अगर आपका बच्चा जरूरत से ज्यादा चंचल है तो खुश नहीं, बल्कि सावधान होने की जरूरत है। आपका बच्चा अटैंशन डैफिसिएट हाईपर एक्टिविटी डिसआर्डर (ए.डी.एच.डी.) से ग्रसित हो सकता है। इससे ग्रसित बीमारी में बच्चा अपने से अधिक उम्र के बच्चों की तरह व्यवहार करता है। वह एकाग्र नहीं हो पाता है।

यह बीमारी 3 साल से अधिक उम्र के स्कूल जाने वाले बच्चों में देखने को मिलती है। इसकी वजह से उसकी पढ़ाई प्रभावित होती है। वह ठीक से पढ़ नहीं पाता है। सर्वे के मुताबिक अपने देश में स्कूल जाने वाले लगभग 4 प्रतिशत बच्चों को यह बीमारी होती है। इनमें से 60 प्रतिशत की बीमारी ठीक नहीं हो पाती है। 
           बच्चों में उम्र बढऩे के साथ चंचलता कम हो जाती है लेकिन एकाग्रता नहीं हो पाती है। बच्चा आत्महत्या का प्रयास करता है, वह जिद्दी हो जाता है और उत्तेजना में निर्णय लेने लगता है। भविष्य में नशे का सेवन भी कर सकता है।

लक्षण
बच्चे का अपनी उम्र के हिसाब से अधिक चंचल होना, स्थिर नहीं बैठना, क्लास में भी कंफर्ट महसूस न करना, पढ़ाई में मन न लगना, लिखावट साफ न होना, अन्जाने में गलतियां करना, किसी कार्य के समय अपनी बारी का इंतजार नहीं करना, रोजमर्रा का काम ठीक से न करना, गंभीर बातों पर भी ध्यान नहीं देना, केयरलैस होना, बातचीत के दौरान बीच-बीच में बोलना, पढ़ाई के दौरान भी दूसरे कामों में उलझे रहना या ध्यान बंटाना। 

कारण
अटैंशन डेफिसिएट हाईपर एक्टिविटी डिसआर्डर जन्मजात बीमारी होती है। जन्म के समय बच्चे के दिमाग में न्यूरो ट्रांसमीटर की कमी होती है जिसकी वजह से यह बीमारी होती है। इसके अलावा कई कारण ऐसे हैं जो इस बीमारी को बढ़ाते हैं जैसे बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालना, बिना कारण डांटना, हमेशा शिकायत करना, दूसरे बच्चों से तुलना, माता-पिता से दूर रहना आदि।

बचाव
ऐसे बच्चों की सबसे पहले पहचान करने की आवश्यकता है। अक्सर माता-पिता यह मानने को तैयार नहीं होते हैं कि उनका बच्चा मानसिक रूप से पीड़ित है। घर और बाहर लोग उससे ठीक से बर्ताव करें। यह जानने की कोशिश करें कि बच्चा क्यों पढऩा नहीं चाहता है। उसके अच्छे काम को सराहें।
         गलती करने पर उसे डांटने की जगह समझाएं। पढ़ाई के समय माता-पिता मौजूद रहें। यदि वह पढ़ाई कर रहा हो तो उसे दूसरा काम न करने दें। क्लास और होमवर्क को टुकड़ों में बांट दें, जिससे वह बोझ न समझे। पढ़ाई के दौरान कुछ समय का ब्रेक जरूर दें, जिससे वह दबाव महसूस न करे।

निदान और इलाज
ए.डी.एच.डी. बीमारी की जांच बच्चों के क्लीनिकल लक्षण देखकर डाक्टर करता है, जबकि इसका इलाज दवाओं और बिहैवियर थैरेपी दोनों तरीके से संभव है। कौन-सी थैरेपी मरीज पर ज्यादा कारगर होगी, इसका फैसला डॉक्टर मरीज को देखने के बाद करता है.


ए.डी.एच.डी. के मरीजों को मिथाइल फैनिटेड, क्लोनिडाइन जैसी दवाएं दी जाती हैं जो दिमाग के न्यूरो ट्रांसमीटरों को बढ़ाने का काम करता हैं जबकि बिहैवियर थैरेपी में बच्चे के साथ माता-पिता की काऊंसङ्क्षलग की जाती है। इसमें उन्हें बीमारी और बीमारी से बचाव की जानकारी दी जाती है। उन्हें कुछ टिप्स दिए जाते हैं जिससे दिमागी क्षमता बढ़े और वह एकाग्र हो।

कैसे बढ़ाएं बच्चों का ध्यान
बच्चों को अखबार से पिक्चर काट कर चिपकाने के लिए दें। रेखाओं के भीतर कलरिंग और पेंटिंग कराएं। इससे उनका ध्यान एकाग्र होता है। कलर बीड्स अलग कराएं। चावल और दाल के दाने मिला कर दें और बच्चों से अलग कराएं। काम के बाद शाबाशी जरूर दें। पहेलियां हल कराएं, इससे भी ध्यान लगता है। मैचिंग वाली गेम खेलने को दें। बच्चों को टी.वी. और रेडियो सुनने दें। बाद में उनसे पूछें कि वे क्या देखना और सुनना चाहते हैं, उसे उन्हें सुनाएं।