शनिवार, 8 मार्च 2014

"बीमारी और परहेज"

संतुलित भोजन  का सीधा कनेक्शन हमारी सेहत के साथ है। संतुलित भोजन से न सिर्फ बीमारियों से बचा जा सकता है ,बल्कि बीमार होने के बाद रिकवरी भी जल्दी हो सकती है। क्रॉनिक और लाइफस्टाइल बीमारियों में अच्छी डायट की भूमिका और बढ़ जाती है। एक्सपर्ट्स की सलाह से हम बता रहे हैं , कुछ आम बीमारियों में डायट क्या हो।खाद्य पदाथों को नजरंदाज करके और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करके आप ज्यादा जल्दी ठीक हो सकते हैं और बीमारी के लक्षणों को काफी हद तक कम कर सकते हैं। आइये जानते हैं कि वे कौन से आहार हैं जिन्‍हें बीमार पड़ने पर कभी नहीं खाने चाहिये, नहीं तो तबियत और भी ज्‍यादा खराब हो जाती है।

जो खान पान हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है या जो रोग बढ़ाने में सहायक है या वह रहन सहन जो रोग को बढ़ाने में मदद करते है उनको अपनाने का नाम ही परहेज है।  हमारे शरीर में जो रोग होते है वे मुख्यतः वात, पित्त, कफ की श्रेणियों में आते है। जैसे खांसी, जुकाम, फोड़े-फुंसी, कफ के दायरे में आते है। ऐसे में कफ को बढ़ाने वाली वस्तुओ जैसे – चावल, दही, केला आदि से परहेज जरूरी है इसके बाद पित्त आता है। अरीर्ण, जलन, अधिक प्यास, घवराहट, खुश्की पित्त के लक्षण होते है अत: तेज धुप, गर्मी, अधिक मेहनत, शोर शराबा, गर्म व खुश्क तासीर की चीजों से बचना इसका परहेज है। आइये अब कुछ बिमारियों में पथ्य और अपथ्य भोजन पर चर्चा करते हैं। 
डायबीटीज़ :
शुगर के मरीजों के लिए जरूरी है कि वे बैलेंस्ड डायट लें। ज्यादा न खाएं , लेकिन तीनों वक्त खाना खाएं और बीच में दो बार स्नैक्स भी लें। उन्हें प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का अच्छा कॉम्बिनेशन लेना चाहिए। मसलन , नाश्ते में दूधवाला दलिया लें या फिर ब्रेड के साथ अंडा लें। इसी तरह खाने में सब्जी के साथ दाल भी लें। इससे शुगर का लेवल सही रहता है। असल में , कार्बोहाइड्रेट से शुगर जल्दी बनती है , जबकि प्रोटीन से धीरे-धीरे शुगर रिलीज़ होती है , जिससे ज्यादा देर तक पेट भरा हुआ लगता है और ज्यादा खाने से बच जाते हैं। कुल खाने की 55-60 फीसदी कैलरी कार्बोहाइड्रेट से , 15-20 फीसदी प्रोटीन से और 15-20 फीसदी फैट से मिलनी चाहिए। ज्यादा तला-भुना न खाएं। 

- लो ग्लाइसिमिक इंडेक्स वाली चीजें यानी जो शरीर में जाकर धीरे-धीरे ग्लूकोज़ में बदलती हैं , खानी चाहिए। इनमें हरी सब्जियां , सोया , मूंग दाल , काला चना , राजमा , ब्राउन राइस , अंडे का सफेद हिस्सा आदि शामिल हैं। 

- खाने में करीब 20 फीसदी फाइबर जरूर होना चाहिए। गेहूं से चोकर न निकालें। लोबिया , राजमा , स्प्राउट्स आदि खाएं क्योंकि इनसे प्रोटीन और फाइबर दोनों मिलते हैं। स्प्राउट्स में ऐंटि-ऑक्सिडेंट भी काफी होते हैं। 

