स्वास्थ्य चर्चा के क्रम में आज हम भोजन में फाइबर की उपयोगिता के बारे में चर्चा करेंगे.वैसे तो आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में अनेक तरह की बीमारियाँ हमें अपनी चपेट में ले चुकी हैं लेकिन आमतौर पर जिस बीमारी से आज हर इंसान परेशान है, वह है पेट की बीमारी। आज ज्यादातर लोग पेट दर्द, एसिडिटी, जलन, खट्टी डकार जैसी पेट की बीमारियों से परेशान हैं। इस तरह की समस्याएँ रेशेदार भोजन न करने से होती हैं।
भोजन के उचित पाचन के लिए फाइबर की जरुरत होती है। आपको यह महसूस कराने के लिए कि आपका पेट भरा है, आहार संबंधी फाइबर आवश्यक है। फाइबर की कमी से कब्ज़, बवासीर तथा रक्त में कोलोस्ट्राल और शक्कर की मात्रा का बढ़ना आदि समस्याएँ आ सकती हैं। इसके विपरीत इसकी अत्यधिक मात्रा के उपयोग से आंतडियों में परेशानी, दस्त या निर्जलीकरण की समस्या भी आ सकती है। वे व्यक्ति जो अपने भोजन में फाइबर के सेवन को बढ़ाते हैं, उन्हें पानी का सेवन भी बढ़ाना चाहिए। जब फाइबर की बात आती है तो छोटे से परिवर्तन आपके फाइबर के सेवन और और समग्र स्वास्थ्य पर एक बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं। फाइबर के सेवन से दिल की बीमारी, मधुमेह, मोटापा और विशिष्ट प्रकार के कैंसर से बचा जा सकता है। महिलाओं को दिनभर में 25 ग्राम रेशा और पुरुषों को लगभग 35 से 40 ग्राम रेशे की आवश्यकता होती है। लेकिन हम केवल 15 ग्राम रेशा ही खा पाते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि आप अपना मनपसंद खाना छोड़ दें या अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएं।
फाइबर दो तरह का होता है। पहला जल में घुलनशीन और दूसरा अघुलनशील होता है। ये दोनों साथ मिल कर आंतो की सफाई करते हैं। आंतो को स्वास्थ और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
फाइबर दो तरह का होता है। पहला जल में घुलनशीन और दूसरा अघुलनशील होता है। ये दोनों साथ मिल कर आंतो की सफाई करते हैं। आंतो को स्वास्थ और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
घुलनशील फाइबर जैसे पेक्टिन, गम आदि हमे बेरी प्रजाति के फल, अलसी, आड़ू,सेब, ओट, ग्वार की फली आदि से प्राप्त होता है। आंत के प्रोबायोटिक जीवाणु इसका फर्मेंटेशन करते हैं, जिससे शॉर्ट चेन फैटी एसिड बनते हैं। ये जीवाणुओं को पोषण देता है। अघुलनशील फाइबर हमें साबुत अन्न, अलसी, दाल, मटर, मसूर, मेवे, सब्जी और फलों से प्राप्त होता है। इनका फर्मेंटेशन नहीं होता है। लेकिन फिर भी ये बड़े काम की चीज है। ये मल को आयतन प्रदान करते हैं और मल को बाहर निकालने में मदद करते हैं।
१.हृदय रोग का जोखिम कम करता है।
२.रक्त शर्करा को नियंत्रित रखता है।
३.आंतो में हितकारी जीवाणुओं का विकास और पोषण करता है।
४.अतिसक्रिय आहार पथ को सांत्वना और आराम पहुँचाता है।
५.बुरे कॉलेस्टेरोल को कम करता है।
अघुलनशील फाइबर के फायदे
१.कब्जी और दस्त दोनों को ठीक करता है।
२.आंत का शोधन, मर्दन और उपचार करता है।
३.टॉक्सिन, कॉलेस्टेरोल, अपशिष्ट को बाहर निकालता है।
४.आंतो की अम्लता को कम करता है।
५.आंतों को कैंसर से बचाता है।
६.यह मल को आकार और आयतन प्रदान करता है।
७.यह छोटी आंत में जमे मलवे और म्यूकस को भी साफ करता चलता है, जिससे पोषक तत्वों का अवशोषण ८.बेहतर हो जाता है।
९.अघुलनशील फाइबर को बाहर निकालने में आंतों की मशक्कत और कसरत भी हो जाती है।
यहाँ कुछ खाद्य पदार्थ बताए गए हैं जिनका उपयोग करके आप फाइबर को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं:
मक्का: फाइबर युक्त अनाज चुनें। ऐसा अनाज चुनें जिसके एक बार के परोसे गए हिस्से में कम से कम 4 ग्राम फाइबर हो जैसे मक्का आदि।
