गुरुवार, 30 मई 2013

सर्वगुण सम्पन्न :पुदीना



आइये आज हम सब पोदीने के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं.पोदीना एक प्रकार की घास है, जिसके पत्ते गोल छोटे और खुशबूदार होते हैं, यह जमीन के ऊपर फैलता है।पोदीना का लेटिन नाम मेन्था स्पाइकेटा है। पुदीना बहुत ही स्वादिष्ट और रिफ्रेशिंग होता है। यह विटामिन ए से भरपूर होने के साथ-साथ बहुत ही गुणकारी भी है। यह स्वास्थ्य के लिए भी बेहद लाभकारी होता है। यह पेट के विकारों में काफी फायदेमंद होता है।पोदीना धातु के लिए हानिकारक होता है। पित्तकारक प्रकृति होने के कारण पित्त प्रवृति के लोगों को पोदीने का सेवन कम मात्रा में कभी-कभी ही करना चाहिए।पोदीना भारी, मधुर, रुचिकारी, मलमूत्ररोधक, कफ, खांसी, नशा को दूर करने वाला तथा भूख को बढ़ाने वाला है। पोदीने में कैलोरी ,प्रोटीन, पोटेशियम, थायमिन, कैल्शियम, नियोसीन, रिबोफ्लेविन, आयरन, विटामिन-ए,बी ,सी डी और इ, मेन्थाल, टैनिन आदि रासायनिक घटक पाए जाते हैं।इसे तो देखते ही ठंडक दिल में उतर जाती है.पोदीना है बड़े काम की चीज ,कई सारे रोग आप इससे दूर भी कर सकते हैं.
पोदीने की उपयोगिता:

१.पोदीने का रस कृमि (कीड़े) और वायु विकारों (रोगों) को नष्ट करने वाला होता है। पोदीने के ५ मिलीलीटर रस में नींबू का 5 मिलीलीटर रस और 7-8 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से उदर (पेट) के रोग दूर हो जाते हैं।


२.२ चम्मच पुदीने का रस, 1 चम्मच नींबू का रस और २ चम्मच शहद को मिलाकर सेवन करने से पेट के रोग दूर होते हैं। 


३.100 मिलीलीटर पुदीना का रस गर्म करके, ९ ग्राम शहद और लगभग ६ ग्राम नमक को मिलाकर पीने से उल्टी होकर पेट की बीमारी ठीक हो जाती है।

४.हरा धनिया, पोदीना, कालीमिर्च, अंगूर या अनार की चटनी बनाकर उसमें नींबू का रस मिलाकर खाने से अरुचि (भूख का न लगना) समाप्त होती है और पाचन क्रिया तेज होने से भूख भी अधिक लगती है।

५.५-५ ग्राम पोदीना, लोहबान और अजवायन का रस, ५ ग्राम कपूर और ५ ग्राम हींग को २५ ग्राम शहद में मिलाकर एक साफ शीशी में भरकर रख लें, फिर पान के पत्ते में चूना-कत्था लगाकर शीशी में से ४ बूंदे इस पत्ते में डालकर खाने से गले का दर्द दूर होता है।

६.शराब के अंदर पुदीने की पत्तियों को पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे के दाग, धब्बे, झांई सब मिट जाते हैं और चेहरा चमक उठता है।


७.पुदीना के रस को शहद के साथ पन्द्रह दिनों तक सेवन करने से पीलिया में लाभ होगा। पोदीने की चटनी नित्य रोटी के साथ खाने से पीलिया में लाभ होता है।

८.५0 ग्राम पोदीने को पीसकर उसमें स्वाद के अनुसार सेंधानमक, हरा धनिया और कालीमिर्च को डालकर चटनी के रूप में सेवन करने से निम्न रक्तचाप में  लाभ होता है।

९.हरे पोदीने को पीसकर कम से कम २0 मिनट तक चेहरे पर लगाने से चेहरे की गर्मी समाप्त हो जाती है।

१०.गठिया के रोगी को पोदीने का काढ़ा बनाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है और गठिया रोग में आराम मिलता है।

११.२ चम्मच पुदीने की चटनी शक्कर में मिलाकर भोजन के साथ खाने से मूत्र रोग में  लाभ होता है।

१२.पोदीने की पत्तियों को थोड़े-थोड़े समय के बाद चबाते रहने से मुंह की दुर्गंध दूर हो जाती है। पोदीने की १५-२०हरी पत्तियों को १ गिलास पानी में अच्छी तरह उबालकर उस पानी से गरारे करने से भी मुंह की दुर्गंध दूर हो जाती है।

१३.पोदीने के पत्तों को पीसकर किसी जहरीले कीड़े के द्वारा काटे हुए अंग (भाग) पर लगाएं और पत्तों का रस २-२ चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से आराम मिलता है।

१४.पोदीने की पत्तियों को पीसकर गाढ़े लेप को सोने से पहले चेहरे पर अच्छी तरह से मल लें। सुबह चेहरा गर्म पानी से धो लें। इस लेप को रोजाना लगाने से चेहरे के दाग-धब्बे, झांइयां और फुंसियां दूर हो जाती हैं और चेहरे पर निखार आ जाता है।

१५.बेहोश व्यक्ति को पुदीना की खुशबू सुंघाने से बेहोशी दूर हो जाती है। पोदीने के पत्तों को मसलकर सुंघाने से बेहोशी दूर हो जाती है।

१६.पेट दर्द :
  • २ चम्मच पोदीने के पत्तों का सूखा चूर्ण और 1 चम्मच मिश्री या चीनी मिलाकर सेवन करने से पेट के दर्द में आराम होता है।
  • सूखा पोदीना और चीनी को बराबर मात्रा में मिलाकर २ चम्मच की फंकी लेने से पेट दर्द ठीक हो जाता है।
  • ५-५ मिलीलीटर पोदीना का रस, अदरक का रस और 1 ग्राम सेंधानमक को मिलाकर सेवन करने से पेट का दर्द दूर हो जाता है।
  • ५ मिलीलीटर पोदीने का रस और ५ मिलीलीटर अदरक के रस को मिलाकर, उसमें थोड़ा-सा सेंधानमक डालकर सेवन करने से उदर शूल (पेट में दर्द) समाप्त हो जाता है।
  • पोदीना के ७ पत्ते और छोटी इलायची का 1 दाना पानी के पत्ते में लगाकर खाने से पेट में होने वाले दर्द में लाभ करता है।
  • पोदीना के पत्तों का शर्बत पीने से पेट का दर्द समाप्त हो जाता है। 4 ग्राम पुदीने में आधा-आधा चम्मच सौंफ और अजवायन, थोड़ा-सा कालानमक और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग हींग को मिलाकर बारीक मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें, इस बने चूर्ण को गर्म पानी के साथ सेवन करने से पेट में होने वाले दर्द में लाभ होता है।
  • 3 ग्राम पोदीना, जीरा, हींग, कालीमिर्च और नमक आदि को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से पेट के दर्द में आराम मिलता है।
  • पोदीना, सौंफ, सोंठ और गुलकंद को अच्छी तरह पीसकर पानी में उबालकर दिन में 3 बार रोजाना खुराक के रूप में पीने से पेट के दर्द और कब्ज की शिकायत दूर होती है।
  • 2 चम्मच सूखे पुदीने को काले नमक के साथ सेवन करने से पेट के दर्द में लाभ होता है।
  • सूखा पोदीना और चीनी को बराबर मात्रा में पीसकर रख लें, फिर २ चम्मच को फंकी के रूप में गर्म पानी के साथ पीने से पेट के दर्द में लाभ होता है। 
१७.पोदीना १० ग्राम और २0 ग्राम गुड़ को 100 मिलीलीटर पानी में उबालकर पीने से बार-बार पित्ती निकलना ठीक हो जाती है। पोदीने को पानी के साथ काढ़ा बनाकर थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर खाने से पित्त में बहुत ही लाभ होता है।

१८.पेट के गैस :

  • ४ चम्मच पोदीने के रस में 1 नींबू का रस और २ चम्मच शहद मिलाकर पीने से गैस के रोग में आराम आता है।
  • सुबह 1 गिलास पानी में २५ मिलीलीटर पोदीना का रस और 30 ग्राम शहद मिलाकर पीने से गैस समाप्त हो जाती है।
  • ६० ग्राम पोदीना, 10 ग्राम अदरक और ८ ग्राम अजवायन को 1 गिलास पानी में डालकर उबाल लें। उबाल आने पर इसमें आधा कप दूध और स्वाद के अनुसार गुड़ मिलाकर पीएं। चौथाई कप पोदीने का रस आघा कप पानी में आधा नींबू निचोड़कर ७ बार उलट-उलट कर पीने से भी गैस से होने वाला पेट का दर्द तुरंत ठीक हो जाता है।
  • पोदीने की ताजी पत्ती, छुहारा, कालीमिर्च, सेंधानमक, हींग, कालीद्राक्ष (मुनक्का) और जीरा इन सबकी चटनी बनाकर उसमें नींबू का रस निचोड़कर खाने से भोजन के प्रति रुचि उत्पन्न होती है, स्वाद आता है, गैस दूर होकर भोजन पचाने की क्रिया तेज होती है और मुंह का फीकापन दूर होता है।
  • 20 मिलीलीटर पोदीने का रस, 10 ग्राम शहद और ५ मिलीलीटर नींबू के रस को मिलाकर खाने से पेट के वायु विकार (गैस) समाप्त हो जाते हैं।
  • पुदीने की पत्तियों का २ चम्मच रस, आधा नींबू का रस मिलाकर पीने से लाभ होता है। 
१९.पोदीने का रस रोगी को पिलाने से आंतों के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।

२०.बिच्छू के काटने पर पोदीने का लेप करने और पानी में पीसकर रोगी को पिलाने से लाभ होता है।पोदीने का रस पीने से या उसके पत्ते खाने से बिच्छू के डंक मारने से होने वाला कष्ट दूर होता है।

