भोजन से स्वास्थ्य का गहरा रिश्ता है जो कुछ भी हम खाते-पीते हैं, अगर वह शरीर और पेट के अनुकूल होता है, पौष्टिक और सात्विक होता है तो हमें आरोग्य प्राप्त होता है। हम निरोग और स्वस्थ रहते हैं। यदि हमारा भोजन शरीर, पेट के प्रतिकूल होता है और वह अपौष्टिक एवं असात्विक होता है तो हमारा शरीर बीमार पड़ जाता है। हम रोगावस्था में या सामान्य अवस्था में क्या खायें और क्या न खायें इसका ज्ञान हम सबको ही होना चाहिए, क्योंकि भोजन सबसे बड़ी औषधि है और इसके उचित प्रयोग से हम शरीर में बैठे किसी भी रोग का लाज बखूबी कर सकते हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें अपने रोग का ज्ञान तो होता है, लेकिन उसके अनुकूल खान-पान का ज्ञान नहीं होता है।
अल्सर:
आमाशय व ग्रहणी में अनेक कारणों से व्रण यानी अल्सर की उत्पत्ति होती है। अनियमित और दूषित घी, तेल व मिर्च-मसालों से बना भोजन जल्दी अल्सर की उत्पत्ति करता है। आधुनिक परिवेश में होटल, रेस्तरां और दूसरी पार्टियों में स्त्री-पुरुष शराब का अधिक सेवन करते हैं। शराब का अधिक सेवन करते हैं। शराब की अधिकता आमाशय व ग्रहणी में व्रण बना देती है। मानसिक तनाव की अधिकता, धूम्रपान, चाय, कॉफी व फास्ट फूड के अधिक सेवन से उदर में अम्लता का समावेश होने से भी व्रण विकृति अधिक होती है। प्रकृति विरुध्द और दूषित भोजन करने से भी व्रण की उत्पत्ति हो जाती है। खाली पेट एलोपैथी दवाइयां सेवन करने से भी इस रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है।
मुख्य लक्षण: आमाशय या ग्रहणी में अल्सर होने पर जब देर तक रोगी कुछ नहीं खाता है और खाली पेट रहता है तब तेज जलन व पीड़ा होने लगती है। जलन से रोगी बेचैन हो जाता है। नाभि के ऊपर व वक्षस्थल में भी पीड़ा होती है किन्तु कुछ खा-पी लेने पर यह पीड़ा दूर हो जाती है। इस रोग में वमन की भी शिकायत होती है और कई बार वमन के साथ रक्त भी निकल आता है। रात्रि में बिस्तर पर होते हुए रोगी को तीव्र जलन और पीड़ा होती है। रोगी के मल के साथ रक्त भी निकलता है।
क्या न खायें : – अचार और सिरके से बनी चीजों को न खायें। बाजर में बिकने वाले खट्टे, चटपटे, चाट-पकौड़े, गोल-गप्पे, दही-भल्ले, समोसे, कचौड़ी-छोले-भठूरे न खायें।
- उष्ण खाद्य-पदार्थों, उष्ण मिर्च-मसाले और अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें। चाय, कॉफी का बिल्कुल ही परित्याग कर दें।
- अल्सर रोग में शराब सबसे अधिक हानि पहुंचता है। अधिक शारीरिक श्रम न करें और अधिक पैदल न चलें।
- भोजन ठूंस-ठूंसकर अधिक मात्रा में न करें। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कई बार भोजन करें। अरबी, आलू, कचालू आदि को बिल्कुल ही न खायें।
क्या खायें :
- जीरा भूनकर, पीसकर मट्ठे के साथ इस्तेमाल करें। लेकिन मट्ठा खट्ठा नहीं होना चाहिए। बेल गिरी को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें और पांच ग्राम चूर्ण जल के साथ सवन करें।
- उबला हुआ और ठंडा किया हुआ दूध पीयें। कब्ज न होने दें। इसके लिए रात्रि को दूध में एरंड का तेल मिलाकर पीयें।
- अल्सर की जलन को शांत करने के लिए नारियल का जल पियें। गाजर के रह का सेवन करें। घीया, तुरई, टिंडे आदि की सब्जी बिना मिर्च-मसाले व तेल के सेवन करें। मिर्च-मसालेदार और छौंकी हुई सब्जियां अल्सर के रोगी को बहुत ही अधिक नुकसान करती है।
