इसका कोई फायदा नहीं होगा। 

- नॉर्मल बैलेंस डायट लें। स्प्राउट्स , दालें , काला चना , फल या सब्जियां खूब खाएं। हर दो-तीन घंटे में हल्का-फुल्का खाएं। इससे बीपी में बहुत उतार-चढ़ाव नहीं होगा। 

- केसर , खजूर , केला , दालचीनी और काली मिर्च खाएं। 

- पानी खूब पीएं। दिन में 10-12 गिलास पानी जरूर पीएं। अगर मरीज के अंदर सोडियम लेवल कम है तो डॉक्टर उससे डायट में नमक बढ़ाने को कहते हैं। 

नोट : एक्सर्साइज न करने से बीपी लो हो सकता है। नियमित रूप से एक्सर्साइज जरूर करें। 

हेपटाइटिस 
हेपटाइटिस ए , बी , सी , डी और ई के मरीजों को नॉर्मल हेल्थी डायट लेनी चाहिए। किसी भी हेपटाइटिस में खाने का खास परहेज नहीं होता। बस , सिरोसिस होने पर नमक कम खाना बेहतर होता है। बहुत तला-भुना खाना नहीं खाना चाहिए। इससे लिवर पर दबाव पड़ता है। कार्बोहाइट्रेड खूब खाने चाहिए और उनके मुकाबले प्रोटीन थोड़े कम क्योंकि इन्हें पचाने के लिए लिवर को काफी मेहनत करनी पड़ती है। हालांकि मरीज की लिवर की स्थिति देखकर भी डॉक्टर प्रोटीन की मात्रा तय करते हैं। ज्यादातर लोग मानते हैं कि उन्हें हेल्थी और तेल नहीं लेना चाहिए , जो कि सही नहीं है। 

- हाई कार्बोहाइड्रेट और मीठी चीजें खाएं , जैसे कि केला , चीकू , आलू , शकरकंद , जैम , ग्लूकोज , रूहअफजा आदि। मीठे में कार्बोहाइड्रेट ज्यादा होते हैं , जिनसे एनर्जी ज्यादा मिलती है और लिवर पर भी जोर नहीं पड़ता। 

- ऐनिमल प्रोटीन के मुकाबले वेजिटेबल प्रोटीन ज्यादा खाएं। जैसे कि मूंग दाल , काला चना , लोबिया , अरहर ,मलका मसूर आदि। मूंग दाल खासतौर से फायदेमंद है। खिचड़ी में भी डालकर खा सकते हैं। 

- गाय का फैट-फ्री दूध और छाछ ले सकते हैं। दूध से बने हुए कस्टर्ड , खीर आदि भी फायदेमंद है। 

- खिचड़ी , दलिया , चावल , रोटी , मक्का , सूप , उपमा , पोहा , इडली आदि खाएं। मीठे फल खूब खाएं। सब्जियों में हरी सब्जियां , आलू और जिमिकंद खाएं। 

- सलाद को हल्का भाप में पका लें। इससे इनफेक्शन होने का खतरा कम होता है। 

- फ्रेश जूस , सोया मिल्क और नारियल पानी पिएं। 

- तला-भुना न खाएं। इससे पहले से कमजोर हो चुके लिवर पर प्रेशर पड़ता है। 

- गैस बनानेवाली चीजें जैसे राजमा , छोले , उड़द दाल आदि कम खाएं। 

- नमक कम कर दें। खासकर सिरोसिस है तो नमक बेहद कम कर दें। ज्यादा खाने से शरीर में पानी जमा हो सकता है। 

- कच्ची सब्जियां खाने से बचना चाहिए। इससे इनफेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है। 

- शराब पीना बिल्कुल बंद कर दें। इलाज के बाद अगर डॉक्टर इजाजत दे तो ही शराब पिएं और वह भी लिमिट में। 

नोट : शरीर के बाकी अंगों के मुकाबले लिवर में ठीक होने और फिर से तैयार होने की क्षमता सबसे ज्यादा होती है , इसलिए मरीज संयम न खोए और अपनी दवा और डायट का पूरा ध्यान रखें। 