२१.लू का लगना:
  • लगभग २० पोदीने की पत्तियां, लगभग 3 ग्राम सफेद जीरा और २ लौंग मिलाकर इन सबको पीसकर जल में घोलकर, छानकर रोगी को पिलाने से लू से होने वाली बेचैनी खत्म हो जाती है।
  • लगभग १५० मिलीलीटर पोदीने के रस को इतने ही ग्राम पानी के साथ पीने से लू से होने वाले खतरों से बचा जा सकता है।
  • सूखा पोदीना, खस तथा बड़ी इलायची लगभग ५०-५०ग्राम की बराबर मात्रा में लेकर कूट लें और इसका चूर्ण बना लें, फिर इसे एक लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को ठंडा करके लगभग १०० मिलीलीटर की मात्रा में पीने से लू ठीक हो जाती है। 
२२.घबराहट व बैचेनी में पोदीने का रस लाभदायक होता है।

२३.पुदीने के रस में नींबू का रस मिलाकर, पानी में डालकर पिलाने से यकृत वृद्धि मिट जाती है।

२४.जंगली पुदीना और हंसराज दोनों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर इसमें थोड़ी सी मिश्री मिलाकर सेवन करने से प्रजनन में दर्द नहीं होता है।

२५.कफ (बलगम) होने पर चौथाई कप पोदीने का रस इतने ही गर्म पानी में मिलाकर रोज 3 बार पीने से कफ में लाभ होता है।
२६.1 कप पानी में पुदीने की चटनी बनाकर, थोड़ी-सी चीनी डालकर अच्छी तरह मिलाकर सेवन करने से अम्लपित्त के कारण पेट में होने वाली जलन को शांत होती है।

२७.3 ग्राम पोदीने के रस में हींग, जीरा, कालीमिर्च और थोड़ा सा नमक डालकर गर्म करके पीने से पेट के दर्द और अरुचि (भोजन की इच्छा न होना) रोग ठीक हो जाते हैं।

२८.पोदीने की पत्तियों और कालीमिर्च को मिलाकर गर्म-गर्म चाय रोगी को पिलाने से सर्दी-खांसी, जुकाम, दमा और बुखार में आराम मिलता है।

२९.आधा कप पोदीने का रस दिन में २ बार नियमित रूप से कुछ दिनों तक पिलाते रहने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
३०.४-६ मुनक्का के साथ १० पोदीने की पत्तियां सुबह-शाम खाने के बाद नियमित रूप से चबाते रहने से बदहजमी में आराम मिलेगा। 

३१.चौथाई कप पोदीना का रस इतने ही पानी में मिलाकर रोजाना 3 बार पीने से खांसी, जुकाम, कफ-दमा व मंदाग्नि में लाभ होता है।

३२.जुकाम:
  • पोदीना, कालीमिर्च के पांच दाने और नमक इच्छानुसार डालकर चाय की भांति उबालकर रोजाना तीन बार पीने से जुकाम, खांसी और मामूली ज्वर में लाभ मिलता है।
  • पोदीने के रस की बूंदों को नाक में डालने से पीनस (जुकाम) के रोग में लाभ होता है।
  • पोदीने की चाय बनाकर उसके अंदर थोड़ा-सा नमक डालकर पीने से खांसी और जुकाम में लाभ मिलता है।
  • पोदीने के रस की 1-2 बूंदे नाक में डालने से पीनस (जुकाम) रोग नष्ट हो जाता है। 


३३.चोट लग जाने से रक्त जमा हो जाने (गुठली-सी बन जाने पर) पुदीना का अर्क (रस) पीने से गुठली पिघल जाती है।पोदीने का रस पिलाने से जमा हुआ खून टूटकर बिखर जाता है।सूखा पोदीना पीसकर फंकी लेने से खून का जमाव बिखर जाता है।

३४.२० हरे पुदीना की पत्तियां, ५ ग्राम जीरा और थोड़ी-सी हींग, कालीमिर्च के 10 दाने, चुटकीभर नमक को मिलाकर चटनी बनाकर 1 गिलास पानी में उबालें जब पानी आधा गिलास शेष रह जाए, तो छानकर पीने से अपच में लाभ होता है।

३५.पुदीने के पत्तों को पीसकर पोटली बनाकर जख्म पर बांधने से घाव के कीड़े मर जाते हैं।

३६.पुदीना के पत्तों का अधिक मात्रा में बार-बार सेवन करने से माहवारी शुरू हो जाती है। इसे चाहे जिस रूप में सेवन किया जाए या इसके पत्तों को पीस-घोलकर या मिश्री मिलाकर शर्बत के रूप में सेवन करना चाहिए।
३७.पुदीने की चटनी कुछ दिनों तक लगातार खाने से मासिक-धर्म नियमित हो जाता है। 

३८.कान के अंदर अगर बहुत ही बारीक कीड़ा चला जाये तो कान में पुदीने का रस डालने से कान का कीड़ा समाप्त हो जाता है।कान में दर्द हो तो पोदीना का रस डालें या हरी मकोय का रस कान में डालना चाहिए।

३९.पुदीना का रस लगभग ३० मिलीलीटर प्रत्येक ६ घंटे पर गर्भवती स्त्री को सेवन कराने से जी का मिचलाना बंद हो जाता है।
४०.पुदीना को पानी से पीसकर घोल बनाकर दिन में 3 से ४ बार कुल्ला करने से मुंह से दुर्गंध व अन्य रोग भी ठीक होते हैं।

४१.हिचकी:
  • पोदीने के पत्तों को चूसने और पत्तों को नारियल (खोपरे) के साथ चबाकर खाने से हिचकी दूर होती है।
  • पोदीने के पत्ते या नींबू को चूसने या पोदीने के पत्तों को शक्कर (चीनी) में मिलाकर चबाने से हिचकी का आना बंद हो जाता है।
  • पुदीना के सूखे और हरे पत्ते को शक्कर के साथ चबाने से हिचकी नहीं आती है।
  • २ मिलीलीटर हरे पुदीने के रस में २ ग्राम चीनी मिलाकर चबाने से हिचकी मिट जाती है।
  • पुदीने के पत्ते को मिश्री के साथ खाने से हिचकी मिट जाती है।
  • पुदीना के रस को हिचकी में पीने से लाभ होता है।
  • हिचकी बंद न हो तो पुदीने के पत्ते या नींबू चूसें। पुदीने के पत्तों पर शक्कर डालकर हर दो घंटे में चबाने से हिचकी में फायदा होता है।
  • 1-1 गोली पुदीना खाना-खाने के बाद सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से हिचकी में लाभ होता है।
  • 1 चम्मच पुदीने का रस, 1 चम्मच नींबू का रस और 1 चम्मच शक्कर आदि तीनों को एक साथ मिलाकर पीने से हिचकी नहीं आती है। 
४२.पोदीना १० या २० ग्राम को २०० मिलीलीटर पानी में उबालकर छानकर पिलाने से बार-बार उछलने वाली पित्ती ठीक हो जाती है।

४३.सिर पर हरे पोदीने का रस निकालकर लगाने से सिर दर्द दूर हो जाता है। 

४४.हैजा:
  • पोदीने का रस पीने से हैजा, खांसी, वमन (उल्टी) और अतिसार (दस्त) के रोग में लाभ होता है। इससे पेट में से गैस और कीड़े भी समाप्त हो जाते हैं।
  • हैजा होने पर पोदीना, प्याज और नींबू का रस मिलाकर रोगी को देने से लाभ मिलता है।
  • किसी व्यक्ति को हैजा होने पर उस व्यक्ति को प्याज का रस पिलाने से हैजे के रोग में आराम आता है।
  • २५ पुदीने की पत्तियां, ५ कालीमिर्च, काला-नमक २ चुटकी, २ भुनी हुई इलायची, 1 चोई इमली पकी। इन सब चीजों में पानी डालकर चटनी बना लें। इस चटनी को बार बार रोगी को चाटने के लिए दें।
  • पोदीना की ३० पत्तियां, कालीमिर्च के दाने 3 नग, कालानमक 1 ग्राम, भुनी हुई २ छोटी इलायची, कच्ची अथवा पकी इमली 1 ग्राम इन सबको पानी के साथ पीसकर चटनी-सी बना लें। यह चटनी हैजे के रोगी को चटाने से पेट दर्द, उल्टी, दस्त तथा प्यास आदि विकार दूर हो जाते हैं।
  • 10-10 मिलीलीटर पोदीने, प्याज और नींबू का रस मिलाकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में रोगी को पिलाने से हैजे के रोग में बहुत लाभ होता है। इससे वमन (उल्टी) भी जल्दी बंद हो जाती है। 
४५.पोदीना, तुलसी, कालीमिर्च और अदरक का काढ़ा पीने से वायु रोग (वात रोग) दूर होता है और भूख भी बहुत लगती है।

४६.पुदीने को पीसकर प्राप्त रस को 1 चम्मच की मात्रा में लेकर 1 कप पानी में डालकर पीने से दस्त कम हो जाते हैं.