भोजन में उपरोक्त बातों का ध्यान रखकर अल्सर का रोगी जल्दी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकता है।
मधुमेह:
किन्हीं कारणोंवश अग्नाशय (पैंक्रियाज) ग्रंथी विकृत हो जाती है तो शर्करा का सही रूप में पाचन नहीं हो पाता है। फिर शर्करा मूत्र के साथ बाहर निकलने लगती है। इस रोग का कारण चीनी, गुड़, शक्कर, गन्ने का रस, मिठाई आदि अत्यधिक मात्रा में सेवन करना है। इससे अग्नाशय पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। मोटे स्त्री-पुरुषों को मधुमेह की अधिक शिकायत होती है। यह रोग वंशानुगत भी होता है। अधिक पौष्टिक भोजन करने वाले जब बिल्कुल ही मेहनत नहीं करते हैं, उन्हें भी यह रोग हो जाता है।
मुख्य लक्षण:-इस रोग में अत्यधिक प्यास लगती है। बार-बार मूत्र करने जाना पड़ता है। मूत्र के साथ शर्करा जाने से शारीरिक कमजोरी बड़ी तेजी से बढ़ती है। आंखों की रोशनी कम हो जाती है। उपचार में देर होने पर गुर्दों में दोष आ जाते हैं। मधुमेह रोगी को शरीर में चींटियां-सी रेंगती अनुभव होती हैं। जननेंद्रिय के आसपास खुजली होती है। इस रोग में पुरुष नपुंसक की अनुभूति करती है। स्त्रियों की कामेच्छा नष्ट हो जाती है। त्वचा अधिक खुरदरी और शुष्क हो जाती है। फुंसी-फोड़े या कोई जख्म जल्दी ठीक नहीं होते हैं।
क्या न खायें :
- मीठे फल और सब्जियों को भूलकर भी न खायें। मीठी चीजें, आइस्क्रीम, शर्बत व कोल्ड-ड्रिंक का बिल्कुल ही सेवन न करें। चावल भी आपको नुकसान करेगा।
- आप उड़द की दाल, अरबी, आलू, चुकंदर का भी सेवन न करें। मांस, मछली, अंडा, घी, तेल, मक्खन का भी सेवन न करें।
क्या खायें :-
- इस रोग में रोगी को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कई बार भोजन करना चाहिए। करेले की सब्जी का प्रतिदिन सेवन करना चाहिए। करेले का पांच ग्राम रस प्रतिदिन पीने से भी मधुमेह रोग में बहुत लाभ होता है।
- सूखे करेलों व जामुन की गुठलियों का चूर्ण बराबर मात्रा में बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम 3-3 ग्राम चूर्ण जल के साथ फांकें।
- चने और जौ के आटे की रोटी बनाकर खायें। जामुन के मौसम में जामुन प्रतिदिन नियमित रूप से खायें।
- गुड़मार बूटी और जामुन की गुठगियों को बराबर मात्रा में कूट-पीसकर चूर्ण बना लें और 3-3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम जल के साथ सेवन करें।
- सिर्फ जामुन की गुठलियों का चूर्ण 3-3 ग्राम सुबह-शाम जल के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
भगंदर :
भगंदर का रोगी न तो बिस्तर पर पीठ के बल लेट सकता है, न कुर्सी पर बैठ सकता है और न ही सीढ़ियां उतर-चढ़ सकता है। भगंदर रोग में मलद्वार के ऊपर की ओर व्रण बनते हैं और व्रण त्वचा में काफी गहरे हो जाते हैं। नासूर की तरह व्रण से रक्तमिश्रित पूयस्राव होता है। अधिक समय तक उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थों के सेवन से रक्त दूषित होने पर भगंदर रोग की उत्पत्ति होती है। शौच के बाद मालद्वार के आसपास ठीक से सफाई न करने, अधिक समय तक कुर्सी पर काम करने, साइकिल पर लम्बी दूरी तक यात्रा करने या साइकिल पर अधिक सामान ढोने, ऊंट, घोड़े की अधिक सवारी करने से भी भगंदर रोग हो जाता है।