- दिन भर में 4-5 बार फल और सब्जियां खाएं लेकिन एक ही बार में सब कुछ खाने की बजाय बार-बार थोड़ा-थोड़ा करके खाएं। फलों में चेरी , स्ट्रॉबेरी , सेब , संतरा , अनार , पपीता , मौसमी आदि और सब्जियों में करेला, घीया , तोरी , सीताफल , खीरा , टमाटर आदि खाएं। 

- रोजाना एक मुट्ठी ड्राइ-फ्रूट्स खाएं यानी 10-12 बादाम या 5-7 बादाम और 3-4 अखरोट खा सकते हैं। 

- घीया , करेला , खीरा , टमाटर , अलोवेरा और आंवला का जूस खास फायदेमंद है। 

- लो फैट दही और स्किम्ड/डबल टोंड दूध लेना चाहिए। ग्रीन टी पीना अच्छा है। चाय के साथ हाई फाइबर बिस्किट या फीके बिस्किट ले सकते हैं। बीपी नहीं है तो नमकीन बिस्किट भी खा सकते हैं। 

- जौ (बारले) , काला चना , मूंग दाल और जामुन खासतौर पर फायदेमंद हैं। इनका ग्लाइसिमिक इंडेक्स भी कम है और ये पित्त के इंबैलेंस को कम करने के साथ-साथ अगर अंदर सूजन हो गई है तो उसे भी कम करते हैं। 

- काला नमक डालकर छाछ पिएं। नारियल पानी पिएं। घर में बने सूप पिएं। 

- नीम-करेला पाउडर ले सकते हैं। हालांकि इसका कोई फौरी फायदा नहीं होता कि कोई उलटा-सीधा खाने के बाद सोचे कि दो चम्मच नीम-करेला पाउडर खा लेंगे तो ठीक हो जाएगा। यह गलत है। लेकिन लंबे वक्त में यह जरूर फायदा पहुंचाता है। 

परहेज करें 
- चीनी , शक्कर , गुड़ , गन्ना , शहद , चॉकलेट , पेस्ट्री , केक , आइसक्रीम आदि मीठी चीजें न खाएं। 

- हाई ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाली चीजों से बचें क्योंकि ये जल्दी ग्लूकोज में बदल जाती हैं। इससे शरीर में शुगर एकदम से बढ़ जाता है। ऐसे में इंसुलिन को शुगर कंट्रोल करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। इनमें प्रमुख हैं मैदा , सूजी , सफेद चावल , वाइट ब्रेड , नूडल्स , पिज़्ज़ा , बिस्किट , तरबूज , अंगूर , सिंघाड़ा , चीकू , केला, आम , लीची आदि। 

- पूरी , पराठें , पकौड़े आदि न खाएं। इनसे वजन के साथ-साथ कॉलेस्ट्रॉल भी बढ़ता है। 

- जूस से बचना चाहिए क्योंकि इनमें शुगर की मात्रा ज्यादा होती है। पैक्ड जूस बिल्कुल न लें। सीधे फल खाना ज्यादा फायदेमंद है। 

- सब्जियों में आलू , अरबी , कटहल , जिमिकंद , शकरकंद , चुकंदर न खाएं। इनमें स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट काफी ज्यादा होता है , जो शुगर बढ़ा सकते हैं। वैसे , इन्हें उबाल कर कभी-कभी खाया जा सकता है लेकिन फ्राई करके कभी न खाएं। 

- फलों में आम , चीकू , अंगूर , केला , पाइन ऐपल , शरीफा आदि से परहेज करें क्योंकि इनमें शुगर काफी ज्यादा होती है। 

- मैदा और मक्के का आटा न खाएं। इनका ग्लाइसिमिक इंडेक्स ज्यादा होता है और ये रिफाइन भी होते हैं। 