४७.हरा पोदीना, सूखा धनिया और मिश्री बराबर मात्रा में लेकर चबायें और लार को नीचे टपकायें। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।

४८.पोदीने को सुखाकर बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसे स्त्री को संभोग (सहवास) करने से पहले लगभग 10 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ पिलाने से स्त्री का गर्भ नहीं ठहरता हैं। ध्यान रहे कि जब गर्भाधान अपेक्षित हो तो इस चूर्ण का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

४९.वमन (उल्टी):
  • ४ पोदीने के पत्ते और २ आम के पत्तों को लेकर 1 कप पानी में डालकर उबालने के लिए रख दें। जब उबलता हुआ पानी आधा बाकी रह जाए तो उस पानी में मिश्री डालकर काढ़े की तरह पीने से उल्टी ठीक हो जाती है।
  • ६ मिलीलीटर पोदीने का रस और लगभग लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सेंधानमक मिलाकर पीस लें इसे ताजे पानी में मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पीने से उल्टी आना बंद हो जाती है।
  • अगर पेट के खराब होने की वजह से छाती भारी-भारी लग रही हो और बेचैनी के कारण उल्टी हो रही हो तो 1 चम्मच पुदीने के रस को पानी के साथ पिलाने से लाभ होता है।
  • २-२ ग्राम पोदीना, छोटी पीपल और छोटी इलायची को एक साथ मिलाकर खाने से उल्टी होना बंद हो जाती है।
  • 10 बूंद पुदीने के रस को पानी में मिलाकर उसमें शक्कर डालकर पीने से उल्टी आना बंद हो जाती है।
  • पुदीना के पत्तों का शर्बत दिन में कई बार पीने से उल्टी और जी मिचलाना (उबकाई) आदि रोग दूर होते हैं।
  • पोदीने का रस और नींबू के रस को बराबर मात्रा में दिन में 1 चम्मच की मात्रा में ३-४ बार रोगी को पिलाने से उल्टी आना बंद हो जाती है।
  • पोदीना को नींबू के साथ देने से उल्टी आना बंद हो जाती है। आधा कप पोदीना का रस २-२ घण्टे के अंतराल में पिलाते रहने से लाभ उल्टी, दस्त और हैजा में मिलता है। 
५०.पोदीना और इमली को पीसकर उसमें सेंधानमक या शहद मिलाकर खाने से खट्टी डकारे और उल्टी आना शांत हो जाती है।

५१.अफारा (गैस का बनना):
  • पोदीना के ५ मिलीलीटर रस में थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर सेवन कराने से आध्यमान (अफारा) ठीक हो जाता है।
  • पोदीने का रस ५० मिलीलीटर, मिश्री ५ ग्राम और २ ग्राम यवक्षार मिलाकर खाने से आध्यमान (अफारा, गैस) दूर हो जाता है।
  • पोदीने के पत्तों का शर्बत बनाकर पीने से अफारा में लाभ होता है।
५२.पोदीना का ताजा रस शहद के साथ सेवन करने से आंतों की खराबी और पेट के रोग मिटते हैं। आंतों की बीमारी से पीड़ित रोगियों के लिए पोदीने के ताजे रस का सेवन करना बहुत ही लाभकारी है।

५३.पोदीना और अदरक का रस या काढ़ा पीने से शीतज्वर मिट जाता है। इससे पसीना निकल आता है और हर प्रकार का ज्वर मिट जाता हैं। गैस और जुकाम के रोग में भी यह काढ़ा बहुत लाभ पहुंचाता है।

५४.पोदीना, राम तुलसी (छोटे और हरे पत्तों वाली तुलसी) और श्याम तुलसी (काले पत्तों वाली तुलसी) का रस निकालकर उसमें थोड़ा-सा शक्कर (चीनी) मिलाकर सेवन करने से टायफाइड (मोतीझारा) के रोग में लाभ होता है।

५५.पोदीना का ताजा रस शहद के साथ मिलाकर हर 1 घंटे के बाद देने से न्युमोनिया (त्रिदोषज्वर-वात, पित्त और कफ) से होने वाले अनेक विकारों (बीमारियों) की रोकथाम करता है और बुखार को समाप्त करता है।

५६.पोदीने के रस को मुल्तानी मिट्टी में मिलाकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे की झांइयां समाप्त हो जाती हैं और चेहरे की चमक बढ जाती है।

५७.दाद:शरीर के किसी भाग में दाद होने पर उस भाग पर पोदीने के रस को 1 दिन में २-३बार दाद पर लगाने से लाभ मिलता है। 

५८.बुखार:
  • पुदीना और तुलसी का काढ़ा बनाकर रोजाना पीने से आने वाला बुखार रुक जाता है।
  • पोदीने और अदरक को पानी में उबालकर काढ़ा बना लें, फिर इसे छानकर दिन में २ बार पीने से बुखार ठीक हो जाता है। प्रतिश्याय (जुकाम) में भी इससे बहुत लाभ होता है।
  • पुदीना के पत्तों और मिश्री को मिलाकर शर्बत बनाकर बार-बार पीने से कफ के साथ-साथ बुखार में आराम मिलता है। 
५९.चेहरे की त्वचा अधिक तैलीय होने पर रोजाना पोदीने का रस रूई के साथ चेहरे पर लगाने से त्वचा का तैलीयपन कम होता है और चेहरे का सौंदर्य भी बढ़ता है।

६०.पुदीने में विटामिन-ई पाया जाता है, जो शरीर की शिथिलता (कमजोरी) और वृद्धावस्था (बुढ़ापे) को आने से रोकता है। इसके सेवन करने से नसे भी मजबूत होती हैं।

६१.पुदीना चबाकर खाने से दांतों के बीच छिपे भोजन के कण दूर होते हैं और मुंह की सफाई भी हो जाती है।

मंगलवार, 28 मई 2013

"अल्कोहलिस्म" में होमियोपैथी कारगर

औगुन कहूं सराब का, ज्ञानवंत सुनि लेय
मानुष सों पसुवा करै, द्रव्य गांठि का देय


शराब का उपभोग मजे तथा जीवन का आनंद लेने के साथ जुड़ा हुआ है. लेकिन अत्यधिक मात्रा में गैरजिम्मेवार तरीके से इसका सेवन जीवन को ही दूर कर देता है.शराब की बुरी लत को ‘अल्कोहलिस्म’ कहते हैं. जब कोई इनसान शराब का आदी हो जाये और वह उसके बगैर अपने को कमजोर समझने लगे. किसी भी कीमत पर उसे छोड़ने को तैयार न हो, उसकी कमी उसे हमेशा महसूस होती रहे. उसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहे. ऐसी स्थिति में शराब का सेवन उसके परिवार व स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह होता है.
शराब जो पहले शौक बनती है. फिर आदत और बाद में जरूरत बन कर इनसान को शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं वित्तीय रूप से काफी नुकसान पहुंचाती है. ऐसा हम हमेशा टीवी चैनलों या अखबारों के माध्यम से देखते और पढ़ते हैं कि इनसान ज्यादातर गलत काम शरीब पीकर ही करता है. यहां तक कि बलात्कार जैसी गंदी वारदात भी शराब को पीकर ही करता है. वरना कोई चार/पांच साल तक की बच्चियों का बलात्कार कभी होश में नहीं कर सकता है, शराब ही उसके मानसिक संतुलन को बिगाड़ देती है.

                          जब ऐसी गंदी लत किसी को लग ही जाती है, तब उसे इस दलदल से निकालने का हम चिकित्सकों का कर्त्तव्य हो जाता है कि वह इंसान शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पुन: मान-सम्मान पा सके. ऐसी लत को छुड़ाने में होमियोपैथिक दवाइयां काफी कारगर होती है. वशर्ते वह इन्सान दवाओं को दिल से स्वीकार करें. 
शराब की इस बुरी लत को ‘अल्कोहलिस्म’ कहते हैं. जब कोई इनसान शराब का इतना आदी हो जाये कि वह उसके बगैर अपने को कमजोर समझने लगे और किसी भी कीमत पर उसे छोड़ने को तैयार न हो, उसकी कमी उसे हमेशा महसूस होती रहे, उसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहे.

अल्कोहलिस्म यानी शराब की लत का शरीर के विभिन्न अंगों पर क्या असर होता है, पहले यह जान लें.
पाचन तंत्र: सुबह उठते ही उल्टी जैसा लगना, भूख में कमी,अनपच जैसा पतला शौच करना, कभी-कभी मुंह से उल्टी के साथ रक्त जैसा आना, आंत नली का कैंसर तक हो जाना.
यकृत (लीवर): यकृत की कोशिकाओं में चर्बी जमा हो जाना (फैटी लीवर), सिरोसिस लीवर, पेन्क्रियाज में सूजन.
दिमागी तंत्र: यादाश्त में कमी, सोचने, समझने की क्षमता कम हो जाती है.
मांसपेशियां: छाती एवं कमर की मांसपेशियां सूखने लगती है.
अस्थि तंत्र: हड्डियां कमजोर हो जाती है. कैल्शियम, मैग्निशियम, फास्फोरस एवं विटामिन डी की कमी से, हड्डी टूटने पर जुड़ना मुश्किल हो जाता है, हड्डी की मज्जा कमजोर होकर, लाल रक्त कण, श्वेत रक्त कण एवं प्लेटलेट का बनना कम कर देता है.
हारमोनल तंत्र: चीनी की बीमारी हो जाती है, इंसुलीन की कमी से.

हृदय तंत्र: उच्च रक्त दबाव हो जाता है. (हाइ ब्लड प्रेशर)
श्वास नली तंत्र : दमा की शिकायत हो जाती है, क्योंकि प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है.
त्वचा: बैक्टीरिया, फ फूंदी जल्द असर करते हैं और जल्दी समाप्त नहीं होते हैं, क्योंकि प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. सोरियेसिस जैसा चर्म रोग भी हो सकता है, किडनी की खराबी भी होती है.
मर्दो में नपुंसकता एवं टेस्टीस (अंडकोष) सूख जाते हैं. स्त्रियों में ओवरी एवं बच्चेदानी में खराबी, बच्चा न होना, बार-बार गर्भ गिरना (हेबिचुअल अबोरशन) इत्यादि बीमारी हो जाती है. 

कारगर है होमियोपैथिक दवाइयां

स्टरकुलिया एकुमिनाटा: शरीर में अत्यधिक कमजोरी लगे जैसा हृदय की गति कम हो गयी हो, यह दवा भूख बढ़ाती है और खाना पचाने में सहायक होती है. मुंह का स्वाद ऐसा कर देती है कि शराब की महक से नफरत होने लगती है और उसकी इच्छा को कम कर देती है. 5-10 बूंद अर्क में सुबह-रात आधे कप पानी के साथ लें.

अवेना साटाइवा: मानसिक एवं यौन संबंधी कमजोरी लगे. शराब के बिना एक पल भी रहना मुश्किल लगे. नींद बिल्कुल गायब हो जाये, तब 10 से 20 बूंद मूल अर्क में थोड़ा सुसुम पानी के साथ सुबह-रात लें.