मुख्य लक्षण :
भगंदर रोग में व्रण बहुत गहरे हो जाते हैं। कोष्ठ बध्दता हो जाने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है। भगंदर से हर समय रक्तमिश्रित पूयस्राव होने से कपड़े खराब होते रहते हैं। रोगी को चलने-फिरने में भी बहुत कठिनाई होती है। भगंदर रोग में सूक्ष्म कीटाणु भी उत्पन्न होते हैं।
क्या न खायें :
* चटपटे, स्वादिष्ट छोले-भठूरे, समोसे, कचौड़ी, चाट-पकौड़ी आदि का सेवन न करें। घी-तेल से बने पकवानों का सेवन न करें। गरम मिर्च-मसालों और अम्लीय रसों से निर्मित खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
* दूषित और गंदे जल से स्ान न करें और शौच के बाद नदी, तालाब व नलों के जल के मलद्वार को साफ न करें। ज्यादा देर तक लगातार किसी एक स्थान या कुर्सी पर न बैठें और ऊंट, घोड़े एवं स्कूटर, साइकिल पर सफर न करें। सहवास में सयम बरतें।
क्या खायें :
* त्रिफला का पांच ग्राम चूर्ण रात्रि के समय हल्के गर्म जल के साथ सेवन करें, ताकि कब्ज शीघ्र नष्ट हो जाये, क्योंकि कब्ज के कारण भगंदर रोग तेजी से फैलता है।
* अग्नि मंथ (छोटी अरबी) की जड़ को जल में उबालकर काढ़ा बनायें। इस काढ़े को छानकर मधु मिलाकर सुबह-शाम पीने से बहुत जल्दी भगंदर रोग नष्ट हो जाता है। इसके साथ ही चमेली के पत्ते, गिलोय, सोंठ और सेंधा नमक को कूट-पीसकर मट्ठा मिलाकर भगंदर पर लेप करें।
* 25 ग्राम अनार के ताजे पत्ते 300 ग्राम जल में देर तक उबालें। जब आधा जल शेष रह जाये तो उस जल को छानकर भगंदर को धोयें। इससे काफी राहत मिलती है।
* नीम के पत्तों को जल में उबालकर छानकर भगंदर को दिन में दो बार जरूर साफ करें।
उन्माद रोग:
किसी गहरी चिंता या भय से अधिक दिनों तक पीड़ित रहने पर उन्माद होग हो जाता है। अचानक लम्बे सदमे के कारण भी यह रोग हो जाता है। अपने प्रेमी या प्रेमिका द्वारा छोड़कर चले जाने के कारण भी उन्मीद रोग हो जाता है। सिर पर लगी गहरी चोट भी इस रोग की उत्पत्ति का कारण हो सकती है। प्रकृति विरुध्द आहार-विहार से उन्माद रोग अपना शिकार बना लेता है। वात, पित्त एवं कफ रोग के प्रकुपित होने पर भी उन्माद हो सकता है।
प्रमुख लक्षण :
रोगी शुरू-शुरू में पागलों की तरह हरकतें करता है। उसे किसी भी बात का ध्यान नहीं रहता है। रोगी कभी जोर से हंसता है और कभी चीखने-चिल्लाने लगता है। वह अपने कपड़े शरीर से उतार कर फेंकने लगता है। घर में तोड़-फोड़ करता है। रोगी के मुंह से लार टपकती है, लेकिन रोगी को इसका कोई ध्यान नहीं रहती है।
क्या न खायें :
* रोगी को गरम पानी से न नहलायें। उसके सिर पर गरम जल न डालें। घी, तेल से बना भोजन उसे न दें। गरम मिर्च-मसालों, अम्लीय रसों से बने भोज्य पदार्थों का सेवन न करें।
* रोगी को चाय, कॉफी और दूसरे गरम पदार्थ न दें। उसे धूप स्ान न करायें और धूप में चलने भी न दें। उसे मेहनत का काम न दें। सुबह-शाम रोगी को किसी पार्क या मैदान में घुमाने के लिए ले जायें। धूल, मिट्टी से उसे दूर रखें।
क्या खायें :
* बादाम की 7-8 गिरी रात को जल में डाल दें और सुबह उन्हें पीसकर दूध में मिलाकर पिलाएं।
* दलिया, खिचड़ी, सूप, खीर, दालें व सब्जियों का सेवन करायें। उसे कब्ज न होने दें और इसके लिए दूध में एक छोटा चम्मच एरंड का तेल डालकर पिलाएं।