- वाइट राइस की बजाय ब्राउन राइस खाएं। चावलों का मांड निकालकर खाना सही नहीं है क्योंकि इससे सारे विटामिन और मिनरल निकल जाते हैं। 

- ऐनिमल फैट (मक्खन , पनीर , मीट आदि) कम कर देना चाहिए। 

- शराब डॉक्टर की सलाह पर ही पीएं। खाली पेट बिल्कुल न पीएं। इससे हाइपोग्लाइसीमिया (शुगर लेवल का एकदम नीचे गिर जाना) हो सकता है। ज्यादा शराब पीने से यूरिक एसिड और ट्राइग्लाइसराइड बढ़ता है और शुगर को कंट्रोल करना मुश्किल होता है। 

नोट : शुगर के इलाज में डायट का रोल 60 फीसदी है। बाकी 40 फीसदी एक्सर्साइज और स्ट्रेस मैनेजमेंट पर निर्भर करता है। 

कॉलेस्ट्रॉल 
कॉलेस्ट्रॉल के मरीजों को हेल्थी और बैलेंस्ड डायट लेनी चाहिए। वजन कंट्रोल में रखने के लिए उन्हें कम कैलरी खानी चाहिए। ध्यान देनेवाली बात यह है कि कॉलेस्ट्रॉल के कई मरीज फैट पूरी तरह बंद कर देते हैं। यह सही नहीं है क्योंकि शरीर के लिए फैट्स भी जरूरी हैं , बस क्वॉलिटी और क्वॉन्टिटी का ध्यान रखें। 

- तेलों का सही बैलेंस जरूरी है। एक दिन में कुल तीन चम्मच तेल काफी है। तेल बदल-बदल कर और कॉम्बिनेशन में खाएं , मसलन एक महीने सरसों और मूंगफली का तेल यूज करें तो दूसरे महीने रिफाइंड और कनोला का। ये सिर्फ उदाहरण हैं। आप अपनी पसंद से कॉम्बिनेशन बना सकते हैं। कॉम्बिनेशन और बदल-बदल कर तेल खाने से शरीर को सभी जरूरी फैट्स मिल जाते हैं। ऑलिव ऑइल यूज करें। इससे कॉलेस्ट्रॉल कम होता है , लेकिन इसे ज्यादा गरम न करें। इसे सलाद आदि पर डालकर खा सकते हैं। 

- ऐसी चीजें खाएं , जिनमें फाइबर खूब हो , जैसे कि गेहूं , ज्वार , बाजरा , जई आदि। दलिया , स्प्राउट्स ,ओट्स और दालों के फाइबर से कॉलेस्ट्रॉल कम होता है। आटे में चोकर मिलाकर इस्तेमाल करें। 

- हरी सब्जियां , साग , शलजम , बीन्स , मटर , ओट्स , सनफ्लावर सीड्स , अलसी आदि खाएं। इनसे फॉलिक एसिड होता है , जो कॉलेस्ट्रॉल लेवल को मेंटेन करने में मदद करता है। 

- अलसी , बादाम , बीन्स , फिश और सरसों तेल में काफी ओमेगा-थ्री होता है , जो दिल के लिए अच्छा है। 

- मेथी , लहसुन , प्याज , हल्दी , बादाम , सोयाबीन आदि खाएं। इनसे कॉलेस्ट्रॉल कम होता है। एक चम्मच मेथी के दानों को पानी में भिगो लें। सुबह उस पानी को पी लें। मेथी के बीजों को स्प्राउट्स में मिला लें , उसमें फाइबर होता है। 

- एचडीएल यानी गुड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाने के लिए रोजाना पांच-छह बादाम खाएं। इसके अलावा ओमेगा थ्री वाली चीजें अखरोट , फिश लीवर ऑयल , सामन मछली , फ्लैक्स सीड्स (अलसी के बीज) खाने चाहिए। 

