एंटीबायोटिक्स को एंटीबैक्टीरियल्स भी कहते हैं। यह एक प्रकार की दवा है, जिसका उपयोग बैक्टीरिया द्वारा किए गए संक्रमण का उपचार करने के लिए किया जाता है। बैक्टीरिया सूक्ष्मजीव होते हैं, जो कई प्रकार के संक्रमणों का कारण बनते हैं। एंटीबायोटिक्स या तो बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं या इन्हें प्रजनन करने से रोकते हैं। कुछ एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल फंगस और प्रोटोजोआ की रोकथाम के लिए भी किया जाता है, लेकिन इनमें वायरस को नष्ट करने की क्षमता नहीं होती। बैक्टीरियल एंटीबायोटिक दवाएं ‘ब्राड स्पैक्ट्रम’ प्रभाव वाली होती है। वे तुरंत आराम देती है। एलैग्जैण्डर फ्लेमिंग ने 1928 में पैंसिलीन दवाई का निर्माण उल्ली पैनीसीलियमनोट्रेटेक द्वारा किया। एक्टीनोमाईसीन, स्टैप्टोमाईसीन आदि दवाओं का निर्माण 1942 को हुआ था। पिछले पचास वर्षों में 7000 एटीबायोटिक दवाओं का निर्माण हुआ है। हर वर्ष 300 ने एंटीबायोटिक खोजे जाते हैं। यह दवाएं-बैसीलस और सूडोमोनस बैक्टीरिया से बनती है। स्ट्रेप्टामाइसीज ग्रुप में 40 से ज्यादा एंटीबायोटिक दवाएं बनती हैं- दवाओं के अतिरिक्त-मछली और मीट की प्रिजर्व करने में भी प्रयोग होते हैं। टीबी के 20 प्रतिशत से ज्यादा लोगों पर एंटीबायोटिक दवा का भी असर नहीं होता। इनसे दस्य या डायरिया होने का खतरा रहता है।
हमारी आंतों में ई-कोलाई लाभदायक बैक्टीरिया रहते हैं वह हमारे लिये विटामिन बी. और के.बनाते हैं। वे भी नष्ट हो जाते हैं। अत: हमारी आंतों का माईक्रोफ्लोरा बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है- दवाइयां लेते समय सदा सावधानी बरतें।
एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल
* एंटीबायोटिक्स डॉक्टर की सलाह के बगैर न लें। हर बीमारी के लिए अलग प्रकार के एंटीबायोटिक्स होते हैं, जिसे डॉक्टर की सलाह से ही समझ सकते हैं।
* जितनी मात्रा में और जिस समय डॉक्टर बताएं, उसी अनुसार एंटीबायोटिक्स लें, क्योंकि बताई गई मात्रा और समय का ध्यान न रखना नुकसान पहुंचा सकता है।
* डॉक्टर जितने समय के लिए एंटीबायोटिक्स कोर्स करने की सलाह दें, उसे अवश्य पूरा करें, तबीयत ठीक लगने पर बीच में ही इनका सेवन बंद न कर दें।
* अगर आप उपचार तुरंत बंद कर देंगे तो कुछ बैक्टीरिया जीवित बच जाएंगे और आपको पुन: संक्रमित कर देंगे।
* हर इंसान के शरीर के मुताबिक अलग एंटीबायोटिक्स लाभ देते हैं, इसलिए किसी दूसरे व्यक्ति के लिए दिए गए एंटीबायोटिक्स का सेवन कतई न करें।
* इन्हें खाना खाने से एक घंटा पहले या दो घंटे बाद लेना चाहिए।
कैसे कार्य करते हैं
बैक्टीरिया के तेजी से बढ़ने और लक्षण दिखाने से पहले शरीर का रोग प्रतिरोधक तंत्र सामान्य तौर पर इन्हें नष्ट कर सकता है। हमारे पास विशेष श्वेत रक्त कणिकाएं होती हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया पर आक्रमण करती हैं। कभी-कभी जब बैक्टीरिया का संक्रमण गंभीर होता है, तब एंटीबायोटिक्स की सहायता लेनी पड़ती है, जो बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं या उनके विकास को धीमा कर देते हैं। कई बार संक्रमण को रोकने के लिए एंटीबायोटिक्स को सर्जरी के पहले भी दिया जाता है।
एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस
बिना सोचे-समझे या अत्यधिक मात्रा में एंटीबायोटिक्स का सेवन करना एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस का सबसे प्रमुख कारण है। पूरे विश्व में इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही है कि एंटीबायोटिक्स का उपयोग बहुत अधिक बढ़ रहा है। इनका अत्यधिक इस्तेमाल ही बैक्टीरिया का संक्रमण बढ़ने का सबसे प्रमुख कारण है, जो एंटीबैक्टीरियल दवाओं के प्रति रेजिस्टेंट हो गए हैं। एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस ने विश्व स्तर पर जन स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया है। अगर यह ट्रेंड लगातार चलता रहा तो लाखों जिंदगियां खतरे में पड़ जाएंगी।
एंटीबायोटिक्स लेने के तरीके
ओरल (मुंह से लेना): टेबलेट्स, कैप्सूल्स या सिरप के रूप में।
टॉपिकल (एक्सटर्नल): क्रीम्स, लोशन्स, स्प्रे और ड्रॉप्स।
इंजेक्शन्स: इंजेक्शन मांसपेशियों में एंटीबायोटिक्स को पहुंचाता है या एंटीबायोटिक्स को ड्रिप से सीधे रक्त में पहुंचाया जाता है।
एंटीबायोटिक्स के दुष्प्रभाव
सर्वाधिक गंभीर संक्रमण के लिए जो क्लिंडामाइसिन एंटीबायोटिक दवा ली जाती है, आमतौर पर उसके दुष्प्रभाव अधिक दिखाई देते हैं। हालांकि पेनिसिलीन, सेफैलोस्पोरिन और इरिथ्रोमाइसिन के इस्तेमाल से भी ये लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
- मुंह, पाचन मार्ग और योनि का फंगल इन्फेक्शन।
- किडनी स्टोन का निर्माण।
- असामान्य ब्लड क्लॉटिंग।
- सूरज की किरणों के प्रति संवेदनशील होना।
- कुछ की बड़ी आंत में सूजन आ जाती है, जिससे डायरिया हो सकता है।
- एंटीबायोटिक्स लेने के तुरंत बाद एलर्जिक रिएक्शन दिखाई देना।
- अधिक सेवन से मोटापा बढ़ना।
-एंटीबायोटिक दवाएं आंतों के लाभदायक बैक्टीरिया को मार देती हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- छोटी उम्र में ही एंटीबायोटिक्स का अधिक सेवन इम्यून सिस्टम को अग्नाशय पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे शरीर में इंसुलिन के निर्माण की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इससे डायबिटीज की आशंका बढ़ जाती है।
मिथक और तथ्य
मिथक: एंटीबायोटिक्स किसी भी संक्रमण को जड़ से समाप्त कर सकते हैं।
तथ्य: सच यह है कि एंटीबायोटिक्स वायरस से होने वाले संक्रमण के उपचार में कारगर नहीं हैं। हां, बैक्टीरिया, फंफूद आदि से होने वाले संक्रमणों के उपचार में ये काफी हद तक कारगर हैं, लेकिन कुछ बैक्टीरिया भी इनके प्रति एक प्रकार की इम्युनिटी उत्पन्न कर लेते हैं, जिससे उन पर एंटीबायोटिक्स का प्रभाव नहीं होता।
मिथक: एंटीबायोटिक्स लेने से कोई नुकसान नहीं होता।
तथ्य: यह भ्रम है। सच यह है कि एंटीबायोटिक्स के अधिक प्रयोग से शरीर को नुकसान पहुंचता है। कई बार बीमारी खत्म होने की बजाय और बढ़ जाती है।
मिथक: ये सर्दी-जुकाम और फ्लू के लिए कारगर हैं।
तथ्य : एंटीबायोटिक्स वायरस से होने वाले संक्रमणों से नहीं लड़ते। अगर सर्दी-जुकाम, फ्लू, खांसी, ब्रोंकाइटिस, गले की खराश बैक्टीरिया से हुए हों, तभी ये कारगर हैं। अगर वायरस आपको बीमार बना रहे हैं तो एंटीबायोटिक्स लेने से लाभ की जगह नुकसान है।
न करें इनका इस्तेमाल
- जिनकी किडनी या लिवर ठीक प्रकार से काम न कर रहे हों।
- गर्भवती महिलाएं।
-स्तनपान कराने वाली महिलाएं।
- एंटीबायोटिक्स दूसरी दवाओं से भी रिएक्शन कर लेते हैं, इसलिए अगर आप एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं तो दूसरी दवाओं का इस्तेमाल न करें।
(एससीआई इंटरनेशनल हॉस्पिटल के इंटरनल मेडिसिन के कंसल्टेंट डॉ. हिमांशु शेखर व यथार्थ सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. निशांत सिंह से बातचीत पर आधारित-हिंदुस्तान)