* 20 ग्राम इमली को जल के साथ पीसकर, 100 ग्राम जल में मिलाकर छानकर उन्माद के रोगी को पिलायें।
* सर्पगंधा को कूट-पीसकर चूर्ण बनायें और तीन ग्राम चूर्णम गुलाब जल के साथ रोगी को सेवन करायें। इससे आशा के अनुरूप लाभ होता है।
* ब्राह्मी और शंखपुष्पी का रस पांच-पांच ग्राम मात्रा में लेकर मधु मिलाकर सेवन करायें। इससे बहुत राहत मिलती है।
* अनार के पत्ते और गुलाब के फूल- दोनों को 10-10 ग्राम लेकर 300 ग्राम जल में उबालकर काढ़ा बनाएं। 100 ग्राम जल शेष रह जाने पर 10 ग्राम शुध्द घी मिलाकर रोगी को सुबह-शाम पिलाएं।
सूजन रोग:
रक्त दूषित होने पर सूजन की उत्पत्ति होती है। गिरने के कारण चोट लगने पर भी सूजन आ जाती है। गुर्दों में विकार उत्पन्न हो जाने पर भी शरीर के विभिन्न अंगों में सूजन आ जाती है। गर्भावस्था में खून की कमी हो जाने पर भी गर्भवती स्त्री के पैरों, हाथों और चेहरे पर सूजन आ जाती है। छोटे बच्चे जब मिट्टी खाते हैं तो उनके पेट पर सूजन आ जाती है।
प्रमुख लक्षण :
संक्रामक रोग, मलेरिया और आंत्रिक ज्वर में सूजन की विकृति उत्पन्न हो जाती है। कभी-कभी सूजन की पीड़ा बहुत ही असहनीय हो जाती है। उदर में सूजन होने पर उल्टी की शिकायत रहने लगती है। गुर्दों की विकृति होने के कारण उत्पन्न सूजन में मूत्र के साथ खून भी आता है।
क्या न खायें :
* चाइनीय और फास्ट-फूड से परहेज करें। घी-तेल स बने भोजन का सेवन न करें। गरम मिर्च-मसालों और अम्लीय रस से बने भोज्य पदार्थों को न खायें।
* आम, इमली, कमरख और दूसरे खट्टे फल न खायें। अचार, कांजी और सिरके से बने भोजन का सेवन न करें।
क्या खायें :
* खजूर का कुछ दिनों तक सेवन करें। काली मिर्च पीसकर मक्खन के साथ मिलाकर चाटें।
* हरड़ का काढ़ा बनाकर, छानकर 50 ग्राम की मात्रा में पांच ग्राम गुग्गल मिलाकर सेवन करें। इससे सूजन कम होती है।
* केले का प्रतिदिन नियमपूर्वक सेवन करें।
* मूली 100 ग्राम और तिल 10 ग्राम चबाकर खाने से त्वचा के नीचे जमे जल से उत्पन्न सूजन नष्ट होती है।
* सोंठ का 10 ग्राम चूर्ण के साथ खाने से सूजन दूर होती है। इसके साथ ही इंद्रायण की जड़ को सिरके के साथ पीसकर सूजन पर मलें।
* अनन्नास का 150 ग्राम रस कुछ दिनों तक पीने से यकृत की सूजन पर दूर होती है।
* पांच ग्राम गाजर के बीजों को 300 ग्राम जब में उबाल कर, काढ़ा बनाकर, छानकर पियें। अधिक मूत्र आने से सूजन नष्ट होती है।
* मलतास के ताजे फूल 10 ग्राम और भुना हुआ सुहागा 3 ग्राम पीसकर सुबह-शाम गर्मजल के साथ सेवन करने से सूजन नष्ट होती है।
अल्सर:
आमाशय व ग्रहणी में अनेक कारणों से व्रण यानी अल्सर की उत्पत्ति होती है। अनियमित और दूषित घी, तेल व मिर्च-मसालों से बना भोजन जल्दी अल्सर की उत्पत्ति करता है। आधुनिक परिवेश में होटल, रेस्तरां और दूसरी पार्टियों में स्त्री-पुरुष शराब का अधिक सेवन करते हैं। शराब का अधिक सेवन करते हैं। शराब की अधिकता आमाशय व ग्रहणी में व्रण बना देती है। मानसिक तनाव की अधिकता, धूम्रपान, चाय, कॉफी व फास्ट फूड के अधिक सेवन से उदर में अम्लता का समावेश होने से भी व्रण विकृति अधिक होती है। प्रकृति विरुध्द और दूषित भोजन करने से भी व्रण की उत्पत्ति हो जाती है। खाली पेट एलोपैथी दवाइयां सेवन करने से भी इस रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है।