क्यूरीकस ग्लैडियम स्प्रिटस: शराब से पैदा हुए डर बुरे असर को यह दवा काटती है.शराब के प्रति नफरत पैदा करती है, क्योंकि यह दवा लेने के बाद जब भी कोई शराब लेता है, तब उसे उल्टी के जैसा लगता है या उल्टी हो सकती है, इसलिए डर से शराब छोड़ने लगता है. यह दवा 10 बूंद मूल अर्क लेकर एक चम्मच पानी के साथ दिन से चार बार दिन भर लें.
नक्स वोमिका: वैसे स्वभाव के लोग शराब अधिक लेते हों, पतले, चिड़चिड़े हो, जरा सा भी शोर रोशनी और खुशबू बर्दाश्त न होती हो. सुबह उठते ही या खाना खाने के बाद उल्टी के जैसा लगता हो, भूख में बहुत कमी रहती हो और हमेशा शराब की जरूरत महसूस होती है. तब 200 शक्ति की दवा रोज रात में ले. काफी लाभ पहुंचेगा और शराब के द्वारा पैदा सभी खराबियों को सही कर देगा.
कैप्सीकम: वैसे शराब की लतवाले रोगी, जो मोटे शरीर के हों, शारीरिक काम बिल्कुल न करना चाहे और अकेले घर ही में रहना पसंद करते हों (होम सिकनेस) यहां तक की नहाना न चाहें, गंदा रहने की आदत रहे. दोनों हाथों को सीधा रखने पर कंपन रहे (डेलेरियम ट्रेमर). तब 200 शक्ति की दवा रोज सुबह-रात लें.
नोट: दवा का सेवन कम से कम तीन महीने तक करें
बिशेष :एक संगठन ऐसा है जो हमारे चाहने पर हमारी मदद कर सकता है और वो है -एल्कोहलिक एनोनिमस. एल्कोहलिक एनोनिमस एक विश्वव्यापी संगठन है, जिसने पूरी दुनिया में तीस करोड़ से अधिक लोगों की मदद की है. भारत में भी इसके कई केंद्र हैं जो देश भर में फैले हुए हैं. उनसे संपर्क का विवरण निम्न प्रकार है. दूरभाष से संपर्क करने के लिए +919022771011 पर कॉल कर सकते हैं या AAAAआपका नाम, पता तथा दूरभाष संख्या लिखकर 56363 पर एसएमएस कर सकते हैं.

रविवार, 26 मई 2013

वास्तु और स्वास्थ्य

वास्तु का भी हमारे जीवन में विशेष प्रभाव रहता है.मानसिक हालत कमजोर होने की स्थिति में हम डिप्रेशन या अवसाद का शिकार हो जाते हैं। ऐसा होने पर व्यक्ति के विचारों, व्यवहार, भावनाओं और दूसरी गतिविधियों पर असर पड़ता है। डिप्रेशन से प्रभावित व्यक्ति अक्सर उदास रहने लगता है, उसे बात-बात पर गुस्सा आता है, भूख कम लगती है, नींद कम आती है और किसी भी काम में उसका मन नहीं लगता। लंबे समय तक ये हालत बने रहने पर व्यक्ति मोटापे का शिकार बन जाता है, उसकी ऊर्जा में कमी आने लगती है, दर्द के एहसास के साथ उसे पाचन से जुड़ी शिकायतें होने लगती हैं। कहने का मतलब यह है कि डिप्रेशन केवल एक मन की बीमारी नहीं है, यह हमारे शरीर को भी बुरी तरह प्रभावित करता है। डिप्रेशन के शिकार किसी व्यक्ति में इनमें से कुछ कम लक्षण पाए जाते हैं और किसी में ज्यादा।
आमतौर पर शरीर में बीमारी होने पर हम उसके बायोलॉजिकल, मनोवैज्ञानकि या सामाजिक कारणों पर जाते हैं। यहां पर आज हम बीमारियों के उस पहलू पर गौर करेंगे, जो हमारे घर के वास्तु से जुड़ा है। कई बीमारियों की वजह घर में वास्तु के नियमों की अनदेखी भी हो सकती है। अगर आप इन नियमों को जान लेंगे और उनका पालन करना शुरू करेंगे तो आपको इन बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है।

  1. जैसे वास्तु में यह माना जाता है कि अगर आप दक्षिण दिशा में सिर करके सोते हैं तो आपके स्वास्थ्य में सुधार होता है। जहां तक करवट का सवाल है तो वात और कफ प्रवृत्ति के लोगों को बाईं और पित्त प्रवृत्ति वालों को दाईं करवट लेटने की सलाह दी जाती है। 
  2. सीढ़ियों का घर के बीच में होना स्वास्थ्य के लिहाज से नुकसान देने वाला होता है, इसलिए साढ़ियों को बीच के बजाय किनारे की ओर बनवाएं। 
  3. इसी तरह भारी फर्नीचर को भी घर के बीच में रखना अच्छा नहीं माना जाता। इस जगह में कंक्रीट का इस्तेमाल भी वास्तु के अनुकूल नहीं होता। दरअसल घर के बीच की जगह ब्रह्मस्थान कहलाती है, जहां तक संभव हो तो इस जगह को खाली छोड़ना बेहतर होता है।
  4.  घर के बीचोबीच में बीम का होना दिमाग के लिए नुकसानदायक माना जाता है। 
  5. वास्तु के नियमों के हिसाब से बीमारी की एक बड़ी वजह घर में अग्नि का गलत स्थान भी है। जैसे कि अगर आपका घर दक्षिण दिशा में है, तो इसी दिशा में अग्नि को न रखें।
  6.  रोशनी देने वाली चीज को दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखना स्वास्थ्य के लिए शुभ माना जाता है। घर में बीमार व्यक्ति के कमरे में कुछ सप्ताह तक लगातार मोमबत्ती जलाए रखना भी उसके स्वास्थ्य के लिए शुभ होता है।
  7. अगर घर का दरवाजा भी दक्षिण दिशा में है, तो इसे बंद करके रखें। यह दरवाजा लकड़ी का और ऐसा    होना चाहिए, जिससे सड़क अंदर से न दिखे।
  8. घर में किचन की जगह का भी हमारे स्वास्थ्य से संबंध होता है। दक्षिण-पश्चिम दिशा में किचन होने से  व्यक्ति अवसाद से दूर रहता है। 
  9. घर के मुख्य द्वार से यदि रसोई कक्ष दिखाई दे तो घर की स्वामिनी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है और उसके बनाए खाने को भी परिवार के लोग ज्यादा पसंद नहीं करते हैं।यदि आपकी रसोई बड़ी है तो आपको रसोई घर में बैठ कर ही भोजन करना चाहिए। इससे कुंडली में राहु के दुष्प्रभावों का शमन होता है।
  10. पूरे परिवार के अच्छे स्वास्थ्य के लिए घर में दक्षिण दिशा में हनुमान का चित्र लगाना चाहिए।
  11. शैया की माप के बारे में विधान है कि शैया की लंबाई सोने वाले व्यक्ति की लंबाई से कुछ अधिक होना चाहिए। पलंग में लगा शीशा वास्तु की दृष्टि से दोष है, क्योंकि शयनकर्ता को शयन के समय अपना प्रतिबिम्ब नजर आना उसकी आयु क्षीण करने के अलावा दीर्घ रोग को जन्म देने वाला होता है।
  12. बेड को कोने में दीवार से सटाकर बिलकुल न रखें। कमरे में दर्पण को कुछ इस तरह रखें, जिससे लेटी अवस्था में आपका प्रतिबिम्ब उस पर न पड़े।
  13. शयनकक्ष में साइड टेबल पर दवाई रखने का स्थान न हो। अनिवार्य दवाई को भी सुबह वहाँ से हटाकर अन्यत्र रख दें।फ्रिज कभी भी बेडरूम में न हो।
  
                                                                                                         कुछ टिप्स:राजीव एस. खट्टर-हिदुस्तान

गुरुवार, 23 मई 2013

भोजन में फाइबर की जरूरत


स्वास्थ्य चर्चा के क्रम में आज हम भोजन में फाइबर की उपयोगिता के बारे में चर्चा करेंगे.वैसे तो आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में अनेक तरह की बीमारियाँ हमें अपनी चपेट में ले चुकी हैं लेकिन आमतौर पर जिस बीमारी से आज हर इंसान परेशान है, वह है पेट की बीमारी। आज ज्यादातर लोग पेट दर्द, एसिडिटी, जलन, खट्टी डकार जैसी पेट की बीमारियों से परेशान हैं। इस तरह की समस्याएँ रेशेदार भोजन न करने से होती हैं। 
                                  भोजन के उचित पाचन के लिए फाइबर की जरुरत होती है। आपको यह महसूस कराने के लिए कि आपका पेट भरा है, आहार संबंधी फाइबर आवश्यक है। फाइबर की कमी से कब्ज़, बवासीर तथा रक्त में कोलोस्ट्राल और शक्कर की मात्रा का बढ़ना आदि समस्याएँ आ सकती हैं। इसके विपरीत इसकी अत्यधिक मात्रा के उपयोग से आंतडियों में परेशानी, दस्त या निर्जलीकरण की समस्या भी आ सकती है। वे व्यक्ति जो अपने भोजन में फाइबर के सेवन को बढ़ाते हैं, उन्हें पानी का सेवन भी बढ़ाना चाहिए। जब फाइबर की बात आती है तो छोटे से परिवर्तन आपके फाइबर के सेवन और और समग्र स्वास्थ्य पर एक बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं। फाइबर के सेवन से दिल की बीमारी, मधुमेह, मोटापा और विशिष्ट प्रकार के कैंसर से बचा जा सकता है। महिलाओं को दिनभर में 25 ग्राम रेशा और पुरुषों को लगभग 35 से 40 ग्राम रेशे की आवश्‍यकता होती है। लेकिन हम केवल 15 ग्राम रेशा ही खा पाते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि आप अपना मनपसंद खाना छोड़ दें या अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएं।
           फाइबर दो तरह का होता है। पहला जल में घुलनशीन और दूसरा अघुलनशील होता है। ये दोनों साथ मिल कर आंतो की सफाई करते हैं। आंतो को स्वास्थ और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
घुलनशील फाइबर जैसे पेक्टिन, गम आदि हमे बेरी प्रजाति के फल, अलसी, आड़ू,सेब, ओट, ग्वार की फली आदि से प्राप्त होता है। आंत के प्रोबायोटिक जीवाणु इसका फर्मेंटेशन करते हैं, जिससे शॉर्ट चेन फैटी एसिड बनते हैं। ये जीवाणुओं को पोषण देता है। अघुलनशील फाइबर हमें साबुत अन्न, अलसी, दाल, मटर, मसूर, मेवे, सब्जी और फलों से प्राप्त होता है। इनका फर्मेंटेशन नहीं होता है। लेकिन फिर भी ये बड़े काम की चीज है। ये मल को आयतन प्रदान करते हैं और मल को बाहर निकालने में मदद करते हैं। 

