होमियोपैथी को लेकर कई तरह के मिथ और गलत अवधारणाएं हैं। कई लोगों को तो होमियोपैथी पर अटूट विश्वास है, जबकि कई अन्य इसे कौड़ी का भाव नहीं देते। इसकी वजह होमियोपैथी से जुड़ी लोगों की गलतफहमी है, जबकि यह दुनिया भर में इलाज की एक जानी-मानी पद्धति है। इस पद्धति को लेकर लोगों की आम गलतफहमियां क्या हैं, और क्या है हकीकत, जानते हैं. होमियोपैथी दुनिया भर में जानी-मानी इलाज पद्धति है, लेकिन इसकी पॉपुलरिटी आज भी एलोपैथी की तुलना में काफी कम है। इसके कारणों में से प्रमुख है इस पैथी को लेकर प्रचलित कुछ मान्यताएं।
देर से असर करने वाली पैथी नहीं है होमियोपैथी
होमियोपैथी को लेकर जो सबसे आम धारणा है, वह यह कि यह बड़ी सुस्त रफ्तार से असर करता है और मरीज को काफी देर से राहत मिलती है। इस मान्यता के उलट, सच यह है कि अगर मरीज के केस का गहराई से अध्ययन कर सही ट्रीटमेंट किया जाए, तो होमियोपैथी तुरंत असरकारी साबित होता है। जब कोई गंभीर बीमारी हो, तो इलाज लंबे समय तक जारी रखना पड़ सकता है। अगर बीमारी काफी पुरानी है और बुरी तरह मरीज को चपेट में ले चुकी है, तो इलाज कई साल भी चल सकता है, क्योंकि हैमियोपैथी में मरीज की स्थिति पर लगातार नजर रखते हुए सावधानी से ट्रीटमेंट किया जाता है।
पैथॉलजी से ज्यादा जोर साइन और सिम्पटम पर
लोग ऐसा मानते हैं कि होमियोपैथी से इलाज करने वाले डॉक्टर पैथॉलजी में विश्वास नहीं करते। इसीलिए वे मरीज की कोई पैथॉलजिकल जांच वगैरह नहीं करवाते। सच बात यह है कि किसी भी फिजिशियन के लिए सबसे पहले जरूरी है बीमारी को जानना। उसके बाद ही वह बीमारी के सिम्पटम्स, पैथॉलजी, कोर्स, कॉम्प्लिकेशन आदि के बारे में सही जानकारी ले सकता है। होमियोपैथी के तहत इलाज के दौरान मरीज की समस्याओं को उसके संपूर्ण व्यक्तित्व (सायकॉलजिकल व फिजिकल) के संदर्भ में देखा जाता है, न कि सिर्फ समस्याग्रस्त अंगों तक सीमित रहकर।
स्टेरॉयड्स के प्रयोग की धारणा गलत
आम तौर पर माना जाता है कि होमियोपैथिक फिजिशियंस मरीज का इलाज करने के लिए स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल करते हैं। अस्थमा, आर्थराइटिस आदि क्रॉनिक बीमारियों के इलाज को लेकर तो यह मान्यता लोगों में गहराई तक जड़ जमाई हुई है। लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसे मरीजों को पहले ही स्टेरॉयड्स दिए जा चुके होते हैं। होमियोपैथिक फिजिशियंस अपने पास ऐसे केस आने पर केस की डीटेल स्टडी करते हैं और मरीज के सिम्पटम्स व साइन समझने की कोशिश करते हैं। वे मरीज की हेरिडेटरी हिस्ट्री भी स्टडी करते हैं और यह भी समझने की कोशिश करते हैं कि मरीज को अपने आसपास की किन चीजों से परेशानी होती है। तमाम बातों को समझते हुए उसके अनुकूल दवा दी जाती है। ऐसे में स्टेरॉयड्स का अनावश्यक और नियमित इस्तेमाल होमियोपैथी के सिद्धांतों के खिलाफ है और कोई भी एक्सपर्ट डॉक्टर ऐसा नहीं करता।