मुख्य लक्षण: आमाशय या ग्रहणी में अल्सर होने पर जब देर तक रोगी कुछ नहीं खाता है और खाली पेट रहता है तब तेज जलन व पीड़ा होने लगती है। जलन से रोगी बेचैन हो जाता है। नाभि के ऊपर व वक्षस्थल में भी पीड़ा होती है किन्तु कुछ खा-पी लेने पर यह पीड़ा दूर हो जाती है। इस रोग में वमन की भी शिकायत होती है और कई बार वमन के साथ रक्त भी निकल आता है। रात्रि में बिस्तर पर होते हुए रोगी को तीव्र जलन और पीड़ा होती है। रोगी के मल के साथ रक्त भी निकलता है।
क्या न खायें : – अचार और सिरके से बनी चीजों को न खायें। बाजर में बिकने वाले खट्टे, चटपटे, चाट-पकौड़े, गोल-गप्पे, दही-भल्ले, समोसे, कचौड़ी-छोले-भठूरे न खायें।
- उष्ण खाद्य-पदार्थों, उष्ण मिर्च-मसाले और अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें। चाय, कॉफी का बिल्कुल ही परित्याग कर दें।
- अल्सर रोग में शराब सबसे अधिक हानि पहुंचता है। अधिक शारीरिक श्रम न करें और अधिक पैदल न चलें।
- भोजन ठूंस-ठूंसकर अधिक मात्रा में न करें। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कई बार भोजन करें। अरबी, आलू, कचालू आदि को बिल्कुल ही न खायें।
क्या खायें :
- जीरा भूनकर, पीसकर मट्ठे के साथ इस्तेमाल करें। लेकिन मट्ठा खट्ठा नहीं होना चाहिए। बेल गिरी को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें और पांच ग्राम चूर्ण जल के साथ सवन करें।
- उबला हुआ और ठंडा किया हुआ दूध पीयें। कब्ज न होने दें। इसके लिए रात्रि को दूध में एरंड का तेल मिलाकर पीयें।
- अल्सर की जलन को शांत करने के लिए नारियल का जल पियें। गाजर के रह का सेवन करें। घीया, तुरई, टिंडे आदि की सब्जी बिना मिर्च-मसाले व तेल के सेवन करें। मिर्च-मसालेदार और छौंकी हुई सब्जियां अल्सर के रोगी को बहुत ही अधिक नुकसान करती है।
भोजन में उपरोक्त बातों का ध्यान रखकर अल्सर का रोगी जल्दी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकता है।
मधुमेह:
किन्हीं कारणोंवश अग्नाशय (पैंक्रियाज) ग्रंथी विकृत हो जाती है तो शर्करा का सही रूप में पाचन नहीं हो पाता है। फिर शर्करा मूत्र के साथ बाहर निकलने लगती है। इस रोग का कारण चीनी, गुड़, शक्कर, गन्ने का रस, मिठाई आदि अत्यधिक मात्रा में सेवन करना है। इससे अग्नाशय पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। मोटे स्त्री-पुरुषों को मधुमेह की अधिक शिकायत होती है। यह रोग वंशानुगत भी होता है। अधिक पौष्टिक भोजन करने वाले जब बिल्कुल ही मेहनत नहीं करते हैं, उन्हें भी यह रोग हो जाता है।
मुख्य लक्षण:-इस रोग में अत्यधिक प्यास लगती है। बार-बार मूत्र करने जाना पड़ता है। मूत्र के साथ शर्करा जाने से शारीरिक कमजोरी बड़ी तेजी से बढ़ती है। आंखों की रोशनी कम हो जाती है। उपचार में देर होने पर गुर्दों में दोष आ जाते हैं। मधुमेह रोगी को शरीर में चींटियां-सी रेंगती अनुभव होती हैं। जननेंद्रिय के आसपास खुजली होती है। इस रोग में पुरुष नपुंसक की अनुभूति करती है। स्त्रियों की कामेच्छा नष्ट हो जाती है। त्वचा अधिक खुरदरी और शुष्क हो जाती है। फुंसी-फोड़े या कोई जख्म जल्दी ठीक नहीं होते हैं।
क्या न खायें :