घुलनशील फाइबर के फायदे

१.हृदय रोग का जोखिम कम करता है।
२.रक्त शर्करा को नियंत्रित रखता है।
३.आंतो में हितकारी जीवाणुओं का विकास और पोषण करता है।
४.अतिसक्रिय आहार पथ को सांत्वना और आराम पहुँचाता है।
५.बुरे कॉलेस्टेरोल को कम करता है।

अघुलनशील फाइबर के फायदे

१.कब्जी और दस्त दोनों को ठीक करता है।
२.आंत का शोधन, मर्दन और उपचार करता है।
३.टॉक्सिन, कॉलेस्टेरोल, अपशिष्ट को बाहर निकालता है।
४.आंतो की अम्लता को कम करता है।
५.आंतों को कैंसर से बचाता है।
६.यह मल को आकार और आयतन प्रदान करता है।
७.यह छोटी आंत में जमे मलवे और म्यूकस को भी साफ करता चलता है, जिससे पोषक तत्वों का अवशोषण ८.बेहतर हो जाता है।
९.अघुलनशील फाइबर को बाहर निकालने में आंतों की मशक्कत और कसरत भी हो जाती है।


यहाँ कुछ खाद्य पदार्थ बताए गए हैं जिनका उपयोग करके आप फाइबर को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं:
                                    
मक्का: फाइबर युक्त अनाज चुनें। ऐसा अनाज चुनें जिसके एक बार के परोसे गए हिस्से में कम से कम 4 ग्राम फाइबर हो जैसे मक्का आदि।

दालें: अपने नियमित अनाज में उच्च फाइबर युक्त अनाज मिलाएं जैसे राजमा, विभिन्न प्रकार की दालें आदि।

फल: फलों का सेवन ज़्यादा करें। नाश्ते या मिष्ठान्न के रूप में फल खाएं और फलों का रस सीमित मात्रा में पीएं। सेब और नाशपाती जैसे फलों को छिलके सहित खाएं। छिलकों में ही सबसे अधिक फाइबर होता है।


रेशेदार सब्‍जियां :सब्ज़ियों का सेवन अधिक करें। सब्जियाँ फाइबर का अच्छा स्त्रोत हैं उदाहरण के लिए मूली, पत्तागोभी आदि।

ब्राउन ब्रेड : गेंहूँ से बनी हुई ब्रेड और पास्ता का उपयोग करें।

सूखे मेवे: सलाद, दही या अन्न में सूखे मेवे, दानें मिलाएं।

गेहूँ का आटासाबूत गेहूं में रेशेदार चोकर पाया जाता है, जो पाचनतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।अपने मनपसंद व्यंजनों में मैदे के स्थान पर गेंहूँ के आटे का उपयोग करें।गेहूं का चोकर फाइबर का सबसे संक्रेन्द्रित स्रोत है।गेहूं के चोकर में अघुलनशील फाइबर होता है, जिसे सैलूलोज कहते हैं। इसमें कैल्सियम, सिलीनियम, मैग्नीशियम, पोटैसियम, फॉस्फोरस जैसे खनिजों के साथ-साथ विटमिन ई और बी कॉम्प्लेक्स पाए जाते हैं।
ब्राउन चावल :सामान्य चांवल के स्थान पर ब्राउन राईस का उपयोग करें।

मटर : मटर को चाहे उबाल कर खाएं या फिर कच्‍ची ही खाइये। एक कप मटर के दानों में 16.3 ग्राम रेशा मिलेगा।

ओटमील : ओट्स में बीटा ग्‍लूकन होता है जो कि एक स्‍पेशल टाइप का फाइबर होता है। यह कोलेस्‍ट्रॉल लेवल को कम कर के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है।

शनिवार, 18 मई 2013

स्लिप डिस्क :कारण और उपचार (Slip Disc: Causes and Treatment)



Slip Disc Causes and Treatment
"A slipped disk may cause symptoms such as pain down the back of the leg (sciatica), numbness, or weakness. Read about causes, diagnosis, treatment (surgery, physical therapy), and medications."

What is a slipped disc?



"Injury or weakness causes the inner portion of a spinal disc to herniate. This is called a slipped disc and can cause discomfort. You can have a slipped disc in any part of your spine, from your neck to your lower back.





Slip disc treatment in Hindi


धुनिक काल में जहां हर क्षेत्र में मानव ने विकास किया है और सफलता के झंडे गाड़े हैं वहीं बीमारियों का शिकार होने में भी शत प्रतिशत सहयोगी बना है।अगर आज के समय में बीमारियों या शरीर के विकारों की बात की जाए तो गिनती शायद कम पड़ जाएगी मगर शरीर के विकार खत्म नहीं हो पाएंगे और इस भागती दौड़ती जिंदगी में हमारा शरीर न जाने किन-किन विकारों की चपेट में आ जाता है।आज लगभग हर आदमी को अपने जीवन काल में कमर दर्द का अनुभव होता है।अब लोगों के लिए कमर दर्द भी एक बहुत बड़ी कष्टदायक समस्या बनी हुई है और अब ये दुनिया में एक महामारी का रूप लेता जा रहा है।आज हर उम्र के लोग इससे परेशान हैं और दुनिया भर में इसके सरल व सहज इलाज की खोज जारी है। यह गंभीर दर्द कई बार स्लिप्ड डिस्क में बदलता है तो कभी-कभी इससे साइटिका हो सकता है।


Slip Disc: Causes and Treatment
स्पाइनल कॉर्ड और डिस्क: Spinal cord and discs


स्लिप्ड डिस्क को जानने के लिए रीढ की पूरी बनावट को समझना जरूरी है। स्पाइनल कॉर्ड या रीढ की हड्डी पर शरीर का पूरा वजन टिका होता है। यह शरीर को गति देती है और पेट, गर्दन, छाती और नसों की सुरक्षा करती है। स्पाइन वर्टिब्रा से मिलकर बनती है। यह सिर के निचले हिस्से से शुरू होकर टेल बोन तक होती है। स्पाइन को तीन भागों में बांटा जाता है-
1. गर्दन या सर्वाइकल वर्टिब्रा
2. छाती (थोरेसिक वर्टिब्रा)
3. लोअर बैक (लंबर वर्टिब्रा)
स्पाइन कॉर्ड की हड्डियों के बीच कुशन जैसी एक मुलायम चीज होती है, जिसे डिस्क कहा जाता है। ये डिस्क एक-दूसरे से जुडी होती हैं और वर्टिब्रा के बिलकुल बीच में स्थित होती हैं। डिस्क स्पाइन के लिए शॉक एब्जॉर्बर का काम करती है।
आगे-पीछे, दायें-बायें घूमने से डिस्क का फैलाव होता है। गलत तरीके से काम करने, पढने, उठने-बैठने या झुकने से डिस्क पर लगातार जोर पडता है। इससे स्पाइन के न‌र्व्स पर दबाव आ जाता है जो कमर में लगातार होने वाले दर्द का कारण बनता है।
स्लिप्ड डिस्क क्या है ?
What is slip disc ?
Slip Disc Causes and Treatment
दरअसल यह टर्म स्लिप्ड डिस्क समूची प्रक्रिया को सही ढंग से नहीं बता पाता। स्लिप्ड डिस्क कोई बीमारी नहीं, शरीर की मशीनरी में तकनीकी खराबी है। वास्तव में डिस्क स्लिप नहीं होती, बल्कि स्पाइनल कॉर्ड से कुछ बाहर को आ जाती है। डिस्क का बाहरी हिस्सा एक मजबूत झिल्ली से बना होता है और बीच में तरल जैलीनुमा पदार्थ होता है। डिस्क में मौजूद जैली या कुशन जैसा हिस्सा कनेक्टिव टिश्यूज के सर्कल से बाहर की ओर निकल आता है और आगे बढा हुआ हिस्सा स्पाइन कॉर्ड पर दबाव बनाता है। कई बार उम्र के साथ-साथ यह तरल पदार्थ सूखने लगता है या फिर अचानक झटके या दबाव से झिल्ली फट जाती है या कमजोर हो जाती है तो जैलीनुमा पदार्थ निकल कर नसों पर दबाव बनाने लगता है, जिसकी वजह से पैरों में दर्द या सुन्न होने की समस्या होती है।


What causes a slipped disc?