- कॉलेस्ट्रॉल लिवर के डिस्ऑर्डर से बढ़ता है। लिवर को डिटॉक्सिफाइ करने के लिए अलोवेरा जूस , आंवला जूस और वेजिटेबल जूस लें। इन तीनों को मिलाकर रोजाना एक गिलास जूस लें। कॉलेस्ट्रॉल ज्यादा है तो दिन में दो गिलास भी पी सकते हैं। 

- नारियल पानी पीएं। शहद ले सकते हैं क्योंकि इससे इम्युनिटी बढ़ती है। 

परहेज करें 
- तला-भुना खाना न खाएं। भाप में पकाकर खाना खाएं। देसी घी , डालडा , मियोनिज , बटर न लें। बिस्किट ,कुकीज , मट्ठी आदि में काफी ट्रांसफैट होता है , जो सीधा लिवर पर असर करता है। उससे बचें। 

- प्रोसेस्ड और जंक फूड से बचें। पेस्ट्री , केक , आइसक्रीम , मीट , पोर्क , भुजिया आदि से भी परहेज करें। 

- फुल क्रीम दूध और उससे बना पनीर या खोया न खाएं। 

- नारियल और नारियल के दूध से परहेज करें। इसमें तेल होता है। 

- उड़द दाल , नमक , और चावल ज्यादा न खाएं। कॉफी भी ज्यादा न पिएं। 

नोट : खूब एक्सर्साइज करें क्योंकि सिर्फ खाने से बहुत फायदा नहीं होता। दवाओं खासकर पेनकिलर दवाओं और स्टेरॉइड क्रीम/इंजेक्शन का इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह पर ही करें , क्योंकि इनका लिवर पर सीधा बुरा असर हो सकता है और शरीर में पानी भी रुक सकता है। स्टेरॉइड हॉर्मोंस होते हैं और इनका इस्तेमाल इनफर्टिलिटी ,सर्जरी , साइनस आदि में परेशानी बढ़ने पर होता है। शराब या सिगरेट पीने से बचें। लिवर और कॉलेस्ट्रॉल के बीच सीधा संबंध है। लिवर को ठीक रखना जरूरी है क्योंकि लिवर ठीक है तो कॉलेस्ट्रॉल बढ़ेगा ही नहीं। दूसरी ओर , कॉलेस्ट्रॉल ज्यादा है तो फैटी लिवर हो सकता है। 

हाई ब्लड प्रेशर 
हाई बीपी दिल की बीमारी का इशारा हो सकता है। डायट में सैचुरेटिड फैट जैसे कि मक्खन , घी , मलाई आदि कम करें क्योंकि इससे दिल की नलियों के संकरा होने का खतरा बढ़ जाता है। जितना हो सके , लो फैट डायट लें।

- कैल्शियम , मैग्नीशियम और पोटैशियम आदि प्रचुर मात्रा में खाएं। ये तत्व दूध , हरी सब्जियां , दालें , संतरा ,स्ट्रॉबेरी , खुबानी , बादाम , केला और सीताफल आदि में खूब मिलते हैं। 

- सूप , सलाद , खट्टे फल , नीबू पानी , नारियल पानी , काला चना , लोबिया , अलसी , आडू , सोया आदि खाना फायदेमंद है। 

- गाजर , पत्ता गोभी , ब्रोकली , पालक , कटहल , टमाटर , लहसुन , प्याज और पत्तेदार सब्जियां खाएं। मौसमी फल खूब खाएं। 

- पानी खूब पीएं। दिन भर में करीब 10 गिलास पानी पिएं। 

- ओमेगा थ्री वाली चीजें , जैसे कि अखरोट , बादाम , फिश ऑयल , अलसी आदि खाएं। रोजाना पांच-सात बादाम और 3-4 अखरोट जरूर खाएं। 