- मीठे फल और सब्जियों को भूलकर भी न खायें। मीठी चीजें, आइस्क्रीम, शर्बत व कोल्ड-ड्रिंक का बिल्कुल ही सेवन न करें। चावल भी आपको नुकसान करेगा।
- आप उड़द की दाल, अरबी, आलू, चुकंदर का भी सेवन न करें। मांस, मछली, अंडा, घी, तेल, मक्खन का भी सेवन न करें।
क्या खायें :-
- इस रोग में रोगी को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कई बार भोजन करना चाहिए। करेले की सब्जी का प्रतिदिन सेवन करना चाहिए। करेले का पांच ग्राम रस प्रतिदिन पीने से भी मधुमेह रोग में बहुत लाभ होता है।
- सूखे करेलों व जामुन की गुठलियों का चूर्ण बराबर मात्रा में बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम 3-3 ग्राम चूर्ण जल के साथ फांकें।
- चने और जौ के आटे की रोटी बनाकर खायें। जामुन के मौसम में जामुन प्रतिदिन नियमित रूप से खायें।
- गुड़मार बूटी और जामुन की गुठगियों को बराबर मात्रा में कूट-पीसकर चूर्ण बना लें और 3-3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम जल के साथ सेवन करें।
- सिर्फ जामुन की गुठलियों का चूर्ण 3-3 ग्राम सुबह-शाम जल के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
भगंदर :
भगंदर का रोगी न तो बिस्तर पर पीठ के बल लेट सकता है, न कुर्सी पर बैठ सकता है और न ही सीढ़ियां उतर-चढ़ सकता है। भगंदर रोग में मलद्वार के ऊपर की ओर व्रण बनते हैं और व्रण त्वचा में काफी गहरे हो जाते हैं। नासूर की तरह व्रण से रक्तमिश्रित पूयस्राव होता है। अधिक समय तक उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थों के सेवन से रक्त दूषित होने पर भगंदर रोग की उत्पत्ति होती है। शौच के बाद मालद्वार के आसपास ठीक से सफाई न करने, अधिक समय तक कुर्सी पर काम करने, साइकिल पर लम्बी दूरी तक यात्रा करने या साइकिल पर अधिक सामान ढोने, ऊंट, घोड़े की अधिक सवारी करने से भी भगंदर रोग हो जाता है।
मुख्य लक्षण :
भगंदर रोग में व्रण बहुत गहरे हो जाते हैं। कोष्ठ बध्दता हो जाने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है। भगंदर से हर समय रक्तमिश्रित पूयस्राव होने से कपड़े खराब होते रहते हैं। रोगी को चलने-फिरने में भी बहुत कठिनाई होती है। भगंदर रोग में सूक्ष्म कीटाणु भी उत्पन्न होते हैं।
क्या न खायें :
* चटपटे, स्वादिष्ट छोले-भठूरे, समोसे, कचौड़ी, चाट-पकौड़ी आदि का सेवन न करें। घी-तेल से बने पकवानों का सेवन न करें। गरम मिर्च-मसालों और अम्लीय रसों से निर्मित खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
* दूषित और गंदे जल से स्ान न करें और शौच के बाद नदी, तालाब व नलों के जल के मलद्वार को साफ न करें। ज्यादा देर तक लगातार किसी एक स्थान या कुर्सी पर न बैठें और ऊंट, घोड़े एवं स्कूटर, साइकिल पर सफर न करें। सहवास में सयम बरतें।
क्या खायें :
* त्रिफला का पांच ग्राम चूर्ण रात्रि के समय हल्के गर्म जल के साथ सेवन करें, ताकि कब्ज शीघ्र नष्ट हो जाये, क्योंकि कब्ज के कारण भगंदर रोग तेजी से फैलता है।
* अग्नि मंथ (छोटी अरबी) की जड़ को जल में उबालकर काढ़ा बनायें। इस काढ़े को छानकर मधु मिलाकर सुबह-शाम पीने से बहुत जल्दी भगंदर रोग नष्ट हो जाता है। इसके साथ ही चमेली के पत्ते, गिलोय, सोंठ और सेंधा नमक को कूट-पीसकर मट्ठा मिलाकर भगंदर पर लेप करें।