आम कारण
1. गलत पोश्चर इसका आम कारण है। लेट कर या झुक कर पढना या काम करना, कंप्यूटर के आगे बैठे रहना इसका कारण है।
2. अनियमित दिनचर्या, अचानक झुकने, वजन उठाने, झटका लगने, गलत तरीके से उठने-बैठने की वजह से दर्द हो सकता है।
3. सुस्त जीवनशैली, शारीरिक गतिविधियां कम होने, व्यायाम या पैदल न चलने से भी मसल्स कमजोर हो जाती हैं। अत्यधिक थकान से भी स्पाइन पर जोर पडता है और एक सीमा के बाद समस्या शुरू हो जाती है।
4. अत्यधिक शारीरिक श्रम, गिरने, फिसलने, दुर्घटना में चोट लगने, देर तक ड्राइविंग करने से भी डिस्क पर प्रभाव पड सकता है।
5. उम्र बढने के साथ-साथ हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और इससे डिस्क पर जोर पडने लगता है।
खास कारण
1. जॉइंट्स के डिजेनरेशन के कारण
2. कमर की हड्डियों या रीढ की हड्डी में जन्मजात विकृति या संक्रमण
3. पैरों में कोई जन्मजात खराबी या बाद में कोई विकार पैदा होना।
किस उम्र में है खतरा
1. आमतौर पर 30 से 50 वर्ष की आयु में कमर के निचले हिस्से में स्लिप्ड डिस्क की समस्या हो सकती है।
2. 40 से 60 वर्ष की आयु तक गर्दन के पास सर्वाइकल वर्टिब्रा में समस्या होती है।
3. एक्सप‌र्ट्स के अनुसार अब 20-25 वर्ष के युवाओं में भी स्लिप डिस्क के लक्षण तेजी से देखे जा रहे हैं। देर तक बैठ कर कार्य करने के अलावा स्पीड में बाइक चलाने या सीट बेल्ट बांधे बिना ड्राइविंग करने से भी यह समस्या बढ रही है। अचानक ब्रेक लगाने से शरीर को झटका लगता है और डिस्क को चोट लग सकती है।
सामान्य लक्षण
1. नसों पर दबाव के कारण कमर दर्द, पैरों में दर्द या पैरों, एडी या पैर की अंगुलियों का सुन्न होना
2. पैर के अंगूठे या पंजे में कमजोरी
3. स्पाइनल कॉर्ड के बीच में दबाव पडने से कई बार हिप या थाईज के आसपास सुन्न महसूस करना
4. समस्या बढने पर यूरिन-स्टूल पास करने में परेशानी
5. रीढ के निचले हिस्से में असहनीय दर्द
6. चलने-फिरने, झुकने या सामान्य काम करने में भी दर्द का अनुभव। झुकने या खांसने पर शरीर में करंट सा अनुभव होना।
जांच और उपचार
Slip disc: Detection and Treatment
दर्द की निरंतरता, एक्स-रे या एमआरआइ, लक्षणों और शारीरिक जांच के माध्यम से डॉक्टर को पता चलता है कि कमर या पीठ दर्द का सही कारण क्या है और क्या यह स्लिप्ड डिस्क है। जांच के दौरान स्पॉन्डलाइटिस, डिजेनरेशन, ट्यूमर, मेटास्टेज जैसे लक्षण भी पता लग सकते हैं। कई बार एक्स-रे से सही कारणों का पता नहीं चल पाता। सीटी स्कैन, एमआरआइ या माइलोग्राफी (स्पाइनल कॉर्ड कैनाल में एक इंजेक्शन के जरिये) से सही-सही स्थिति का पता लगाया जा सकता है। इससे पता लग सकता है कि यह किस तरह का दर्द है। यह डॉक्टर ही बता सकता है कि मरीज को किस जांच की आवश्यकता है।
                                             स्लिप्ड डिस्क के ज्यादातर मरीजों को आराम करने और फिजियोथेरेपी से राहत मिल जाती है। इसमें दो से तीन हफ्ते तक पूरा आराम करना चाहिए। दर्द कम करने के लिए डॉक्टर की सलाह पर दर्द-निवारक दवाएं, मांसपेशियों को आराम पहुंचाने वाली दवाएं या कभी-कभी स्टेरॉयड्स भी दिए जाते हैं। फिजियोथेरेपी भी दर्द कम होने के बाद ही कराई जाती है। अधिकतर मामलों में सर्जरी के बिना भी समस्या हल हो जाती है। संक्षेप में इलाज की प्रक्रिया इस तरह है-
1. दर्द-निवारक दवाओं के माध्यम से रोगी को आराम पहुंचाना
2. कम से कम दो से तीन हफ्ते का बेड रेस्ट
3. दर्द कम होने के बाद फिजियोथेरेपी या कीरोप्रैक्टिक ट्रीटमेंट
4. कुछ मामलों में स्टेरॉयड्स के जरिये आराम पहुंचाने की कोशिश
5. परंपरागत तरीकों से आराम न पहुंचे तो सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है।
लेकिन सर्जरी होगी या नहीं, यह निर्णय पूरी तरह विशेषज्ञ का होता है। ऑर्थोपेडिक्स और न्यूरो विभाग के विशेषज्ञ जांच के बाद सर्जरी का निर्णय लेते हैं। यह निर्णय तब लिया जाता है, जब स्पाइनल कॉर्ड पर दबाव बढने लगे और मरीज का दर्द इतना बढ जाए कि उसे चलने, खडे होने, बैठने या अन्य सामान्य कार्य करने में असह्य परेशानी का सामना करने पडे। ऐसी स्थिति को इमरजेंसी माना जाता है और ऐसे में पेशेंट को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत होती है, क्योंकि इसके बाद जरा सी भी देरी पक्षाघात का कारण बन सकती है।
रोगी को सलाह:Patient Advice
जांच और एमआरआइ रिपोर्ट सही हो तो स्लिप्ड डिस्क की सर्जरी आमतौर पर सफल रहती है। हालांकि कभी-कभी अपवाद भी संभव है। अगर समस्या एल 4 (स्पाइनल कॉर्ड के निचले हिस्से में मौजूद) में हो और सर्जन एल 5 खोल दे तो डिस्क मिलेगी ही नहीं, लिहाजा सर्जरी विफल होगी। हालांकि ऐसा आमतौर पर नहीं होता, लेकिन कुछ गलतियां कभी-कभार हो सकती हैं। सर्जरी के बाद रोगी को कम से कम 15-20 दिन तक बेड रेस्ट करना पडता है। इसके बाद कमर की कुछ एक्सरसाइजेज कराई जाती हैं। ध्यान रहे कि इसे किसी कुशल फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा ही कराएं। शुरुआत में हलकी एक्सरसाइज होती हैं, धीरे-धीरे इनकी संख्या बढाई जाती है। मरीज को हार्ड बेड पर सोना चाहिए, मांसपेशियों को पूरा आराम मिलने तक आगे झुक कर कोई काम करने से बचना चाहिए। सर्जरी के बाद भी जीवनशैली सही रहे, यह जरूरी है। वजन नियंत्रित रहे, आगे झुक कर काम न करें, भारी वजन न उठाएं, लंबे समय तक एक ही पोश्चर में बैठने से बचें और कमर पर आघात या झटके से बचें।
जीवनशैली बदलें
1. नियमित तीन से छह किलोमीटर प्रतिदिन पैदल चलें। यह सर्वोत्तम व्यायाम है हर व्यक्ति के लिए।
2. देर तक स्टूल या कुर्सी पर झुक कर न बैठें। अगर डेस्क जॉब करते हैं तो ध्यान रखें कि कुर्सी आरामदेह हो और इसमें कमर को पूरा सपोर्ट मिले।
3. शारीरिक श्रम मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। लेकिन इतना भी परिश्रम न करें कि शरीर को आघात पहुंचे।
4. देर तक न तो एक ही पोश्चर में खडे रहें और न एक स्थिति में बैठे रहें।
5. किसी भी सामान को उठाने या रखने में जल्दबाजी न करें। पानी से भरी बाल्टी उठाने, आलमारियां-मेज खिसकाने, भारी सूटकेस उठाते समय सावधानी बरतें। ये सारे कार्य इत्मीनान से करें और हडबडी न बरतें।
6. अगर भारी सामान उठाना पडे तो उसे उठाने के बजाय धकेल कर दूसरे स्थान पर ले जाने की कोशिश करें।
7. हाई हील्स और फ्लैट चप्पलों से बचें। अध्ययन बताते हैं कि हाई हील्स से कमर पर दबाव पडता है। साथ ही पूरी तरह फ्लैट चप्पलें भी पैरों के आर्च को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे शरीर का संतुलन बिगड सकता है।
8. सीढियां चढते-उतरते समय विशेष सावधानी रखें।
9. कुर्सी पर सही पोश्चर में बैठें। कभी एक पैर पर दूसरा पैर चढा कर न बैठें।
10. जमीन से कोई सामान उठाना हो तो झुकें नहीं, बल्कि किसी छोटे स्टूल पर बैठें या घुटनों के बल नीचे बैठें और सामान उठाएं।
11. वजन नियंत्रित रखें। वजन बढने और खासतौर पर पेट के आसपास चर्बी बढने से रीढ की हड्डी पर सीधा प्रभाव पडता है।
12. अत्यधिक मुलायम और सख्त गद्दे पर न सोएं। स्प्रिंगदार गद्दों या ढीले निवाड वाले पलंग पर सोने से भी बचें।
13. पीठ के बल सोते हैं तो कमर के नीचे एक टॉवल फोल्ड करके रखें, इससे रीढ को सपोर्ट मिलेगा।
14. कभी भी अधिक मोटा तकिया सिर के नीचे न रखें। साधारण और सिर को हलकी सी ऊंचाई देता तकिया ही बेहतर होता है।
15. मॉल्स में शॉपिंग के दौरान या किसी इवेंट या आयोजन में अधिक देर तक एक ही स्थिति में न खडे रहें। बीच-बीच में स्थिति बदलें। अगर देर तक खडे होकर काम करना पडे तो एक पैर को दूसरे पैर से छह इंच ऊपर किसी छोटे स्टूल पर रखना चाहिए।
16. अचानक झटके के साथ न उठें-बैठें।
17. देर तक ड्राइविंग करनी हो तो गर्दन और पीठ के लिए कुशंस रखें। ड्राइविंग सीट को कुछ आगे की ओर रखें, ताकि पीठ सीधी रहे।
18. दायें-बायें या पीछे देखने के लिए गर्दन को ज्यादा घुमाने के बजाय शरीर को घुमाएं।
19. पेट के बल या उलटे होकर न सोएं।
20. कमर झुका कर काम न करें। अपनी पीठ को हमेशा सीधा रखें।