- बीपी के लिए इन दिनों DASH डायट यानी डायट्री अप्रोचिस टु स्टॉप हाइपरटेंशन खूब चलन में है। इसमें क्या न खाएं से ज्यादा जोर इस बात पर होता है कि क्या खाएं। इसे अमेरिकन हार्ट असोसिएशन के साथ-साथ इंडियन नैशनल कैंसर इंस्टिट्यूट ने भी रेकमेंड किया है। इसमें दिन भर में एक किलो तक फल-सब्जियां और कार्बोहाइड्रेट व लो फैट मिल्क प्रॉडक्ट्स पर खूब जोर होता है। 

परहेज करें 
- नमक कम खाएं। दिन में करीब आधा चम्मच नमक काफी है। टेबल सॉल्ट यूज न करें। दिन भर में आधा चम्मच के करीब नमक खाएं। यह हमें खाने से आसानी से मिल जाता है। वैसे , अनाज , फल , सब्जियों आदि से भी हमें नैचरल तरीके से नमक मिल जाता है। हफ्ते में एक बार बिना नमक के खाने की आदत डालें। 

- सॉस , अचार , चटनी , अजीनोमोटो , बेकिंग पाउडर आदि से परहेज करें। पापड़ भी बिना नमक वाला खाएं। 

- पैक्ड या फ्रोजन आइटम न खाएं। इनमें प्रिजरवेटिव होते हैं और नमक भी ज्यादा होता है। इसी तरह बेकरी आइटम्स में सैचुरेटिड फैट ज्यादा होता है। चिप्स , बिस्कुट , भुजिया , कुकीज , फ्रोजन मटर , केक , पेस्ट्री आदि से बचें। 

- खाने में ऊपर से नमक न मिलाएं। सलाद , रायते आदि में भी नमक न डालें। 

- नियमित रूप से नॉन वेज खासकर हेवी नॉन वेज (रेड मीट आदि) खाने से बीपी की आशंका बढ़ जाती है। 

नोट : बीपी कंट्रोल करने में डायट का रोल 50 फीसदी है। स्ट्रेस मैनेजमेंट और एक्सर्साइज से बाकी फायदा मिलता है। योगासन , प्राणायाम और मेडिटेशन करें। भ्रामरी प्राणायाम खासतौर से फायदेमंद है। 

लो ब्लडप्रेशर 
लो बीपी में खाने का कोई खास परहेज नहीं होता। उन्हें हेल्थी चीजें खानी चाहिए और तीनों वक्त खाना और दो बार स्नैक्स लेने चाहिए। इन्हें ध्यान रखना होगा कि खाने की क्वॉलिटी के साथ क्वॉन्टिटी भी अच्छी हो , यानी भरपूर खाएं। कम खाने से बीपी और लो हो सकता है। 

- अगर बीपी एकदम लो हो गया है तो कॉफी या चाय पी लें। इससे फौरी राहत मिलती है और चाय-कॉफी में मौजूद टेनिन व निकोटिन बीपी को बढ़ा देता है। लेकिन लंबे समय में इसका कोई फायदा नहीं होगा। 

- नॉर्मल बैलेंस डायट लें। स्प्राउट्स , दालें , काला चना , फल या सब्जियां खूब खाएं। हर दो-तीन घंटे में हल्का-फुल्का खाएं। इससे बीपी में बहुत उतार-चढ़ाव नहीं होगा। 

- केसर , खजूर , केला , दालचीनी और काली मिर्च खाएं। 

- पानी खूब पीएं। दिन में 10-12 गिलास पानी जरूर पीएं। अगर मरीज के अंदर सोडियम लेवल कम है तो डॉक्टर उससे डायट में नमक बढ़ाने को कहते हैं। 

नोट : एक्सर्साइज न करने से बीपी लो हो सकता है। नियमित रूप से एक्सर्साइज जरूर करें। 