अस्थमा 
अस्थमा के मरीजों के लिए अलग से कोई डायट रेकमेंड नहीं की जाती। उन्हें बस न्यूट्रिशन से भरपूर खाना खाने की सलाह दी जाती है। ये लोग आमतौर पर ऐलर्जी के शिकार जल्दी बनते हैं , इसलिए इन्हें उन चीजों से दूर रहने की सलाह दी जाती है , जिनसे ऐलर्जी हो सकती है , जैसे कि अंडा , मछली या तीखी महक वाली चीजें। हालांकि हर किसी को ऐलर्जी हो , या सबको एक ही चीज से ऐलर्जी हो , यह जरूरी नहीं है। 

- जिस वक्त अस्थमा का अटैक होता है , उस वक्त मरीज को पानी ज्यादा पीना चाहिए। पानी के साथ-साथ जूस ,नारियल पानी , लस्सी आदि भी भरपूर पिएं क्योंकि लगातार तेज-तेज सांस लेने से पानी की कमी हो जाती है। 

- हाई फाइबर और प्रोटीन से भरपूर डायट लेनी चाहिए। इस दौरान मसल्स ज्यादा काम करती हैं , इसलिए प्रोटीन से भरपूर दालें , सोयाबीन , अंडा आदि खाएं। 

- विटामिन बी वाली चीजें जैसे कि हरी पत्तेदार सब्जियां और दालें खाएं। ब्रोकली खासतौर पर फायदेमंद है। मैग्नीशियम से भरपूर सूरजमुखी का तेल या बीज खाएं। 

- इनफेक्शन से बचने की कोशिश करें। जिस चीज से ऐलर्जी है , वह न खाएं। साथ ही बहुत ज्यादा ठंडा या गर्म खाना न खाएं। सामान्य तापमान वाली चीजें खाना बेहतर है। 

- अस्थमा के मरीज को खट्टा और सामान्य ठंडा नहीं खाना चाहिए , यह मिथ है। जिन्हें इनसे ऐलर्जी होती है ,उन्हें ही इससे नुकसान होता है। बाकी मरीज खा सकते हैं , लेकिन एक्ट्रीम टेंपरेचर यानी बहुत ज्यादा ठंडी और बहुत ज्यादा गर्म चीजों से बचें। 

- आयुर्वेद के मुताबिक कफ बढ़ानेवाली चीजें न खाएं , जैसे कि दूध से बनी चीजें और खट्टी व ठंडी चीजें। 

किसका सोर्स क्या 
कार्बोहाइड्रेट : अनाज , चावल , दलिया , कॉर्नफ्लैक्स , ब्रेड , बिस्कुट , नूडल्स , मैदा , शुगर , आलू , शकरकंद, चुकंदर आदि। दालों में भी करीब 50 फीसदी कार्बोहाइड्रेट होते हैं। किशमिश , मुनक्का जैसे ड्राइ-फ्रूट्स में हेल्थी कार्बोहाइड्रेट होते हैं। 

प्रोटीन : नॉनवेज , अंडा , फिश , दालें , स्प्राउट्स , सोया आदि प्रोटीन के मुख्य सोर्स हैं। 

विटामिन/मिनरल : सब्जियां , फल , ड्राइ-फ्रूट्स , छिलके वाली चीजें जैसे कि दालें , गेहूं का चोकर , ब्राउन राइस आदि। 

फैट : बादाम , अखरोट , पिस्ता , चिलकोजा , सनफ्लावर बीज , ऑलिव ऑइल आदि में हेल्थी फैट होते हैं। बाकी सभी तरह के तेल और घी फैट का सोर्स हैं। 

फाइबर : फल , सब्जियां , दलिया , ब्राउन राइस , चोकर आदि। 

ओमेगा थ्री : फिश , अलसी , बीन्स , बादाम , सरसों का तेल आदि।

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