Slip Disc Causes and Treatment

Homeopathic treatment for bulging disc in lower back 
Homeopathic treatment of Slip disc:
होमियोपैथिक उपचार : 
१.रस टक्स
२.आर्निका 
३.सिम्फाइटम 
४.रुटा
५.हाईप्पेरिक्म
उपर लिखित पाचों औषधियों को १००० शक्ति में ले आयें.रोग की तीव्रता के आधार पर २-६ घन्टे के अंतराल पर पर्यायक्रम से लें.यदि लाभ कम दिखाई दे तो सभी औषधियों को मिक्स कर ५-५ बूंद ४-४ घंटे पर ले.आपको अवश्य ही लाभ होगा.यह नुस्खा अजमाया हुआ है मेरा।
विशेष: स्लिप डिस्क के रोगी फिजियोथरेपिस्ट से अवश्य सलाह लें।  

चित्र साभार;देशबंधु और जागरण से 

मंगलवार, 14 मई 2013

कंप्यूटर से हुए थकान से निजात पाएं

आज की खबर :

क्या घंटों तक कंप्यूटर पर टाइप करने या माउस चलाने से आपके हाथों में दर्द होता है? या फिर कई बार देर तक लिखने-पढ़ने के काम से हाथों में जकड़न महसूस होती है?इस बार हम योग टिप्स लाएँ हैं उन लोगों के लिए जो कंप्यूटर पर लगातार आठ से दस घंटे काम करके कई तरह के रोगों का शिकार हो जाते हैं या फिर तनाव व थकान से ग्रस्त रहते हैं। निश्‍चित ही कंप्यूटर पर लगातार आँखे गड़ाए रखने के अपने नुकसान तो हैं ही इसके अलावा भी ऐसी कई छोटी-छोटी समस्याएँ भी पैदा होती है, जिससे हम जाने-अनजाने लड़ते रहते हैं।

अगर ऐसा है तो आप काम के दौरान ही हाथों की इन सात आसान कसरतों से आराम महसूस कर सकते हैं।


कसकर मुट्ठी बांधे

इससे हथेली और उंगलियों की जकड़न खुलेगी और हाथों में दर्द नहीं होगा।

अंगूठे को भीतर करके मुट्ठी बनाएं।

मुट्ठी को 30 से 60 सेकंड के लिए टाइट करें।
पूरी तरह हाथ को ढीला छोड़ दें।
लगातार चार बार इस प्रक्रिया को दोहराएं।

उंगलियों का फैलाएं
लगातार टाइप करने या माउस पकड़ने से उंगलियों के दर्द में आराम मिलेगा।
हथेली को सीधा टेबल पर रखें।
अब हाथों की उंगलियों पर थोड़ा बल देते हुए उंगलियों को स्ट्रेच करें।
करीब 30 से 60 सेकंड तक इसी अवस्था में रखें।
हाथ को ढीला छोड़ दें।
लगातार चार बार इस प्रक्रिया को दोहराएं।

हथेली को फैलाएं
इससे हथेली की मांसपेशियों का तनाव कम होगा और उंगलियां तेजी से चलेंगी।
दोनों हाथों को सीधा करें और हथेली को मुंह के सामने सीधा रखें।
अब उंगलियों को ज्वाइंट से हथेली की ओर मोड़ें।
हथेली अधखुली मुट्ठी की तरह दिखनी चाहिए।
30 से 60 सेकंड इसी अवस्था में रहें।
इस प्रक्रिया को लगातार चार बार दोहराएं।

पकड़ बनाएं
हथेली की पकड़ मजबूत करने और स्ट्रेच के लिए सॉफ्ट बॉल मिलती है। उसे हमेशा अपनी डेस्क पर रखें।
सॉफ्ट बॉल को अच्छी तरह से पकड़ें और दम लगाकर निचोड़ने का प्रयास करें।
10 से 15 सेकंड तक इस अवस्था में रहें।
इसे आठ से 10 बार दोहराएं।
सप्ताह में दो से तीन बार इस कसरत को करने से हाथों के ज्वाइंट्स खुल जाते हैं।
उंगलियों को उठाएं
इससे उंगलियों की लचक बढ़ती है और देर तक कान के बावजूद भी दर्द नहीं होता।

हथेली को टेबल पर सीधा रखें।
अब पहली इंगली को टेबल से ऊपर उठाएं और कुछ क्षण बाद नीचे रखें।
बारी-बारी सभी उंगलियों के साथ यह प्रक्रिया दोहराएं।
आठ से 12 बार इस पूरी प्रक्रिया को दोहराएं।

अंगूठे के लिए
इससे अंगूठे की मांसपेशियां मजबूत होंगी और लचीलापन बढ़ेगा।
हाथ को टेबल पर सीधा रखें और अपनी चारों उंगलियों को हल्के रबर बैंड से बांध लें।
अब अंगूठे को 30 से 60 सेकंड तक उंगलियों से दूर खींचें।
इस प्रक्रिया को 10 से 15 बार करें।
सप्ताह में तीन दिन भी यह कसरत फायदेमंद है।

विशेषज्ञों ने कहा है कि आंखों की पलझें झपकाने और बीस फिट की दूरी पर रखी वस्तु की ओर देखने से इस दर्द से बचा जा सकता है। बस 20-20-20 के फ़ार्मूले का पालन करना होगा अर्थात बीस मिनट बाद बीस फ़िट दूर बीस सेकेंड तक देखें।

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रविवार, 12 मई 2013

दर्द की दवा ही न बन जाए 'दर्द'


सुबह से सिर दर्द हो रहा है तो एस्पिरिन या डिस्प्रिन ले लो ठीक हो जाएगा या फिर बदन में दर्द है तो कांबिफ्लेम या ब्रूफेन ले लो आराम मिल जाएगा।अक्सर सिर दर्द, पेट दर्द या बदन दर्द को कम करने के लिए हम कुछ ऐसे पेनकिलर्स का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन दर्द में तुरंत राहत देने वाली इन जादुई गोलियों की मार बड़ी भयानक होती है। आप पेन किलर का मनमाना प्रयोग कर रहे हैं तो मानकर चलिए आप एक बड़े दर्द को न्यौता दे रहे हैं। 
                         रासायनिक बनावट के आधार पर कई तरह की पेनकिलर्स बाजार में उपलब्ध हैं। कुछ पेनकिलर्स नशीली नहीं होतीं, यानी उनको लेने से हम उनके आदी नहीं होते। लेकिन कुछ ऐसी पेनकिलर्स भी हैं, जिनका लगातार सेवन करने से दिमाग व शरीर इन पर निर्भर करने लगते हैं और हम उनके गुलाम बन जाते हैं। दोनों तरह की पेनकिलर्स खतरनाक हो सकती हैं, अगर इनका सेवन डक्टर की सलाह के बगैर किया जाए या डाक्टरी सलाह से कहीं अधिक समय के लिए किया जाए।
              पेनकिलर्स के बार-बार सेवन करने से व्यक्ति इनका आदी हो जाता है। नतीजा यह होता है कि एक साधारण दर्द को ठीक करते-करते व्यक्ति इन गोलियों के एडिक्शन की खतरनाक बीमारी के चंगुल में फंस जाता है। कुछ समय तक लगातार पेनकिलर्स लेने के पश्चात अगर इन्हें एकदम बंद कर दिया जाए, तो भी सेहत संबंधी कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं, जैसे सारे शरीर में असहनीय दर्द, घबराहट, बेचैनी, गुस्सा, दस्त, लगातार छींकें आना, नींद न आना, आंखों और नाक से पानी निकलना इत्यादि।


ये हो सकते हैं साइड एफेक्ट्स

गैसट्राइटिस (पेट में सूजन)- पेन किलर यानी दर्द निवारक दवा पेट के अल्सर की बड़ी वजह बन रही है। पेट के अंदर जख्म बनना, उनसे खून का रिसाव, कयादा एसिड बनना, छाती में जलन जैसी परेशानियां हो जाती हैं। इनके चलते पेट में दर्द, खट्टे डकार, उल्टियां जैसे लक्षण पैदा हो जाते हैं।

जिगर की सूजन-
जिगर (लिवर) के सैल्स का खत्म होना, इसके चलते भूख का कम होना, खाना हकाम न कर पाना जैसी परेशानियां।

किडनी प्रॉब्लम्स-
पेनकिलर्स किडनी को बहुत नुक्सान पहुंचाती हैं। जिंदगी में एक हजार से कयादा पेनकिलर्स खाने से किडनी खराब हो सकती है। किडनी के सैल्स को नुक्सान पहुंचता है, जिससे धीरे-धीरे किडनी का फंक्शन कमजोर होता जाता है। इसे एनलजैसिक नैफरोपैथी कहा जाता है।

ब्लड डिस्क्रेसिया-
कुछ पेनकिलर्स से खून की रचना में बदलाव आने लगते हैं, जिसे ब्लड डिस्क्रेसिया कहा जाता है। यह जानलेवा भी साबित हो सकता है।

दमा पर असर-
कुछ पेनकिलर्स दमा भी बढ़ा सकती हैं।

मानसिक रोग-
मानसिक रोग हो जाते हैं, जैसे मन की उदासी, याददाशत कमजोर होना, वहम व शक की बीमारी। कई बार कन्फ्यूकान और भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है।

सिर दर्द और माइग्रेन-
दर्दनिवारक गोलियां सिरदर्द और माइग्रेन की समस्या से निजात दिलाने की जगह चीजों को और खराब कर देती हैं।


क्या है डॉक्टर की सलाह?
♦ अगर किसी व्यक्ति को पेनकिलर्स लेने की लत लग जाए, तो उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाएं।
♦ मरीज  को दवाओं के कोर्स के जरिये नशामुक्त किया जाता है। इस कोर्स को बिना अस्पताल में दाखिल हुए भी लिया जा सकता है।
♦ मरीज को दोबारा नशे का सेवन करने से हटाने के लिए कुछ दवाएं देनी पड़ती हैं और साथ ही काऊंसलिंग के लिए भी जाना पड़ता है।
♦ नशे के सेवन से हुए नुक्सानों को ठीक करने के लिए 4-6 महीने तक दवा लेनी पड़ती है।
♦ इसलिए अगली बार पेनकिलर खाने से पहले सोचें। साथ ही डॉक्टरी सलाह के बगैर भी पेनकिलर न खाएं।