हेपटाइटिस 
हेपटाइटिस ए , बी , सी , डी और ई के मरीजों को नॉर्मल हेल्थी डायट लेनी चाहिए। किसी भी हेपटाइटिस में खाने का खास परहेज नहीं होता। बस , सिरोसिस होने पर नमक कम खाना बेहतर होता है। बहुत तला-भुना खाना नहीं खाना चाहिए। इससे लिवर पर दबाव पड़ता है। कार्बोहाइट्रेड खूब खाने चाहिए और उनके मुकाबले प्रोटीन थोड़े कम क्योंकि इन्हें पचाने के लिए लिवर को काफी मेहनत करनी पड़ती है। हालांकि मरीज की लिवर की स्थिति देखकर भी डॉक्टर प्रोटीन की मात्रा तय करते हैं। ज्यादातर लोग मानते हैं कि उन्हें हेल्थी और तेल नहीं लेना चाहिए , जो कि सही नहीं है। 

- हाई कार्बोहाइड्रेट और मीठी चीजें खाएं , जैसे कि केला , चीकू , आलू , शकरकंद , जैम , ग्लूकोज , रूहअफजा आदि। मीठे में कार्बोहाइड्रेट ज्यादा होते हैं , जिनसे एनर्जी ज्यादा मिलती है और लिवर पर भी जोर नहीं पड़ता। 

- ऐनिमल प्रोटीन के मुकाबले वेजिटेबल प्रोटीन ज्यादा खाएं। जैसे कि मूंग दाल , काला चना , लोबिया , अरहर ,मलका मसूर आदि। मूंग दाल खासतौर से फायदेमंद है। खिचड़ी में भी डालकर खा सकते हैं। 

- गाय का फैट-फ्री दूध और छाछ ले सकते हैं। दूध से बने हुए कस्टर्ड , खीर आदि भी फायदेमंद है। 

- खिचड़ी , दलिया , चावल , रोटी , मक्का , सूप , उपमा , पोहा , इडली आदि खाएं। मीठे फल खूब खाएं। सब्जियों में हरी सब्जियां , आलू और जिमिकंद खाएं। 

- सलाद को हल्का भाप में पका लें। इससे इनफेक्शन होने का खतरा कम होता है। 

- फ्रेश जूस , सोया मिल्क और नारियल पानी पिएं। 

- तला-भुना न खाएं। इससे पहले से कमजोर हो चुके लिवर पर प्रेशर पड़ता है। 

- गैस बनानेवाली चीजें जैसे राजमा , छोले , उड़द दाल आदि कम खाएं। 

- नमक कम कर दें। खासकर सिरोसिस है तो नमक बेहद कम कर दें। ज्यादा खाने से शरीर में पानी जमा हो सकता है। 

- कच्ची सब्जियां खाने से बचना चाहिए। इससे इनफेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है। 

- शराब पीना बिल्कुल बंद कर दें। इलाज के बाद अगर डॉक्टर इजाजत दे तो ही शराब पिएं और वह भी लिमिट में। 

नोट : शरीर के बाकी अंगों के मुकाबले लिवर में ठीक होने और फिर से तैयार होने की क्षमता सबसे ज्यादा होती है , इसलिए मरीज संयम न खोए और अपनी दवा और डायट का पूरा ध्यान रखें। 

अस्थमा 
अस्थमा के मरीजों के लिए अलग से कोई डायट रेकमेंड नहीं की जाती। उन्हें बस न्यूट्रिशन से भरपूर खाना खाने की सलाह दी जाती है। ये लोग आमतौर पर ऐलर्जी के शिकार जल्दी बनते हैं , इसलिए इन्हें उन चीजों से दूर रहने की सलाह दी जाती है , जिनसे ऐलर्जी हो सकती है , जैसे कि अंडा , मछली या तीखी महक वाली चीजें। हालांकि हर किसी को ऐलर्जी हो , या सबको एक ही चीज से ऐलर्जी हो , यह जरूरी नहीं है। 

- जिस वक्त अस्थमा का अटैक होता है , उस वक्त मरीज को पानी ज्यादा पीना चाहिए। पानी के साथ-साथ जूस ,नारियल पानी , लस्सी आदि भी भरपूर पिएं क्योंकि लगातार तेज-तेज सांस लेने से पानी की कमी हो जाती है। 