* 25 ग्राम अनार के ताजे पत्ते 300 ग्राम जल में देर तक उबालें। जब आधा जल शेष रह जाये तो उस जल को छानकर भगंदर को धोयें। इससे काफी राहत मिलती है।
* नीम के पत्तों को जल में उबालकर छानकर भगंदर को दिन में दो बार जरूर साफ करें।
उन्माद रोग:
किसी गहरी चिंता या भय से अधिक दिनों तक पीड़ित रहने पर उन्माद होग हो जाता है। अचानक लम्बे सदमे के कारण भी यह रोग हो जाता है। अपने प्रेमी या प्रेमिका द्वारा छोड़कर चले जाने के कारण भी उन्मीद रोग हो जाता है। सिर पर लगी गहरी चोट भी इस रोग की उत्पत्ति का कारण हो सकती है। प्रकृति विरुध्द आहार-विहार से उन्माद रोग अपना शिकार बना लेता है। वात, पित्त एवं कफ रोग के प्रकुपित होने पर भी उन्माद हो सकता है।
प्रमुख लक्षण :
रोगी शुरू-शुरू में पागलों की तरह हरकतें करता है। उसे किसी भी बात का ध्यान नहीं रहता है। रोगी कभी जोर से हंसता है और कभी चीखने-चिल्लाने लगता है। वह अपने कपड़े शरीर से उतार कर फेंकने लगता है। घर में तोड़-फोड़ करता है। रोगी के मुंह से लार टपकती है, लेकिन रोगी को इसका कोई ध्यान नहीं रहती है।
क्या न खायें :
* रोगी को गरम पानी से न नहलायें। उसके सिर पर गरम जल न डालें। घी, तेल से बना भोजन उसे न दें। गरम मिर्च-मसालों, अम्लीय रसों से बने भोज्य पदार्थों का सेवन न करें।
* रोगी को चाय, कॉफी और दूसरे गरम पदार्थ न दें। उसे धूप स्ान न करायें और धूप में चलने भी न दें। उसे मेहनत का काम न दें। सुबह-शाम रोगी को किसी पार्क या मैदान में घुमाने के लिए ले जायें। धूल, मिट्टी से उसे दूर रखें।
क्या खायें :
* बादाम की 7-8 गिरी रात को जल में डाल दें और सुबह उन्हें पीसकर दूध में मिलाकर पिलाएं।
* दलिया, खिचड़ी, सूप, खीर, दालें व सब्जियों का सेवन करायें। उसे कब्ज न होने दें और इसके लिए दूध में एक छोटा चम्मच एरंड का तेल डालकर पिलाएं।
* 20 ग्राम इमली को जल के साथ पीसकर, 100 ग्राम जल में मिलाकर छानकर उन्माद के रोगी को पिलायें।
* सर्पगंधा को कूट-पीसकर चूर्ण बनायें और तीन ग्राम चूर्णम गुलाब जल के साथ रोगी को सेवन करायें। इससे आशा के अनुरूप लाभ होता है।
* ब्राह्मी और शंखपुष्पी का रस पांच-पांच ग्राम मात्रा में लेकर मधु मिलाकर सेवन करायें। इससे बहुत राहत मिलती है।
* अनार के पत्ते और गुलाब के फूल- दोनों को 10-10 ग्राम लेकर 300 ग्राम जल में उबालकर काढ़ा बनाएं। 100 ग्राम जल शेष रह जाने पर 10 ग्राम शुध्द घी मिलाकर रोगी को सुबह-शाम पिलाएं।
सूजन रोग:
रक्त दूषित होने पर सूजन की उत्पत्ति होती है। गिरने के कारण चोट लगने पर भी सूजन आ जाती है। गुर्दों में विकार उत्पन्न हो जाने पर भी शरीर के विभिन्न अंगों में सूजन आ जाती है। गर्भावस्था में खून की कमी हो जाने पर भी गर्भवती स्त्री के पैरों, हाथों और चेहरे पर सूजन आ जाती है। छोटे बच्चे जब मिट्टी खाते हैं तो उनके पेट पर सूजन आ जाती है।
प्रमुख लक्षण :
संक्रामक रोग, मलेरिया और आंत्रिक ज्वर में सूजन की विकृति उत्पन्न हो जाती है। कभी-कभी सूजन की पीड़ा बहुत ही असहनीय हो जाती है। उदर में सूजन होने पर उल्टी की शिकायत रहने लगती है। गुर्दों की विकृति होने के कारण उत्पन्न सूजन में मूत्र के साथ खून भी आता है।
क्या न खायें :