दालें: अपने नियमित अनाज में उच्च फाइबर युक्त अनाज मिलाएं जैसे राजमा, विभिन्न प्रकार की दालें आदि।
फल: फलों का सेवन ज़्यादा करें। नाश्ते या मिष्ठान्न के रूप में फल खाएं और फलों का रस सीमित मात्रा में पीएं। सेब और नाशपाती जैसे फलों को छिलके सहित खाएं। छिलकों में ही सबसे अधिक फाइबर होता है।
फल: फलों का सेवन ज़्यादा करें। नाश्ते या मिष्ठान्न के रूप में फल खाएं और फलों का रस सीमित मात्रा में पीएं। सेब और नाशपाती जैसे फलों को छिलके सहित खाएं। छिलकों में ही सबसे अधिक फाइबर होता है।
रेशेदार सब्जियां :सब्ज़ियों का सेवन अधिक करें। सब्जियाँ फाइबर का अच्छा स्त्रोत हैं उदाहरण के लिए मूली, पत्तागोभी आदि।
ब्राउन ब्रेड : गेंहूँ से बनी हुई ब्रेड और पास्ता का उपयोग करें।
सूखे मेवे: सलाद, दही या अन्न में सूखे मेवे, दानें मिलाएं।
ओटमील : ओट्स में बीटा ग्लूकन होता है जो कि एक स्पेशल टाइप का फाइबर होता है। यह कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम कर के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है।
सूखे मेवे: सलाद, दही या अन्न में सूखे मेवे, दानें मिलाएं।
गेहूँ का आटा : साबूत गेहूं में रेशेदार चोकर पाया जाता है, जो पाचनतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।अपने मनपसंद व्यंजनों में मैदे के स्थान पर गेंहूँ के आटे का उपयोग करें।गेहूं का चोकर फाइबर का सबसे संक्रेन्द्रित स्रोत है।गेहूं के चोकर में अघुलनशील फाइबर होता है, जिसे सैलूलोज कहते हैं। इसमें कैल्सियम,
सिलीनियम, मैग्नीशियम, पोटैसियम, फॉस्फोरस जैसे खनिजों के साथ-साथ विटमिन ई और बी
कॉम्प्लेक्स पाए जाते हैं।
ब्राउन चावल :सामान्य चांवल के स्थान पर ब्राउन राईस का उपयोग करें।
मटर : मटर को चाहे उबाल कर खाएं या फिर कच्ची ही खाइये। एक कप मटर के दानों में 16.3 ग्राम रेशा मिलेगा।
ओटमील : ओट्स में बीटा ग्लूकन होता है जो कि एक स्पेशल टाइप का फाइबर होता है। यह कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम कर के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है।
भोजन में फाइबर बहुत रोचक जानकारी... आभार.
जवाब देंहटाएंबेहद उपयोगी जानकारी दिए राजेंद्र जी आपका आभार।
जवाब देंहटाएंbilkul zaruri hai , bilkul sahi likha hai
जवाब देंहटाएंupyogi aur rochk prastuti
जवाब देंहटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24-05-2013) को "ब्लॉग प्रसारण-5" पर लिंक की गयी है. कृपया पधारे. वहाँ आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंआपका आभार है की इस स्वास्थ्य आर्टिकल को ब्लॉग प्रसारण पर जगह दिए.
हटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी दिए खान पान के बारे में,शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंभोजन में फाइबर की उपयोगिता पर बेहतरीन जानकारी,धन्यबाद.
जवाब देंहटाएंआज तो एक नयी जानकारी मिली फाइबर के बारे में,आभार.
जवाब देंहटाएंbahut hi upyogi janakari ki prstuti.
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी मिली, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
एक बार पुन: कह रहा हूँ कि आप बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं। बधाई ऐसे स्वास्थ्यप्रद और स्वास्थ्य-सम्बन्धी जानकारी से पूर्ण आलेखों के लिए।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आलेख अलबत्ता दस्त लगने ,डायरिया होने पर फाइबर का प्रयोग न करें आतों का काम बढ़ेगा .जो तरकारियाँ खाने के बाद दाँतों में फंसजाती हैं टूथ पिक मांगतीं हैं वही अच्छी .
जवाब देंहटाएंधन्यबाद आदरणीय,ये भी अच्छा टिप्स फाइबर के बारे में.
हटाएंहमेशा की तरह बहुत अच्छी जानकारी ...आभार
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