- हाई फाइबर और प्रोटीन से भरपूर डायट लेनी चाहिए। इस दौरान मसल्स ज्यादा काम करती हैं , इसलिए प्रोटीन से भरपूर दालें , सोयाबीन , अंडा आदि खाएं। 

- विटामिन बी वाली चीजें जैसे कि हरी पत्तेदार सब्जियां और दालें खाएं। ब्रोकली खासतौर पर फायदेमंद है। मैग्नीशियम से भरपूर सूरजमुखी का तेल या बीज खाएं। 

- इनफेक्शन से बचने की कोशिश करें। जिस चीज से ऐलर्जी है , वह न खाएं। साथ ही बहुत ज्यादा ठंडा या गर्म खाना न खाएं। सामान्य तापमान वाली चीजें खाना बेहतर है। 

- अस्थमा के मरीज को खट्टा और सामान्य ठंडा नहीं खाना चाहिए , यह मिथ है। जिन्हें इनसे ऐलर्जी होती है ,उन्हें ही इससे नुकसान होता है। बाकी मरीज खा सकते हैं , लेकिन एक्ट्रीम टेंपरेचर यानी बहुत ज्यादा ठंडी और बहुत ज्यादा गर्म चीजों से बचें। 

- आयुर्वेद के मुताबिक कफ बढ़ानेवाली चीजें न खाएं , जैसे कि दूध से बनी चीजें और खट्टी व ठंडी चीजें। 

किसका सोर्स क्या 
कार्बोहाइड्रेट : अनाज , चावल , दलिया , कॉर्नफ्लैक्स , ब्रेड , बिस्कुट , नूडल्स , मैदा , शुगर , आलू , शकरकंद, चुकंदर आदि। दालों में भी करीब 50 फीसदी कार्बोहाइड्रेट होते हैं। किशमिश , मुनक्का जैसे ड्राइ-फ्रूट्स में हेल्थी कार्बोहाइड्रेट होते हैं। 

प्रोटीन : नॉनवेज , अंडा , फिश , दालें , स्प्राउट्स , सोया आदि प्रोटीन के मुख्य सोर्स हैं। 

विटामिन/मिनरल : सब्जियां , फल , ड्राइ-फ्रूट्स , छिलके वाली चीजें जैसे कि दालें , गेहूं का चोकर , ब्राउन राइस आदि। 

फैट : बादाम , अखरोट , पिस्ता , चिलकोजा , सनफ्लावर बीज , ऑलिव ऑइल आदि में हेल्थी फैट होते हैं। बाकी सभी तरह के तेल और घी फैट का सोर्स हैं। 

फाइबर : फल , सब्जियां , दलिया , ब्राउन राइस , चोकर आदि। 

ओमेगा थ्री : फिश , अलसी , बीन्स , बादाम , सरसों का तेल आदि।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर सुझाव ।मेरे नए पोस्ट DREAMS ALSO HAVE LIFE पर आपके सुझावो की
    प्रतीक्षा रहेगी।

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  2. सटीक और उपयोगी जानकारी दी आपने आभार......

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  3. बहुत ही उपयोगी जानकारी,धन्यबाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही उपयोगी जानकारी,धन्यबाद

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इस जानकारी की सटिकता, समयबद्धता और वास्‍तविकता सुनिश्‍चित करने का हर सम्‍भव प्रयास किया गया है । हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्‍सक से अवश्‍य संपर्क करें। हमारा उद्देश्‍य आपको रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी मुहैया कराना मात्र है। आपका चिकित्‍सक आपकी सेहत के बारे में बेहतर जानता है और उसकी सलाह का कोई विकल्‍प नहीं है।हमारी जानकारी-आपका विचार.आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है, आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है....आभार !!!

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