हमेशा रखें इन बातों का ध्यान
पेन किलर दवाओं के साइड एफेक्ट्स से बचने के लिए यह जानना भी जरूरी है कि आप पेन किलर लेते वक्त ऐसी कौन सी गलती कर रहे हैं जिससे आपको साइड एफेक्ट झेलना पड़ सकता है।

खाली पेट पेन किलर न लें - खाली पेट पेन किलर दवाएं लेने से शरीर में गैस्ट्रिक या एसिडिटी बहुत अधिक बढ़ जाती हैं जिससे तबियत और बिगड़ सकती है। हमेशा पेन किलर लेने से पहले थोड़ी डाइट जरूर लें।

एल्कोहल से बरतें दूरी - एल्कोहल और पेन किलर का कांबिनेशन आपको स्ट्रोक या हार्ट अटैक तक की स्थिति में पहुंचा सकता है। चूंकि पेन किलर दवाएं और एल्कोहल, दोनों ही एसिडिटी बढ़ाते हैं तो आप सोच सकते हैं कि इन दोनों का प्रभाव कितना नकारात्मक हो सकता है।

पानी की कमी न होने दें - भले ही आप दवा दो घूंट पानी से लेते हों लेकिन दवा लेने के बाद शरीर में पानी की कमी न हो इसका पूरा ध्यान रखें।
आप जब दवा लेते हैं तो किडनी के पूरे सिस्टम पर उसका सीधा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में अच्छी मात्रा में पानी के सेवन से दवाओं का टॉक्सिन तेजी से शरीर से बाहर निकलता है और साइड एफेक्ट की आशंका कम हो जाती है।

दवा को तोड़ कर या क्रश करके न लें - कई बार लोगों को पूरी गोली निगलने में दिक्कत होती है, खासतौर पर बच्चे दवा खाने में बहुत आनाकानी करते हैं। ऐसे में हम दवाओं को तोड़कर या क्रश करके उन्हें खिला देते हैं। 
ऐसे में दवा का पूरा डोज तेजी से शरीर में घुलता है और कई बार हमारा शरीर उसके प्रभाव को संभाल नहीं पाता और यह दवा के ओवरडोज की तरह काम करता है।ऐसे में अगर आपको पूरी एक टैबलेट लेनी है तो उसे तोड़कर लेने के बजाय पूरी निगलें। हां, दवा के आधे डोज के लिए तोड़ने में कोई दिक्कत नहीं है। 

इसे अपनी लत न बनाएं - कई बार लोग थकान मिटाने और दर्द से आराम के लिए पेन किलर दवाओं के इतने आदी हो जाते हैं कि दवाएं उनके रुटीन का हिस्सा हो जाती हैं।लंबे समय तक इनका इस्तेमाल किडनी, लिवर और कई मानसिक समस्याओं का कारण हो सकता है। 

एक बार में एक से अधिक पेन किलर न लें- दर्द कितना भी तेज हो लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आप में एक से अधिक पेन किलर लें।

किसी भी पेन किलर का प्रभाव पता चलने में कम से कम 15 से 30 मिनट तो लगते ही हैं। ऐसे में अगर आप बेसब्र होकर पेन किलर की ओवरडोज करेंगे तो ब्ली‌डिंग, किडनी फेल्योर, दिल का दौरा, ब्लड क्लॉटिंग जैसे साइड एफेक्ट हो सकते हैं।

पेन किलर दवाओं की हल्की डोज आपके दर्द को राहत पहुंचाने के लिए ही है, लेकिन कई बार हमारी जरा सी लापरवाही दर्द कम करने के बजाय हमारे लिए और बड़े दर्द का सबक हो सकती है।

शनिवार, 11 मई 2013

बदलते मौसम में एलर्जी

आदमी यदि स्वस्थ रहेगा तो ही वह आगे कोई काम कर पाएगालेकिन आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में कई छोटी बीमारियां लोगों को परेशान करके रख देती हैं।बदलते मौसम में एलर्जी होना आम बात है। बदलते मौसम में एलर्जी का खतरा बढ़ जाता है। इम्यून सिस्टम में असंतुलन के चलते लोग एलर्जी के शिकार हो जाते हैं। बदलते मौसम में एलर्जिक राइनाइटिस (नाक की एलर्जी), एलर्जिक अस्थमा (सांस) व स्किन एलर्जी आम है।

मौसम में इस बदलाव से बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों में यह समस्या पांच से आठ प्रतिशत तक बढ़ जाती है। माता-पिता में से किसी एक को एलर्जी की समस्या है तो उनके बच्चों में रोग की संभावना 50 फीसद बढ़ जाती है। उन्होंने एलर्जी के लक्षण बताते हुए कहा कि शरीर पर खुजली के चकत्ते, बार-बार सर्दी जुकाम, छींक, आंख, नाक में खुजली, बुखार, मांसपेशियों में दर्द से इसकी पहचान होती है। अगर आप कुछ सावधानियां बरतेंगे और समय रहते इसका उपचार करने में आसानी होगी।

अगर ऐसा हो रहा है तो...
-नाक में खुजली और छीकें आना
-नाक से पानी आना
-नाक की त्वचा का लाल होना और उसमें खरोंचें आना, जो बार-बार नाक साफ करने के कारण होता है।

यह है मुख्य  वजह
इस रोग का कारण कई तरह की एलर्जी है। इनमें सबसे आम है प्रदूषण, धूल-मिट्टी, घास व पेड़-पौधों के परागकण।
घर से बाहर निकलने पर धूल और वायुमंडल में फैला प्रदूषण लोगों की नाक में चला जाता है। यही एलर्जिक राइनाइटिस का कारण बनता है। इसके अलावा पालतू कुत्ते, बिल्लियां रखने वाले परिवारों में एलर्जी
का जोखिम ज्यादा होता है। कुत्ते-बिल्ली जैसे बालों वाले जानवरों के बाल गिरते रहते हैं, जो एलर्जी का कारण बनते हैं।

और यह हो सकता है नुकसान
-नाक की एलर्जी साइनस के ऑस्टिया(छेदों) को बंद कर सकती है, जो कि साइनसाइटिस का कारण बन सकती है।
-ये नाक में पालिप बना सकती है।
-ये ऑडिटरी ट्यूब को बंद कर सकती है, जिससे कान के मध्यभाग में पानी भर सकता है।
-इन मरीजों में अस्थमा का जोखिम चार गुना बढ़ जाता है।

बचाव और उपचार भी है आसान
१. इन्फेक्शन से बचने का प्रयास करें।
२. ठंडी हवा, धूल और नमी से बचें।
३. घर से बाहर निकलने पर कोशिश करें कि धूल के कण नाक में कम से कम जाएं।
४. अगर धूल वाले स्थान पर जाना पड़े तो मुंह पर मास्क या रूमाल रखकर जाएं।
५. घर में पालतू जानवरों कुत्ते, बिल्लियों आदि के बहुत अधिक नजदीक न जाएं।
६. घर या कार्यालय में जहां सीलन हो, वहां जाने से बचें।
७. धूम्रपान न करें।अगर आपके आसपास किसी को सिगरेट के धुएं से एलर्जी है तो उसके सामने स्मोकिंग भी न करें।
 ८. कुछ खाने से अगर नाक में एलर्जी हो तो उससे बचना चाहिए।
९. ज्यादा तकलीफ होने पर नेजल स्प्रे का प्रयोग कर सकते हैं।
१०. जिस चीज से त्वचा पर एलर्जी होती है, उस चीज को नोट करें और उस चीज का इस्तेमाल करना ही बंद कर दें।त्वचा के जिस भाग पर एलर्जी हो, वहां किसी भी तरह का कास्मेटिक प्रयोग न करें।
११. चारों ओर मौजूद एलर्जन से बचना ही एलर्जी का सबसे अच्छा इलाज है। 
१२. कई लोगों की त्वचा अत्यधिक संवेदनशील होती है। किसी वस्तु विशेष के संपर्क में आते ही उन्हें एलर्जी हो जाती है।कई लोगों को दूसरों की चीज इस्तेतमाल करने से भी एलर्जी हो जाती है। जैसे- बिस्तर, टॉवेल, दूसरों के पहने कपड़े आदि। तो उन्हें इस बात का खास खयाल रखना चाहिए।
१३. घर में बत्ती वाले स्टोव की जगह एलपीजी या इलेक्ट्रिक स्टोव का उपयोग करें।
१४. घर में शुद्घ वायु के आने की व्यवस्था सुनिश्चित करें। 

१५. घर अगर सड़क के पास है तो बाहर की धूल मिट्टी को अंदर आने से रोकने के लिए दरवाजे और खिड़कियों को जहां तक हो सके बंद ही रखना चाहिए। खिड़कियों पर शीशे के साथ बारीक जाली लगाएं।
१६. किचन में एक्जास्ट फेन का उपयोग करें। 

१७. कई लोगों को फूलों की खुशबू से भी एलर्जी होती है, ऐसे लोगों को चाहिए कि उन पौधों को कमरे में न लगाएं जिन पर फूल खिलते हों।
१८. बिस्तर को साफ-सुथरा रखें।
१९. घर में गीले कपड़े से पोंछा लगाएँ।
२०. दीवारों पर फफूंद और जाले हो गए हों, उसे ब्लीच के जरिए साफ करें।
२१. बारिश का मौसम स्वास्थ्य के हिसाब से अच्छा माना जाता है, लेकिन कुछ खास व्याधियों जैसे अस्थमा, हृदय रोग, कैंसर से ग्रसित व्यक्तियों के लिए यह मौसम कुछ समस्याएँ भी लाता है। 

२२. प्रतिदिन यह देखें कि कौन सी चीजें खाने के बाद शरीर में एलर्जी के लक्षण दिखाई देते हैं। आप उस खास चीज के नाम के आगे x का निशान लगा दें और वह चीज खाना बंद कर दें।
रोग के लक्षण दिखाई देते ही कुशल चिकित्सक से संपर्क करें।

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