* चाइनीय और फास्ट-फूड से परहेज करें। घी-तेल स बने भोजन का सेवन न करें। गरम मिर्च-मसालों और अम्लीय रस से बने भोज्य पदार्थों को न खायें।
* आम, इमली, कमरख और दूसरे खट्टे फल न खायें। अचार, कांजी और सिरके से बने भोजन का सेवन न करें।
क्या खायें :
* खजूर का कुछ दिनों तक सेवन करें। काली मिर्च पीसकर मक्खन के साथ मिलाकर चाटें।
* हरड़ का काढ़ा बनाकर, छानकर 50 ग्राम की मात्रा में पांच ग्राम गुग्गल मिलाकर सेवन करें। इससे सूजन कम होती है।
* केले का प्रतिदिन नियमपूर्वक सेवन करें।
* मूली 100 ग्राम और तिल 10 ग्राम चबाकर खाने से त्वचा के नीचे जमे जल से उत्पन्न सूजन नष्ट होती है।
* सोंठ का 10 ग्राम चूर्ण के साथ खाने से सूजन दूर होती है। इसके साथ ही इंद्रायण की जड़ को सिरके के साथ पीसकर सूजन पर मलें।
* अनन्नास का 150 ग्राम रस कुछ दिनों तक पीने से यकृत की सूजन पर दूर होती है।
* पांच ग्राम गाजर के बीजों को 300 ग्राम जब में उबाल कर, काढ़ा बनाकर, छानकर पियें। अधिक मूत्र आने से सूजन नष्ट होती है।
* मलतास के ताजे फूल 10 ग्राम और भुना हुआ सुहागा 3 ग्राम पीसकर सुबह-शाम गर्मजल के साथ सेवन करने से सूजन नष्ट होती है।
बढ़िया ज्ञानवर्धक लेख | आभार |
जवाब देंहटाएंलाभकारी जानकारी ...
जवाब देंहटाएंबचाव ही सबसे उत्तम है ... बजाए दवाई के ...
बहुत बढ़िया जानकारी दी है आभार ...एक शंका है क्या अल्सर अनुवंशिक होता है !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जानकारी दी है आभार ...एक शंका है क्या अल्सर वंशानुगत होता है !
जवाब देंहटाएंआभार,जी नहीं अल्सर वंशानुगत नहीं होता है,यह हमारे खान-पान की अनियमितता के कारण ही होता है.
हटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी आपने .......शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी दिये,धन्यबाद.
जवाब देंहटाएंलाभप्रद प्रस्तुति,मधुमेह तो आज की बड़ी समस्या है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और उपयोगी जानकारी दी,सादर धन्यबाद.
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्कृष्ट और बहुत ही उपयोगी जानकारी.
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा एवं उपयोगी जानकारी की प्रस्तुतीकरण.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया इतनी उपयोगी लेख के लिए.
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar hai jankari sir ji.
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्यवर्धक अमूल्य जानकारी!! आभार!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी,उपयोगी लेख के लिए धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंबड़े कैनवास की विस्तृत पोस्ट है .
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी .
जवाब देंहटाएंआभार.
acchi upyogi jankari....shukriya
जवाब देंहटाएंभोजन करने के कायदे
जवाब देंहटाएंखाना कभी भी आवश्यकता से अधिक मात्रा में नहीं खाना चाहिए. खाने के बाद एक निश्चित अंतराल देना जरुरी है. साथ ही खाना प्रसन्नचित्त मन से खाना चाहिए. तभी यह शरीर और मन को प्रसन्नता देता है. खाना हमेशा हल्का गर्म ही खाना चाहिए. इससे पाचन अग्नि तीव्र होती है तथा खाने में रूचि बढती है. इसके अलावा खाने के साथ बीच-बीच में पानी पीना लाभप्रद है.